
Babu Jagjivan Ram’s Fall (Photo: Social Media)
Babu Jagjivan Ram’s Fall
यह कहानी 1978 के आस-पास की है, जब भारतीय राजनीति एक शर्मनाक सेक्स स्कैंडल की गिरफ्त में आ गई थी, जिसने बाबू जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया था। इस घटनाक्रम का मुख्य पात्र थे बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम, जिनके नाम पर एक विवादित सेक्स स्कैंडल उभरा। यह विवाद न सिर्फ उनकी राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंचाने वाला था, बल्कि इसने भारतीय राजनीति में कुछ महत्वपूर्ण मोड़ों को भी जन्म दिया।
कहानी की शुरुआत अगस्त 1978 में होती है, जब सुरेश राम ने दिल्ली के कश्मीरी गेट पुलिस स्टेशन में किडनैपिंग की शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि 20 अगस्त को वह अपनी दोस्त सुषमा के साथ अपनी मर्सिडीज कार से यात्रा कर रहे थे। रास्ते में दो टैक्सियों ने उनकी कार का रास्ता रोका और करीब 10 हथियारबंद लोग उन्हें अगवा कर ले गए। सुरेश ने पुलिस को बताया कि उन्हें लोनी गांव में एक स्कूल की इमारत में बंद कर दिया गया था। इन किडनैपर्स में से एक शख्स ने अपनी पहचान ओमपाल सिंह के रूप में बताई और सुरेश से तीन अजीबोगरीब मांगें कीं एक पत्र लिखने के लिए, सुषमा पर आरोप लगाने के लिए और कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए। जब सुरेश ने इन मांगों को ठुकराया, तो उसे बेरहमी से पीटा गया और उसके बाद यह दावा किया गया कि सुरेश और सुषमा की आपत्तिजनक तस्वीरें खींच ली गई हैं। इन दोनों को आखिरकार रात के लगभग तीन बजे छोड़ दिया गया।
यह घटना सिर्फ सुरेश राम की व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़ी नहीं थी, बल्कि भारतीय राजनीति में भूचाल ला रही थी। जिन तस्वीरों का हवाला दिया गया, उनके कारण बाबू जगजीवन राम की राजनीतिक छवि खतरे में आ गई थी। ये तस्वीरें उनके बेटे सुरेश के सेक्स स्कैंडल से जुड़ी थीं, और यदि ये तस्वीरें सार्वजनिक हो जातीं, तो यह उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को समाप्त कर सकती थीं। मीडिया में इन तस्वीरों के आने से बाबू जगजीवन राम के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं।
इन्हीं तस्वीरों को लेकर कुछ अलग-अलग थ्योरी भी सामने आईं। एक के अनुसार, किडनैपिंग के दौरान किडनैपर्स ने तस्वीरें खींचीं, जबकि दूसरे अनुसार, ये तस्वीरें एक एक्सीडेंट के दौरान छीन ली गई थीं। तीसरी थ्योरी के मुताबिक, ये तस्वीरें राज नारायण के हाथ लगी थीं, जब सुरेश राम ने सिगरेट का पैकेट निकाला था और तस्वीरें नीचे गिर गई थीं।
इन तस्वीरों के सामने आने से बाबू जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनने का सपना खतरे में पड़ गया था। बाबू जगजीवन राम, जो कि जनता पार्टी के प्रमुख सदस्य थे, 1977 में हुए चुनाव में प्रधानमंत्री बनने के प्रमुख दावेदार थे। हालांकि, मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन यह स्कैंडल उनके राजनीतिक करियर को पूरी तरह से प्रभावित करने वाला था।
जब राज नारायण को इन तस्वीरों का पता चला, तो उन्होंने इन्हें गुप्त रूप से कपिल मोहन के जरिए संजय गांधी तक पहुँचाया। यह सब एक साजिश का हिस्सा था, ताकि बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोका जा सके। इस दौरान, बाबू जगजीवन राम ने राज नारायण से इन तस्वीरों को वापस पाने के लिए संपर्क किया और उन्हें किसी भी कीमत पर उन्हें सौंपने की पेशकश की चाहे वह पैसा हो या मंत्री पद। हालांकि, राज नारायण ने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया, और स्थिति बद से बदतर होती चली गई।
इसी बीच, पुलिस ने इस मामले में छापेमारी की और ओमपाल सिंह और केसी त्यागी को गिरफ्तार किया। मीडिया में इन तस्वीरों की खबर फैलने के बाद, यह मामला पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गया। भारतीय एक्सप्रेस जैसे प्रमुख समाचार पत्रों में इस घटना की रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें सुरेश राम को सेक्स रैकेट से जोड़कर पेश किया गया।
इस पूरे मामले में सूर मैगजीन का भी बड़ा हाथ था। यह मैगजीन, जिसकी मालकिन मेनका गांधी थीं, ने सुरेश और सुषमा की नग्न तस्वीरों को प्रकाशित किया, जो कि किसी अन्य मीडिया हाउस ने नहीं छापा था। सूर मैगजीन ने इसे सिर्फ एक सेक्स स्कैंडल के रूप में नहीं दिखाया, बल्कि इसे हनी ट्रैप का मामला भी बताया। इस मैगजीन ने आरोप लगाया कि सुरेश राम ने डिफेंस सीक्रेट्स लीक किए थे और बाबू जगजीवन राम को रिश्वत दी गई थी।
यह स्कैंडल इंदिरा गांधी और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बाबू जगजीवन राम के बीच प्रतिशोध का हिस्सा बन गया। इंदिरा गांधी ने बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए इस घटना का इस्तेमाल किया, और यह पूरी साजिश चौधरी चरण सिंह के पक्ष में गई। इसके बाद जब मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दिया, तो इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन दिया। बाबू जगजीवन राम के पास संसद में बहुमत था, लेकिन राष्ट्रपति एम संजीवा रेड्डी ने उन्हें सरकार बनाने का अवसर नहीं दिया, और चुनावों की घोषणा कर दी।
इस घटना के बाद, सुरेश राम ने सुषमा से शादी की, लेकिन बाद में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। बाबू जगजीवन राम, जिनके प्रधानमंत्री बनने का सपना इस विवाद के कारण टूट गया, 1986 में इस दुनिया से चले गए।