दिवाली खत्म हो चुकी है और दिल्ली की हवा ख़राब से ज़हरीली की तरफ़ बढ़ने लगी है। सर्दी आते ही दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के कई कारक गिनाये जाने लगते हैं। जिसमें हरियाणा-पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाना, दिवाली में पटाखे जलाना तथा अन्य कई कारण शामिल हैं। केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने तरफ़ से प्रदूषण रोकने की तमाम वादे भी करती हैं, लेकिन असल में इसका असर ना के बराबर प्रतीत होता है। इन सभी चीजों के बीच एक ख़ास वर्ग के लोग सबसे ज़्यादा उन ज़हरीली हवाओं से प्रभावित होते हैं। इनमें ज़्यादातर बाहर काम करने वाले लोग यानी सफ़ाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी, कचरा बीनने वाले, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, पैदल यात्री, स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्र, महिलाएँ तथा छोटे बच्चे शामिल हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दिल्ली फ़िलहाल वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में 400 का आंकड़ा पार कर चुकी है।
पीढ़ियों से चली आ रही दास्तां
“अस्थमा है दादी को, माँ की भी उमर हो गई है, जोड़ो में दर्द रहता है अब। घर चलाने के लिए किसी को तो काम पर आना पड़ेगा।”
कल्याणपुरी में रहने वाले 21 वर्षीय किट्टू कॉलेज जाने वाले छात्र हैं, लेकिन अब वह घरों से कूड़ा उठाने का भी काम करते हैं। दरअसल किट्टू की 70 वर्षीय दादी मीना, मयूर विहार फेज 2 की कुछ कॉलोनियों में घरों से कूड़ा इकट्ठा करने तथा कबाड़ी का काम करती थीं। कई सालों तक काम करने के बाद मीना थोड़ी बीमार रहने लगीं, बाद में पता चला कि उन्हें अस्थमा है। थोड़े ही दिनों बाद वह बिल्कुल असमर्थ हो गईं और काम पर आना बंद कर दिया। मीना की जगह उनकी बहू गुड़िया ने ले ली और घरों से कूड़ा उठाने के अलावा वह घरों में चौका-बर्तन भी करने लगी ताकि थोड़े और पैसे कमा सके। धीरे-धीरे गुड़िया के अन्य कामों में व्यस्तता और स्वास्थ के कारण उनका बेटा किट्टू भी सफ़ाई कर्मी का काम करने लगा।
गुड़िया बताती हैं,
“मेरी शादी एक ऐसे परिवार में हुई जो पीढ़ियों से कूड़ा उठाने और कबाड़ बेचने का ही काम करते थे। शुरुआती दिनों में तो मैं काम पर नहीं जाती थी, लेकिन बाद में मैं भी काम पर जाने लगी। हम किट्टू को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन ना चाहते हुए भी उसे ये काम करना ही पड़ता है।”
“एक दिन किट्टू को फ़ोन पर मैंने कहते सुना कि मैं जॉब पर हूँ अभी, फ्री होकर बात करता हूँ। क्यूंकि हम कूड़ा उठाने वालों को समाज में उतनी इज्जत नहीं मिलती, किट्टू अपने दोस्तों को ये नहीं बताना चाहता की वो क्या काम करता है।” भावुक होकर गुड़िया ने आगे जोड़ा।
साल 2023 में आयी चिंतन एन्वायर्नमेंटल एंड रिसर्च ग्रुप की एक रिसर्च रिपोर्ट अनफेयर क्वालिटी के मुताबिक़, 97 प्रतिशत सफ़ाई कर्मचारी, 95 प्रतिशत कूड़े बीनने वाले, तथा 82 प्रतिशत सुरक्षा कर्मी वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं।
चिंतन की श्रुति सिन्हा ने बताया,
“हमने पिछले साल दिल्ली में अनफेयर क्वालिटी रिपोर्ट की थी, 86 प्रतिशत सफ़ाई कर्मचारी और सुरक्षा कर्मी एवं 75 प्रतिशत कचरा बीनने वालों के फेफड़े ख़राब पाए गए थे। यह आंकड़े बहुत ही भयावह थे। हमने वायु प्रदूषण से बचाव के प्रति जागरूकता में भारी कमी पाई थी, सफाईकर्मियों को पीपीई किट इस्तेमाल करने की जानकारी तक नहीं थी। इसके बाद हमने डॉक्टरों के साथ एक नेटवर्क तैयार कर ज़्यादा से ज़्यादा प्रशिक्षण देने की शुरुआत की है। ख़ासतौर पर हमने वायु प्रदूषण से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों को केंद्र में रखा है और वहाँ एक समुदाय तैयार कर लोगों को जागरूक करने की शुरुआत की है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले सबसे संवेदनशील समूह महिलाओं का होता है, इसीलिए हमने भलस्वा लैंडफिल साईट के आस-पास रह रहीं महिलाओं को ‘क्लाइमेट-सखी’ नाम से चलाए जा रहे एक अभियान से जोड़ा है और उन्हें समय-समय पर ट्रेनिंग दे रहे हैं। इसके अलावा जागरूकता अभियान के दौरान, स्कूलों में पौधारोपण द्वारा छोटे बच्चों के बीच भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने की संवेदनशीलता लाने की कोशिश है।”
पेट और जीवन के बीच की जंग
वायु प्रदूषण के कारण सफ़ाई कर्मी, सुरक्षा कर्मी और कूड़े बीनने वालों के अलावा वे लोग भी पीड़ित हैं जिनका ज्यादातर काम-काज बाहर ही होता है। कई लोग बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण बाहर ही नहीं निकल पाते जिससे उनके काम में बाधा आती है और कइयों को तो मजबूरन काम करने बाहर निकलना ही पड़ता है।
भारतीय डाक में कार्यरत 54 वर्षीय पोस्टमैन दलीप बताते हैं,
“कितना भी धुआँ-कोहरा हो, जाना तो पड़ता ही है काम पर। जब कोहरा ज़्यादा बढ़ जाता है तो हमें घर-घर घूमने में काफ़ी तकलीफ़ होती है। सरकार के पास इसका कोई इलाज नहीं है, हर साल बस ज़्यादा से ज़्यादा हफ़्ता-दो-हफ़्ता छुट्टियाँ दे दी जाती हैं।”
दिल्ली में 200 यूनिट बिजली फ्री होने के बावजूद, ठंड के दिनों में अंगेठी से दम घुटने की कई खबरें आती हैं। इसका साफ़ मतलब है कि लोग आज भी कहीं न कहीं ठंड से बचने के लिए लकड़ी, कोयला या अन्य ज्वलनशील पदार्थों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमें ये मालूम पड़ता है कि लोग अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में ही सक्षम नहीं है, इलेक्ट्रिक हीटर और ब्लोअर खरीदना तो उनके लिए बहुत दूर की बात है।
“जब हम गुजारा ही नहीं कर पाते तो इलेक्ट्रिक हीटर और ब्लोअर कहाँ से लाएंगे? हमें मजबूरन लकड़ी ही जलानी पड़ती है। कई बार तो ठंड से बचने के लिए लोग सड़कों पर टायर और कूड़े को भी जला देते हैं। हालांकि ये सही नहीं है, इससे हमें साँस लेने में और तकलीफ़े बढ़ जाती है लेकिन क्या करें? बस्ती में लोगों के पास और कोई संसाधन भी नहीं है। प्रदूषण बढ़ने के कारण लोग बाहर नहीं निकलते जिससे पार्लर से कमाई भी न के बराबर ही होती है।”
लेडीज़ पार्लर में काम करने वाली रितु ने कहा।
भलस्वा लैंडफिल साईट से सटे घरों के पास बहती नाली। तस्वीर: पीयूष सिंह
दिल्ली में मौजूद तीन लैंडफ़िल साईट – ओखला, ग़ाज़ीपुर और भलस्वा का भी हवा को प्रदूषित करने में बहुत योगदान है। लैंडफिल साईट के आस-पास में रहने वाले लोगों की मानें तो हर दिन कुछ ही घंटों में एक मोटी धूल की परत जमा हो जाती हैं। लोग बताते हैं कि वायु प्रदूषण के अलावा बरसात के दिनों में स्थिति और ख़राब हो जाती है। बारिश के कारण हवा थोड़ी साफ़ तो होती है लेकिन, लैंडफिल साईट पर इकठा हुए कचरे से बारिश का पानी रिस्ते हुए उनके घरों तक पहुँच जाता है, जो कई बीमारियों का कारण भी बनती है।
25 वर्षीय प्रियंका जो बचपन से भलस्वा लैंडफिल साईट से सटे कबाड़ी गली में रहती हैं, उन्होंने बताया,
“इस इलाके के हर घर में किसी ना किसी को साँस लेने की दिक्कत है, मेरे यहाँ मेरी माँ को है। यहाँ बच्चों को टीबी की बीमारी है, कोई सुविधा नहीं है। हम मजबूर हैं, ये जानते हुए कि धूल से बचने के लिए मास्क लगाना चाहिए, भूखे पेट हम मास्क नहीं लगा सकते।”
पर्यावरण को बचाने में कूड़े बीनने वालों का बहुत बड़ा योगदान होता है। वे इकठा हुए कूड़े से उन चीजों को निकालते हैं जिसे दुबारा रिसाइकल कर इस्तेमाल किया जा सके। उनका यह कार्य कई तरह से जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में मदद करता है। लेकिन अफ़सोस, उनके लिए हमारे पास ना ही कोई संवेदनशीलता है और ना ही सरकार के पास बेहतर नीतियाँ जिससे उनकी जिंदगी सँवर सके। कूड़ा बीनने वालों को जान जोखिम में डाल कर काम करना पड़ता है, आए दिन ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं लेकिन इस पर सरकारी तंत्रों की नजर नहीं जा पाती।
ओखला लैंडफिल साईट। तस्वीर: पीयूष सिंह
प्रियंका इतिहास में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही हैं। वे आगे बताती हैं,
“पहले लैंडफिल साईट पर प्रोसेसिंग मशीनें चलती थी तो क़रीब 200 से 250 लोगों को रोजगार मिलता था, अब वो भी ख़त्म हो गया है। लोगों के पास काम नहीं है, पूरे दिन बाहर बैठकर सब ताश खेलते रहते हैं। अब तो यहाँ माफिया राज चल रहा है, हमें ऊपर से कूड़ा भी नहीं लाने देते जिसका असर यहाँ के छोटे-छोटे रोजगार पर भी पड़ रहा है। कूड़ा बीनने के दौरान आए दिन लोगों के हाथ-पैर कटते रहते हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं है।”
कितनी दुरुस्त है सरकारी तैयारियां ?
दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए 21 पॉइंटर्स विंटर एक्शन एक्शन प्लान लागू कर दिया गया है। गौरतलब है कि दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ़ ठंड के दिनों में ही नहीं बल्कि पूरे साल रहता है। आंकड़ों के अनुसार सिर्फ़ जून से सितंबर यानी मॉनसून के महीनों में ही हवा सबसे स्वच्छ रही है। इस वर्ष जून से सितंबर तक कुल बारिश 1029.9 मिलीमीटर रिकॉर्ड की गई थी। अकेले सितंबर में हुई बारिश इस बार औसत्त से 56 प्रतिशत अधिक रिकॉर्ड की गई थी।
21 विंटर एक्शन प्लान के अंतर्गत वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरपी) की शुरुआत की है। जीआरपी को चार चरणों में बाँटा गया है; जीआरपी I – जब AQI 200 पार करेगी, जीआरपी II – जब AQI 300 पार करेगी, जीआरपी III – जब AQI 400 से अधिक होगी तथा अंतिम और सबसे गंभीर स्थिति में जीआरपी IV लागू किया जाएगा जब AQI 450 से अधिक चली जाएगी। दिल्ली में 13 अक्टूबर को ही AQI ने 200 का आंकड़ा पार किया था और जीआरपी I लागू कर दी गई था। फ़िलहाल दिल्ली में 22 अक्टूबर से जीआरपी II भी लागू हो चुकी है। इसके अलावा पहली बार दिल्ली में ड्रोन द्वारा चिह्नित 13 प्रदूषण वाले हॉटस्पॉट पर रियलटाइम एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग होगी और 80 एंटी स्मोग गैस की तैनाती की गई है। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमिटी द्वारा जारी किए आदेश में पटाखों को पूरी तरह बैन कर दिया गया है। रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ जैसे कई जागरूकता अभियान की भी शुरुआत की गई है। हालांकि इन सब चीजों के बाबजूद 20 अक्टूबर को 13 हॉटस्पॉट में से एक, आनंद विहार में AQI 445 तक चला गया था।
दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने प्रेस वार्ता में बताया था कि,
“नागरिकों के भागीदारी के बिना इस समस्या से हम नहीं निपट सकते।”
सरकार की इन तमाम बातों के बीच हमें ये सोचने की जरूरत है कि मीना, गुड़िया, दलीप, रितु, और प्रियंका जैसे तमाम लोगों की जिंदगियों पर इन नीतियों का कितना असर पड़ेगा।
भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें।
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी
यह भी पढ़ें
कूड़े की यात्रा: घरों के फर्श से लैंडफिल के अर्श तक
एमपी के मंडला से विलुप्त होती रामतिल, मिलेट मिशन पर सवाल खड़े करती है
MP के पांढुर्ना में प्लास्टिक को लैंडफिल में जाने से रोक रहे हैं अरुण