
आम आदमी पार्टी ने आखिराकर औपचारिक रूप से विपक्षी दलों के INDIA गठबंधन से खुद को अलग होने का ऐलान कर दिया है। BJP और NDA के खिलाफ एक वैकल्पिक ताकत बनने के उद्देश्य से बना यह गठबंधन अब अपनी एकता की सबसे बड़ी परीक्षा से गुजर रहा है। AAP की विदाई इस बात का स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि पार्टी अब अपने रणनीतिक एजेंडे को नये सिरे से परिभाषित करना चाह रही है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी न सिर्फ आत्मविश्लेषण की प्रक्रिया में है। साथ ही अपने संगठनात्मक ढांचे को फिर से मजबूत करने पर भी ध्यान दे रही है।
दिल्ली की करारी हार ने दी नई दिशा
पिछले वर्ष हुये लोकसभा चुनावों में तो AAP के खाते में कुछ सीमित कामयाबी तो आई थी। लेकिन असली झटका दिल्ली विधानसभा उपचुनावों में लगा। एक दशक तक राजधानी की राजनीति में दबदबा बनाए रखने वाली पार्टी अचानक 70 में से केवल 22 सीटों तक सिमट गई। खुद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे चेहरे भी अपनी सीटें हार बैठे। इस करारी हार ने पार्टी के भीतर आत्मविश्लेषण की प्रक्रिया शुरू की। गठबंधन में बने रहना, खासकर कांग्रेस के साथ मंच साझा करना पार्टी के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ। पार्टी अपनी स्वतंत्र छवि और वैकल्पिक राजनीति के एजेंडे को खोती हुई नजर आई।
एकला चलो की राह पर आगे बढ़ी राह आप
पार्टी नेतृत्व ने अब यह स्पष्ट किया है कि वह बिना किसी गठबंधन के आगे बढ़ने को तैयार है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब पार्टी ने मुख्यधारा से अलग होकर अपनी राह चुनी हो। पार्टी की नींव ही उस समय पड़ी थी जब अन्ना आंदोलन के दौरान उसने पारंपरिक राजनीति से हटकर एक वैकल्पिक आवाज बनने का दावा किया था। अब एक बार फिर वह अपने उसी जमीनी मॉडल की ओर लौटती नजर आ रही है।
पंजाब में है बड़ी चुनौती
वर्तमान में पंजाब एकमात्र राज्य है जहां आम आदमी पार्टी सत्ता में है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में पार्टी यहाँ अपने शासन की छवि मजबूत करने की कोशिश में है। लेकिन 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे। पंजाब में कांग्रेस विपक्ष के रूप में मजबूती से उभर रही है और सरकार की नीतियों पर लगातार सवाल उठा रही है। अगर राज्य में सत्ता विरोधी लहर तेज हुई तो यह सरकार और संगठन के लिए बड़ा संकट बन सकता है। यह चुनाव सिर्फ सत्ता बचाने की लड़ाई नहीं साथ ही राष्ट्रीय मंच पर प्रासंगिक बने रहने की परीक्षा भी है।
गुजरात में बीजेपी को पार्टी दे रही चुनौती
दिल्ली की हार के कुछ हफ्तों बाद पार्टी ने दो उपचुनावों में जीत दर्ज की। एक पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट और दूसरी गुजरात के विसावदर क्षेत्र में। खासकर गुजरात में बीजेपी को हराना जहां वह दो दशकों से शासन कर रही है एक राजनीतिक उपलब्धि मानी जा रही है।
इन जीतों से यह संदेश गया कि पार्टी अपने दम पर भी चुनाव लड़कर भी दमदार प्रदर्शन कर सकती है। यह पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला संकेत भी था और भविष्य की रणनीति की दिशा देने में अहम योगदान किया है। 2022 में गुजरात विधानसभा चुनावों में पांच सीटें जीतने के बाद से ही पार्टी वहां अपनी मौजूदगी बढ़ाने में जुटी है। कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाकर वह खुद को मुख्य विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है।
पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिये गठबंधन छोड़ा
आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस से दूरी बनाना महज रणनीतिक फैसला नहीं है। यह उसकी राजनीतिक पहचान से जुड़ा अस्तित्व का सवाल बन चुका है। इंडिया ब्लॉक में बने रहकर वह न तो भाजपा की वैकल्पिक ताकत के रूप में उभर पा रही थी न ही अपने समर्थकों को स्पष्ट रूप से कोई संदेश दे पा रही थी। अब पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों से समान दूरी बनाते हुए खुद को एक अलग विकल्प के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है।