Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • इस महाभारत का शांतिपर्व कहाँ है?
    • Satya Hindi News Bulletin। 2 जून, दोपहर तक की ख़बरें
    • सावरकर-गोडसे परिवार के संबंधों को रिकॉर्ड में लाने की राहुल की मांग क्यों ठुकराई?
    • रूस का पर्ल हार्बर! यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडर वेब ने मचाया कहर
    • हेट स्पीच केस: अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता रद्द, राजभर बोले- अपील करेंगे
    • आतंकवाद से जंग का नागरिकों की प्यास से क्या रिश्ता है?
    • Mana and Kamet Peaks: माना और कामेट पर्वत की गोद में एक स्वर्गिक अनुभव की यात्रा, जीवन भर याद रहेगी ये समर हॉलीडे ट्रिप
    • राजा भैया राजनीति से कर रहे किनारा! अब विरासत संभालेंगे नए ‘राजा’; यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » ‘इमरजेंसी’: इतिहास नहीं, बेईमान भड़ास!
    भारत

    ‘इमरजेंसी’: इतिहास नहीं, बेईमान भड़ास!

    By January 20, 2025No Comments4 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    मैं उस घोषित इमरजेंसी का घनघोर निंदक था। आज भी हूँ। जब कंगना ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी फ़िल्म की प्रशंसा की सूची दी तो संदेह के वशीभूत ‘इमरजेंसी’ देखने यह सोचते हुए गया कि फ़िल्म को फ़िल्म की तरह देखूँगा। लेकिन यह सरासर बेईमान फ़िल्म निकली। निर्देशक कंगना रनौत (अब भाजपा सांसद) की अपनी राजनीतिक भड़ास। इंदिरा गांधी को आरम्भ में “सम्मानित नेता” बताकर निरंतर कलंकित करने की कोशिश।

    कहना न होगा कि इस फेर में कंगना ने फ़िल्मजगत को ही कलंकित किया है। वे तथ्यहीनता की हदें लांघ गई हैं। इमरजेंसी के बहाने नेहरू, विजयलक्ष्मी, फ़ीरोज़ गांधी, पुपुल जयकर, निक्सन, जॉर्ज पोंपीदू, मुजीबुर्रहमान, मानेकशॉ, रामन्ना, जे कृष्णमूर्ति आदि के बीच “इन्दु” को संकीर्ण, ख़ुदगर्ज़, झगड़ालू ही नहीं, षड्यंत्रकारी तक बता डाला है। कहीं उनमें करुणा झलकती दिखा भी दी तो आगे चालाकी उसे कुटिलता की ओर मोड़ दिया। 

    यों बताया है जैसे इमरजेंसी में नहीं, शुरू से अंत तक वे तानाशाह प्रकृति की थीं। एक प्रसंग में उनके सपने में डायन आती है। प्रधानमंत्री के घर में रात सेवक से आईने के सामने कहलवा दिया कि ये तो आप हैं। 

    तथ्यों का कोई सिरा नहीं। शास्त्रीजी की शपथ से परदे पर इंदिरा आहत हैं; अगले दृश्य में ताशकंद में “रहस्यमय” मृत्यु; अगले दृश्य में इंदिरा गांधी की शपथ। 1971 के युद्ध से बड़ी “बांग्लादेशियों” की आमद है। पोकरण के परमाणु परीक्षण को विपक्ष को ध्वस्त करने की रणनीति बताया है। वाइट हाउस में इंदिरा के बोल कड़े हैं, पर घबराहट में मानो कांप रही हैं। दिल्ली में निक्सन का फ़ोन आता है तो खड़ी हो जाती हैं। 

    हाँ, अतिरंजना (जो पूरी फ़िल्म में भरी पड़ी है) के बावजूद संजय गांधी की बुराइयों का बचाव कोई नहीं कर सकता। उनका समांतर सत्तारूप कमोबेश ऐसा ही था। उनकी सनक ने ज़्यादतियों का अंबार खड़ा कर दिया। मीडिया ही नहीं, हर तरह की स्वाधीन अभिव्यक्ति को दबा दिया गया। लेकिन उनकी मौत की उड़ान को माँ की डाँट से जोड़ना छिछला काम है। यों चित्रित किया है मानो स्मृतिदृश्यों की विचलित अवस्था में उन्होंने विमान का नियंत्रण खो दिया।

    संजय गांधी से भिंडरावाले आकर मिले, यह भी फ़िल्म ही बताती है। हमने तो नहीं सुना। मैं दस साल चंडीगढ़ में रह भी आया हूँ।

    फ़िल्म में “इंदिरा इज़ इंडिया इंडिया इज़ इंदिरा” देवकांत बरुआ नहीं कहते, इंदिरा गांधी ख़ुद अपने बारे में बुदबुदाती हैं। धीरेंद्र ब्रह्मचारी फ़िल्म में नहीं, पर जे कृष्णमूर्ति को इतना क़रीब बता दिया जो कि वे कभी न थे। और तो और एक जगह कृष्णमूर्ति भी कह रह हैं “इंदिरा इज़ इंडिया”। यह तो बेवक़ूफ़ी भरे चित्रण की इंतिहा हुई। 

    हिंसा का चित्रण अपार है। त्रिपुरा हो चाहे इमरजेंसी। जॉर्ज फ़र्नांडीज़ को जेल इस तरह पीटा गया, या विपक्षी नेता — राजनीतिक बंदी — जेल में तीसरे दर्जे के अपराधियों सा जीवन बिता आए कभी सुना नहीं।  जेपी तो पीजीआई, चंडीगढ़ में भरती रखे गए थे। रघु राय ने वहाँ उनकी अनेक तस्वीरें खींची थीं। 

    बायोपिक में अंत में तथ्यों की (अगर हों) तो संदर्भ-सूची देनी चाहिए। हालाँकि झूठ ज़्यादा समय टिकता नहीं। पर अंदाज़ा लगाइए कि जिस पीढ़ी को देश के अतीत के बारे में ज़्यादा नहीं पता, वे इसे “इतिहास” समझकर अपना कितना नुक़सान करेंगे।     

    हैरानी की बात नहीं कि निर्देशक के नाते कंगना ने निराश किया है। जरा सोचिए, जेपी, वाजपेयी, मानेकशॉ गाना गाते हुए कैसे लगते होंगे। कलाकारों का चुनाव भी सही नहीं है। कंगना अच्छी अभिनेत्री रही हैं। पर चरित्र को निभाने में बिखर गईं। मेकअप वालों ने नाक मिला दी, पर क़द-काठी कहाँ से लाते। आवाज़ तो उनकी यों है जैसे होठों में फ़ेविकोल लगा हो। 

    अनुपम खेर ने ज़रूर जेपी की भूमिका बेहतर निभाई है। सतीश कौशिक (अब नहीं रहे) तो जगजीवन राम की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ कहे जा सकते हैं। हालाँकि उनके संवादों में जो है, वह पटकथा का झूठ है। वाजपेयी के रूप में श्रेयस तलपड़े कार्टून लगते हैं। विशाक नायर (संजय गांधी), मिलिंद सोमण (मानेकशॉ) और महिमा चौधरी (पुपुल जयकर) जम गए। एक दृश्य में अतिथि भूमिका में मेरे मित्र अरविंद गौड़ भी दिखाई दिए, जो कंगना के गुरु रहे हैं। बालकृष्ण मिश्र एमएफ़ हुसेन हैं, जिन्होंने श्रीमती गांधी को शेर पर सवार ‘दुर्गा’ चित्रित कर दिया था। आगे जाकर कांग्रेस ने ही उन्हें देश छोड़ने को विवश किया।   

    सबसे बड़ा सरदर्द है फ़िल्म का “संगीत”। अनवरत शोर है, मानो हर घड़ी जंग के नगाड़े बज रहे हों। 

    हाँ, यह बताना तो भूल ही गया कि सिनेमाघर लगभग ख़ाली पड़ा था। हमारे आगे की सीटों पर तो एक भी दर्शक नहीं था। द्वारपाल से पूछा तो उसने बताया कि यही हाल पिछले ‘शो’ का था।

     (यह फ़िल्म की समीक्षा नहीं, अपने अनुभव का फ़ौरी साझा भर है।)

    (ओम थानवी के फ़ेसबुक पेज से साभार)

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleराहुल को एक केस में राहत मिली तो दूसरी तरफ असम में नई एफआईआर
    Next Article सैफः हमलावर के बांग्लादेशी कनेक्शन पर तूफान, लेकिन इसकी है खास वजह

    Related Posts

    इस महाभारत का शांतिपर्व कहाँ है?

    June 2, 2025

    Satya Hindi News Bulletin। 2 जून, दोपहर तक की ख़बरें

    June 2, 2025

    सावरकर-गोडसे परिवार के संबंधों को रिकॉर्ड में लाने की राहुल की मांग क्यों ठुकराई?

    June 2, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.