इंदौर के रेल्वे स्टेशन से महज 6 किलोमीटर दूर पर ही अन्नपूर्णा नाम का एक प्रसिद्द ऐतिहासिक मंदिर है। अन्नपूर्णा मंदिर के लगभग 200 मीटर पर ही मौजूद 1 हेक्टेयर पर फैला अन्नपूर्णा तालाब भी शहर की प्राकृतिक आभा बढ़ाता है। लेकिन शहर के कचरे, सीवेज, और देखरेख के आभाव में अन्नपूर्णा तालाब की स्थिति लगातार खराब होती गई। तालाब की स्थिति ऐसी बिगड़ी की यहां की मछलियां मरने लगीं। अब इस तालाब को फिर से जीवित करने की जद्दोजहद की जा रही है। आइये जानते हैं इंदौर के अन्नपूर्णा तालाब के स्वास्थ्य और स्वच्छता की कहानी।
कैसे और क्यूँ अन्नपूर्णा हुई दूषित
क्लीन वाटर एक पर्यावरण आधारित स्टार्टअप है जो जलाशय की स्थिति सुधारने के लिए कुछ उपकरणों और जैविक सामाधानों का उपयोग करते हैं। क्लीन वाटर के संस्थापक प्रियांशु पिछले वर्ष की घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि “एक समय अचानक बड़े पैमाने पर अन्नपूर्णा तालाब की मछलियां मरने लगीं। जब इस घटना की जांच की गई तो पता चला कि पानी में ऑक्सीजन की मात्रा यानी DO (डिसॉल्वड ऑक्सीजन) बेहद घट गई थी। सामान्य स्तर पर एक तालाब के पानी का DO 5 ml/g होना चाहिए जो कि अन्नपूर्णा तालाब में घटकर मात्र 2.3 ml/g रह गई थी।
दरअसल पानी में घुलित ऑक्सीजन जैसे ही कम होने लगती है, वैसे ही तालाब में पल रहीं मछलियों व अन्य जलीय जीवों को जरुरी ऑक्सीजन की मात्रा न मिल पाने से उनकी मृत्यु होने लगती है। अन्नपूर्णा तालाब में मछलियों की मृत्यु की बड़ी वजह यही थी।
लेकिन यहां प्रश्न उठता है अन्नपूर्णा तालाब के पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में इतनी गिरावट कैसे आई? इसके पीछे की बड़ी वजह है तालाब में शैवाल (Algea) और जलकुंभी जैसे घातक जलीय पौधों का पनपना। जब किसी भी जलाशय में शैवाल और जलकुंभी पनप जाती है तब वह पूरे जलाशय को ऊपर से ढँक लेती है, इस घटना को शैवाल प्रस्फुटन (algal bloom) कहते हैं।
जलकुंभी से ढकी प्रदूषित अन्नपूर्णा झील। तस्वीर: क्लीन वाटर
जब जलाशय जलकुंभी की घनी चादर से ढंक जाता है तब सूर्य का प्रकाश तालाब के जल के अंदर नहीं पहुंच पाता है। इस वजह से तालाब के अंदर मौजूद पौधे और फाइटोप्लैंक्टन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पूरी नहीं कर पाते, और ये घटना पानी में घुलित ऑक्सीजन की कमी के रूप में परिलक्षित होती है।
इसके बाद जब भी जलकुंभी अपघटित होती है यानी सड़ती है, तब इसे सड़ाने वाले जीवाणु पानी में मौजूद ऑक्सीजन का उपयोग इसे इसे सड़ाने के लिए करते हैं। यानी जलीय जीवों के लिए बची खुची ऑक्सीजन जलकुम्भी को सड़ाने में ही खप जाती है।
जलकुंभी के सड़ने से तालाब में गंदगी और रसायन बढ़ जाते हैं। इसे बीओडी (Biological Oxygen Demand) और सीओडी (Chemical Oxygen Demand) कहते हैं। जब ये बढ़ते हैं, तो पानी जहरीला हो सकता है, और तालाब का पानी इस्तेमाल के लायक नहीं रहता।
इसके बाद जलकुंभी तालाब में मौजूद नइट्रेट और फॉस्फेट जैसे पोषक तत्वों को खींचकर तेजी से अपना विस्तार करती जाती है, और तालाब को और अधिक गंदा करती जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को विज्ञान की भाषा में यूट्रोफिकेशन कहते हैं। इस प्रक्रिया में तालाब में ऑक्सीजन की कमी इतनी ज्यादा हो जाती है कि मछलियाँ और दूसरे जीव मरने लगते हैं।
अन्नपूर्णा तालाब के संदर्भ में भी यही हुआ। अन्नपूर्णा तालाब का सीओडी बढ़ कर 68 mg/l तक पहुँच गया था, वहीं तालाब का बीओडी 20 mg/l था, जो जलीय पारिस्थितकी के लिए घातक है। तालाब में नालों का मिलना, कचरे का फेंका जाना, और सही अंतराल में इसकी सफाई न हो पाने की वजह से अन्नपूर्णा तालाब की स्थिति और भी बिगड़ती गई।
कैसे हुआ अन्नपूर्णा तालाब साफ़
प्रियांशु बताते हैं कि उनकी टीम ने मिलकर साल भर पहले इस तालाब की सफाई पर काम शुरू किया। इसके लिए उन्हें आईआईटी रोपड़, और कानपूर से ₹38.5 लाख की ग्रांट मिली थी।
अन्नपूर्णा तालाब की सफाई के क्रम में प्रियांशु की टीम ने सबसे पहले अन्नपूर्णा तालाब से जलकुम्भी हटाकर पूरी तरह से साफ़ किया। इसके बाद पानी में शैवाल और जलकुम्भी के पोषण को रोकने के लिए क्लीन वाटर द्वारा बनाए गए एक बैक्टीरिआ आधारित सोल्युशन की डोजिंग अन्नपूर्णा तालाब के पानी में की गई।
डोजिंग की यह प्रक्रिया पूरी तरह जैविक होती है। इस प्रक्रिया में प्रयोग किये जा रहे सोल्युशन में कुछ ख़ास तरह के बैक्टीरिया होते हैं जो नाइट्रेट और फास्फेट जैसे यौगिकों को नियंत्रित करके शैवाल और जलकुम्भी की वृद्धि और यूट्रीफिकेशन को रोकती है। इस बैक्टीरियल डोजिंग से पानी का यूट्रीफिकेशन रुकता है और सीओडी सुधरता है। इसके अलावा पानी की गंदगी और बदबू दूर होती है साथ ही पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ जाती है।
पानी की सफाई को यथावत रखने के लिए इस बैक्टीरियल सोल्युशन की नियमित डोजिंग की जाती है। “बैक्टीरियल सोल्युशन की यह खुराक अन्नपूर्णा झील में एक विशेष डोजिंग ड्रम की मदद से की जाती है। 1 लाख मिलीलीटर पानी में लगभग 1 किलोग्राम सोल्युशन डाला जाता है।” प्रियांशु बताते हैं।
अन्नपूर्णा तालाब में फ्लोटिंग वेटलैंड और एयरेटर। तस्वीर: क्लीन वाटर
इस तालाब की सफाई एक अन्य जरूरी कदम फ्लोटिंग वेटलैंड का इंस्टालेशन था। यह एक प्रकार का विशेष प्लेटफॉर्म है जो कि पानी पर तैरता है। एक फ्लोटिंग वेटलैंड कैना और स्पाइडर लिली जैसे सैकड़ों पौधों की मेजबानी भी करता है। ये पौधे न केवल झील की सुंदरता बढ़ाते हैं बल्कि जल प्रदूषण को भी नियंत्रित करते हैं और फाइटोरेमेडिएशन नामक प्रक्रिया के माध्यम से जल निकायों से भारी धातुओं को अवशोषित करते हैं।
लाभकारी बैक्टीरिया के विकास के लिए बेहतर सतह क्षेत्र प्रदान करने के लिए एसटीपी में उपयोग की जाने वाली बायोमीडिया की तरह उनमें भी 4-5 इंच की परत होती है। अन्नपूर्णा तालाब में पाँच फ्लोटिंग वेटलैंड लगाए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक का जीवनकाल लगभग 10 वर्ष का है। ये वेटलैंड पानी को प्राकृतिक रूप से फ़िल्टर और शुद्ध करके तालाब के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
इन सब के अतिरिक्त पानी में ऑक्सीजन छोड़ने के लिए अन्नपूर्णा झील में फ्लोटिंग एरेटर भी लगाए गए हैं। यह 2-हॉर्सपावर की मोटरों से लैस यांत्रिक उपकरण हैं जो कि अन्नपूर्णा तालाब में स्थापित किए गए हैं। फ्लोटिंग एयरेटर तालाब में घुलित ऑक्सीजन के स्तर में सुधार करता है और माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाता है।
वर्तमान में, ऐसे पांच एयररेटर चालू हैं। इसके अतिरिक्त, एक कमल के आकार का सोलर एयरेटर भी लगाया गया है। यह सौर ऊर्जा द्वारा संचालित 1500 किलोग्राम का उपकरण है जिसे अन्नपूर्णा तालाब में स्थापित किया गया है। सोलर एयरेटर न केवल तालाब ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है बल्कि झील की सुंदरता में भी चार चांद लगाता है।
लोटस शेप्ड सोलर एयरेटर: क्लीन वाटर
यह उपकरण दिन के समय झील के ऑक्सीजन स्तर को बढ़ाता है और रात में एलईडी लाइट के माध्यम से झील को रोशन करता है। ये उपाय सामूहिक रूप से पानी की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं और तालाब के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में योगदान करते हैं।
क्या रहे इन उपायों के नतीजे
इन सभी उपायों के बाद अन्नपूर्णा तालाब में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 6.7, बीओडी 2.4, और सीओडी 20 mg/l तक आ गया है, और नाइट्रोजन और फॉस्फेट जैसे रसायन ‘बिलो डिटेक्शन लेवल’ पर गए हैं। प्रियांशु कहते हैं कि,
एक समय पर इस तालाब में 1000 घरों का कचरा जाता था, और प्रदूषण की वजह से तालाब से बदबू आने लगी थी। वहीं क्लीन वाटर के प्रयास से अब तालाब का पानी पिने लायक साफ़ हो गया है और जलीय जीवों का जीवन भी आबाद हुआ है।
नगर निगम ने भी किया है सहयोग
अन्नपूर्णा तालाब की स्थिति के संदर्भ में ग्राउंड रिपोर्ट ने इंदौर नगर निगम के अधिकारी रोहित बोयत से संपर्क किया। अन्नपूर्णा तालाब की स्वच्छता को लेकर रोहित ने बताया लोगों से तालाब को साफ़ रखने की अपील की गई है। इसके साथ ही तालाब के चारों ओर ऐसे प्रबंध भी किये गए हैं जिससे लोग तालाब में कचरा न फेक पाएं।
क्लीन वाटर द्वारा झील के कायाकल्प के बाद रखरखाव की योजना के बारे में पूंछे जाने पर रोहित ने पुष्टि की कि नगर निगम झील के रखरखाव की जिम्मेदारी लेगा।
6 महीने बाद अन्नपूर्णा तालाब की देखरेख नगर निगम ही करेगा। नगर निगम इन्हीं तकनीकों का उपयोग करके तालाब की स्वच्छता को सुनिश्चित करेगा।
ग्राउंड रिपोर्ट ने इससे पहले इंदौर के ही पिपल्याना तालाब पर भी रिपोर्टिंग की थी, इस तालाब को भी साफ करने की ज़िम्मेदारी प्रियांशु के ही स्टार्टअप को दी गई थी। लेकिन तब तालाब साफ करने के बाद उसकी देखरेख का जिम्मा नगर निगम को सौंप दिया गया था। हमने यहां पाया था कि इस तालाब में प्रियांशु द्वारा लगाए गए ऐरेटर्स और फ्लोटिंग आईलैंड बुरी स्थिति में पहुंच गए थे। इस पर प्रियांशु ने हमें बताया कि तालाब को साफ रखने के लिए उसकी नियमित देखरेख ज़रुरी होती है, अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम वापस उसी स्थिति में पहुंच जाते हैं।
अगस्त 2024 में पिपल्याना तालाब: तस्वीर: ग्राउंड रिपोर्ट
प्रियांशु आगे कहते हैं,
हम इंदौर नगर निगम के संपर्क में हैं, जो वर्तमान में क्षेत्र में कचरा फेंकने को लिए चारदीवारी की ऊंचाई बढ़ाने पर, और क्षेत्र में कूड़ेदान स्थापित करने का काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, हमने जलस्त्रोतों की स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पोस्टर अभियान भी चलाए हैं।
इंदौर शहर में तालाबों को फिर से जीवित करने के लिए लेक रीस्टोरेशन प्रोजेक्ट नगर निगम द्वारा चलाया जा रहा है। इसके तहत 27 चिन्हित तालाबों को प्राकृतिक रुप से रीचार्च करने वाले चैनल्स को साफ और गहरा किया जा रहा है। अगर कहीं उन चैनल्स पर अवैध कब्ज़ा हुआ है तो उन्हें हटाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट को हमने विस्तार से अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में कवर किया है।
तालाबों का संरक्षण और उनका दोबारा जीवन देना इंदौर जैसे शहर की लिए ज़रुरी हो गया है। क्योंकि देश में स्वच्छता में नंबर वन इंदौर बढ़ती पानी की मांग और घटते भूजल स्तर की चुनौती का सामना कर रहा है। इंदौर में सतही जल स्रोतों की कुल स्थापित क्षमता 594 एमएलडी है। इसमें 540 एमएलडी पानी नर्मदा नदी से, 45 एमएलडी पानी यशवंत सागर से और 9 एमएलडी पानी बिलावली तालाब से प्राप्त होता है। लेकिन वर्तमान स्थिति में नर्मदा नदी का जलस्तर कम होने और अन्य सतही जल स्रोतों (बांध/टैंक) की कम क्षमता के कारण इंदौर शहर को 594 एमएलडी में से केवल 397 एमएलडी पानी ही मिल पाता है। गौरतलब है कि नगर निगम शहर की केवल 46.65% आबादी को ही पानी की आपूर्ति करता है। इसलिए बाकी लोग भूजल आधारित नलकूपों पर निर्भर हैं। केंद्रीय भूजल आयोग की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में इंदौर के भूजल में कमी को गंभीर श्रेणी में रखा गया है।
इंदौर शहर बैंगलुरु जैसे जलसंकट से सीख लेकर अपने प्राकृतिक जलाशयों के संरक्षण में जुटा है। अन्नपूर्णा तालाब की सफाई इसी कड़ी में किया जा रहा है एक कार्य है। क्लाीन वॉटर जैसे स्टार्टअप प्राकृतिक समाधानों से इस कार्य में मदद कर रहे हैं, यह तकनीक अन्य शहरों के लिए भी मददगार साबित हो सकती है जहां जलाशयों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है। लेकिन किसी भी तालाब पर करोड़ों रुपए खर्च कर एक बार उसकी सफाई कर देने से बात नहीं बनेगी। ज़रुरत है कि इन तालाबों को प्रदूषित करने वाले कारकों को ढूंढकर उन्हें रोका जाए और फिर उन्हें हमेशा साफ रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा जाए।
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