अशोका विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट लिखी थी। गिरफ्तारी बीजेपी युवा मोर्चा के एक नेता की शिकायत के आधार पर हुई, जिसमें प्रोफ़ेसर की पोस्ट को आपत्तिजनक और भ्रामक बताया गया।
अली खान महमूदाबाद हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष हैं। पुलिस के अनुसार, अली खान महमूदाबाद के ख़िलाफ़ शनिवार को सोनीपत के राई क्षेत्र में एक मामला दर्ज किया गया था। यह कार्रवाई हरियाणा राज्य महिला आयोग द्वारा उनकी पोस्ट का स्वत: संज्ञान लेने और समन भेजे जाने के बाद की गई। पोस्ट में ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े प्रेस ब्रीफिंग और इसमें शामिल महिला अधिकारियों पर टिप्पणी को लेकर सवाल उठाए गए थे। आयोग ने उनकी टिप्पणियों को ‘राष्ट्रीय सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने का प्रयास’ माना है।
महमूदाबाद ने ऑपरेशन सिंदूर पर महिला अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा दी गई मीडिया ब्रीफिंग के प्रभाव को अहम बताया था, लेकिन उन्होंने कहा कि अगर यह जमीनी हकीकत में नहीं बदला तो यह ‘पाखंड’ होगा।
प्रोफ़ेसर महमूदाबाद ने अपने बचाव में कहा कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट में कुछ भी महिलाविरोधी नहीं था और यह ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग में कथित ‘दोहरे मापदंड’ को सामने रखने का प्रयास था। उन्होंने एक बयान में कहा, ‘मेरे टिप्पणियों में कुछ भी अपमानजनक नहीं था। यह केवल भेदभाव और पाखंड पर सवाल उठाने का प्रयास था।’
महमूदाबाद ने यह भी कहा कि समन में यह साफ़ नहीं किया गया कि उनकी पोस्ट महिलाओं के अधिकारों या क़ानूनों के ख़िलाफ़ कैसे है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘आरोपों के विपरीत, मेरी पोस्ट ने इस तथ्य की सराहना की थी कि सशस्त्र बलों ने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए चुना, ताकि यह दिखाया जा सके कि हमारे गणतंत्र के संस्थापकों का विविधता में एकजुट भारत का सपना अभी भी जीवित है।’ उन्होंने कहा, “यह सेंसरशिप और उत्पीड़न का एक नया रूप है। …मुझे कानूनी प्रक्रिया में विश्वास है और मुझे पता है कि मेरे मौलिक, संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी।’
बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर भारत की एक सैन्य कार्रवाई थी, जिसे पहलगाम में हुए आतंकी हमलों के जवाब में शुरू किया गया था। इस ऑपरेशन को लेकर सरकार ने कई प्रेस ब्रीफिंग आयोजित की थीं, जिनमें महिला अधिकारियों की भूमिका को विशेष रूप से सामने लाया गया था। प्रोफ़ेसर महमूदाबाद ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इन ब्रीफिंग्स पर टिप्पणी की थी, जिसे बीजेपी युवा मोर्चा के एक नेता ने आपत्तिजनक माना और शिकायत दर्ज की।
पुलिस ने बताया कि प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। हालाँकि, उस पोस्ट की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। इससे इस मामले में और रहस्य गहरा गया है।
इस गिरफ्तारी ने अकादमिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अशोका विश्वविद्यालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि वह मामले के विवरण की जांच कर रहा है और अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहा है। इसने कहा, ‘हमें सूचित किया गया है कि प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद को आज सुबह पुलिस हिरासत में लिया गया है। हम मामले की जानकारी जुटाने की प्रक्रिया में हैं। विश्वविद्यालय पुलिस और स्थानीय अधिकारियों के साथ जांच में पूरी तरह से सहयोग करना जारी रखेगा।’ इससे पहले संस्थान ने साफ़ किया था कि महमूदाबाद ने अपनी टिप्पणियाँ ‘व्यक्तिगत क्षमता’ में की थीं और वे संस्थान की राय का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं।
सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। कई यूजर्स ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया, जबकि कुछ ने सरकार के क़दम का समर्थन करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता ज़रूरी है।
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस गिरफ्तारी की निंदा की और इसे ‘लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘यह गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। सरकार को चाहिए कि वह इस तरह की कार्रवाइयों से पहले तथ्यों की जांच करे।’
पुलिस ने बताया कि प्रोफ़ेसर महमूदाबाद को दिल्ली में हिरासत में लिया गया है और मामले की जांच जारी है। उनके वकील ने कहा कि वे जल्द ही जमानत के लिए आवेदन करेंगे और इस मामले को अदालत में चुनौती दी जाएगी।