
New Vice President Candidate Name: भारत निर्वाचन आयोग ने 23 जुलाई को जैसे ही ऐलान किया कि हम उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं, पूरे दिल्ली दरबार में कुर्सियाँ सरकने लगीं। अटकलों की धूल हवा में तैरने लगी, जैसे गर्मी में संसद भवन की AC बंद हो गई हो। जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के दो दिन बाद यह खबर आई लेकिन हर कोई जानता है कि यह ‘स्वास्थ्य’ अब नई राजनीति में कोडवर्ड बन चुका है जिसका अर्थ है मौसमी असहमति, भीतरघात से जलन या फिर पीएमओ से असहजता।
धनखड़ का इस्तीफा: शुद्ध नियम या शुद्ध संकेत?
धनखड़ जी ने 2022 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था। पाँच साल के कार्यकाल का वादा था लेकिन जैसे ही उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग नोटिस स्वीकारा, उनकी राजनीतिक हड्डियों में ठंडक उतर आई और दो केंद्रीय मंत्रियों के औपचारिक-संवाद के बाद उन्हें अचानक ‘बीपी लो’ हो गया।
जनता समझ रही है कि धनखड़ जी ने संविधान पढ़ लिया। सत्ता को लगा कि ये तो बगावत कर ली। अब चुनाव आयोग चुनाव कराएगा, सांसद वोट देंगे पर असली चुनाव तो अब नामों की लीला में हो रहा है।
अब कौन बनेगा उपराष्ट्रपति? अटकलों का महासंग्राम
हरिवंश नारायण सिंह – जेडीयू का जेंटलमैन
राज्यसभा के उपसभापति, शालीनता के प्रतीक। जब बोलते हैं तो लगता है जैसे संविधान खुद शब्दों में ढल रहा हो पर एनडीए में ये डर है कि कहीं ये भी धनखड़-प्रजाति न निकले जो पहले विनम्र हों फिर नियम पढ़ लें।
रामनाथ ठाकुर – कर्पूरी पुत्र और वोट बैंक का सूत्र
बिहार के कृषि राज्यमंत्री और महान समाजवादी कर्पूरी ठाकुर के बेटे। सामाजिक न्याय की राजनीति का उत्तराधिकार और नाई समुदाय का प्रतिनिधित्व मतलब एक तीर से तीन जातीय निशाने। उनके नाम पर चर्चा हुई और नड्डा जी ने खुद मुलाकात कर ली। लेकिन मुलाकात का मकसद अभी तक स्वास्थ्य कारणों से स्पष्ट नहीं हो पाया।
नीतीश कुमार – संघर्षशील सीएम या सुलझे हुए वीपी?
नीतीश बाबू का नाम भी घूम रहा है। लेकिन उन्हें उपराष्ट्रपति बनने के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी होगी। यानी वे पद छोड़ें और दिल्ली आ जाएं ये सोचकर ही नीतीश जी ने फ़िलहाल सबका फोन उठाना बंद कर दिया है।
राजनाथ सिंह – संघर्ष के सेनापति या लोकतंत्र के दार्शनिक?
देश के रक्षा मंत्री, लेकिन कई बार सत्ता की रक्षा करते-करते खुद ही ‘अलगा’ कर दिए जाते हैं। उपराष्ट्रपति पद के लिए सम्मानजनक रिटायरमेंट प्लान माना जा रहा है, बशर्ते उनकी संघीय सहजता फिर से याद न आ जाए।
जेपी नड्डा – अध्यक्ष से उपराष्ट्रपति की यात्रा
जेपी नड्डा अभी पार्टी अध्यक्ष हैं। इस्तीफा दे दें तो पद खाली, न दें तो दुविधा और इसी दुविधा में भाजपा उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर इस स्वास्थ्य संबंधी तनाव से मुक्त करना चाहती है।
शशि थरूर – संविधान और अंग्रेज़ी दोनों के ज्ञाता
थरूर का नाम चर्चा में है, लेकिन पार्टी से दूरी, और सदन से प्रेम दोनों साथ नहीं निभते। उपराष्ट्रपति बनते हैं तो सांसद पद छोड़ना होगा, और भाषणों में “floccinaucinihilipilification” जैसे शब्दों की भरमार संसद को फिर से ऑक्सफोर्ड बना देगी। कांग्रेस सहमत नहीं, पर सोशल मीडिया रोमांचित।
क्या फिर आएगा चौंकाने वाला नाम?
भाजपा की पुरानी रणनीति रही है जब सब सोचें राम, तब लाओ श्याम। यानी जब सब हरिवंश, ठाकुर, सिन्हा के गुण गा रहे हों, तो पार्टी किसी गुप्त पन्ने से ऐसा नाम निकाल देती है जो न नर्म हो, न गरम बल्कि पूरी तरह ‘अनुकूल’। उदाहरण रामनाथ कोविंद, द्रौपदी मुर्मू अब कोई आश्चर्य नहीं अगर पार्टी कहे हमने व्हाट्सएप फॉरवर्ड पढ़ा और उपराष्ट्रपति तय कर लिया।
लोकतंत्र चल रहा है, पर दिशा ‘गुप्त मतदान’ से ही तय होगी
धनखड़ जी चले गए। कारण स्वास्थ्य बताया गया, पर समस्या शायद सत्ता का उच्च रक्तचाप थी। अब चुनाव होगा, गुप्त मतदान होगा, सांसद मतदान करेंगे और शायद कुछ ‘स्वस्थ व्यक्ति’ उपराष्ट्रपति बनेंगे। लेकिन जब तक चुनाव नहीं होता, यह तय है उपराष्ट्रपति की कुर्सी खाली है, लेकिन राजनीति उसमें बैठकर तस्वीरें ले रही है।