महाराष्ट्र में आप यदि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणाओं से बम-बम हैं तो राज्य की आर्थिक हालत भी देख लीजिए। पहले से राज्य ने जो कर्ज ले रखे हैं उसको भुगतान करने का समय आ गया है और सात साल में पौने तीन लाख करोड़ रुपये चुकाने होंगे। लेकिन यदि इन कर्ज को चुकाने से पहले ही ऐसी घोषणाएँ कर दी जाएँ कि देश का खजाना ही खाली हो जाए तो भुगतान कहाँ से होगा कहीं ऐसी तो नौबत नहीं आ जाएगी कि और कर्ज ही लेना पड़ जाए
राज्य में राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणाओं के रूप में ‘रेवड़ियाँ’ बाँटे जाने से कुछ हफ़्ते पहले ही भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी ने राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर जो रिपोर्ट दी है वह चेताने वाली है। 14 मई को आख़िरी वित्तीय वर्ष के लिए सीएजी की राज्य वित्त लेखा परीक्षा रिपोर्ट एकनाथ शिंदे सरकार को दी गई और इसे 12 जुलाई को विधानसभा में पेश किया गया।
सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि महाराष्ट्र के बकाये कर्ज का 59.54% हिस्सा 2030 तक चुकाया जाना है। पहले के ये कर्ज नयी सरकार के लिए सिर दर्द बनने वाले हैं क्योंकि इससे सरकार की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ेगा। द इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के अंत में महाराष्ट्र की बकाया देनदारियाँ 6.61 लाख करोड़ रुपये या उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 18.73% थीं, जिनमें से 80% (5.32 लाख करोड़ रुपये) सार्वजनिक ऋण था। 5.33 लाख करोड़ रुपये के कुल बकाये सार्वजनिक ऋण में से 4.62 लाख करोड़ रुपये की भुगतान करने की आख़िरी तारीख़ के बारे में जानकारी उपलब्ध है।
इससे संकेत मिलता है कि कुल बकाया सार्वजनिक ऋण का 59.54 प्रतिशत यानी 2,75,650.4 करोड़ रुपये अगले सात वर्षों के भीतर चुकाया जाना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार को एक अच्छी तरह तैयार की गई उधार चुकौती रणनीति पर काम करना होगा। इतना ही नहीं, सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को अपने कर और गैर-कर राजस्व संसाधनों को बढ़ाना होगा। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राज्य को अगले तीन वित्तीय वर्षों में यानी 2025-26 तक 94,845.35 करोड़ रुपये के बाजार ऋण चुकाने होंगे और 83,453.17 करोड़ रुपये का ब्याज देना होगा।
राज्य के खजाने पर बढ़ते कर्ज के बोझ को उजागर करते हुए सीएजी ने कहा है, ‘राज्य सरकार का आंतरिक कर्ज 2018-19 में 25,686.29 करोड़ रुपये से 51,650.66 करोड़ रुपये (201.08 प्रतिशत) बढ़कर 2022-23 में 77,336.95 करोड़ रुपये हो गया। 2022-23 के दौरान आंतरिक ऋण पर ब्याज के रूप में 36,634.32 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसके अलावा, 2022-23 के दौरान उठाए गए आंतरिक ऋण का 47 प्रतिशत पहले के कर्ज के पुनर्भुगतान के लिए उपयोग किया गया, जबकि 2021-22 में यह 48 प्रतिशत था।’
कुल मिलाकर राज्य की हालत ऐसी है कि कर्ज और इस पर आए ब्याज को चुकाने के लिए भी राज्य सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है। तो सरकार अपनी आमदनी कैसे बढ़ाएगी वह भी तब जब चुनाव के मौसम में रेवड़ियाँ बाँटी जा रही हैं
23 नवंबर के बाद आने वाली नई सरकार के लिए सीएजी ऑडिट की रिपोर्ट काफ़ी अहम है क्योंकि ऋण चुकौती की देनदारी के कारण उसके पास अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए बहुत कम राजकोषीय गुंजाइश बचेगी।
20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले महायुती और महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए गठबंधन द्वारा की गई घोषणाओं से राज्य के खजाने पर और दबाव पड़ सकता है।
कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एसपी) वाले विपक्षी एमवीए गठबंधन की पांच गारंटी में महिलाओं के लिए 3,000 रुपये प्रति माह और मुफ्त बस यात्रा, 3 लाख रुपये तक के कृषि ऋण की माफी और बेरोजगार युवाओं के लिए 4,000 रुपये की मासिक सहायता शामिल है।
शिवसेना, भाजपा और राकांपा के सत्तारूढ़ गठबंधन वाली महायुती ने कृषि ऋण माफी के अलावा माझी लाड़की बहन योजना के तहत मासिक भुगतान मौजूदा 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये करने और किसानों के लिए नमो शेतकारी महासम्मान निधि योजना के तहत राशि 12,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये प्रति माह करने का वादा किया है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में 9.7 करोड़ मतदाताओं में से 4.7 करोड़ महिलाएँ हैं और महायुती सरकार का लक्ष्य उनमें से 2.5 करोड़ को लाड़की बहन योजना के तहत कवर करना है। मासिक भुगतान में वृद्धि के साथ, राज्य सरकार को उन्हें कवर करने के लिए सालाना 63,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। यह 2.5 करोड़ महिलाओं को कवर करने के लिए 45,000 करोड़ रुपये की मौजूदा अनुमानित राशि की तुलना में 40% की वृद्धि होगी।
महिलाओं के लिए एमवीए की प्रस्तावित नकद योजना के लिए वार्षिक बजटीय आवश्यकता और भी अधिक होगी। 3,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से, 2.5 करोड़ महिलाओं को कवर करने के लिए आवश्यक वार्षिक बजटीय परिव्यय 90,000 करोड़ रुपये होगा। यदि ऐसा होता है, तो इस योजना के लिए वार्षिक आवंटन मनरेगा और केंद्र सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना से अधिक होगा।