पंजाब के प्रदर्शनकारी किसानों ने शनिवार को दूसरे दिन भी अपना “दिल्ली चलो” मार्च जारी रखा और बड़ी संख्या में हरियाणा-पंजाब शंभू सीमा पर एकत्र हैं। आंदोलनकारी कल रविवार 8 दिसंबर को दिल्ली तक मार्च करने वाले हैं। एक किसान नेता ने कहा कि वे यह देखने का इंतजार कर रहे हैं कि क्या केंद्र बातचीत के लिए कोई प्रस्ताव पेश करता है। अंबाला में धारा 144 लागू कर दी गई है, जिससे पांच या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई है। यानी सरकार निहत्थे किसानों को फिर से रोकने पर आमादा है।
101 निहत्थे किसानों ने शुक्रवार को दिल्ली मार्च को आगे बढ़ाया था। लेकिन हरियाणा पुलिस ने उन्हें शंभू बॉर्डर पर रोक लिया। उन पर लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े। इस वजह से 15 किसान घायल हो गए और लगभग 17 को अस्पतालों में भर्ती कराया गया। किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम, गैर-राजनीतिक) ने कहा कि वो रविवार को फिर से दिल्ली कूच के लिए तैयार हैं।
सवाल यह कि क्या पुलिस किसानों को विरोध प्रदर्शन करने और दिल्ली जाने से रोक सकती है
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(बी) शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होने के अधिकार की गारंटी देता है जबकि अनुच्छेद 19(1)(डी) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार की बात करता है। हालाँकि, अनुच्छेद 19(1) के तहत सभी अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19(2) राज्य को संप्रभुता के हित में अनुच्छेद 19(ए1) के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए कानूनों का उपयोग करने के लिए अधिकृत करता है।
2 दिसंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल से कहा कि वे प्रदर्शनकारी किसानों को राजमार्गों को बाधित न करने और लोगों को असुविधा न पहुंचाएं। हालांकि किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्ट निर्देश के बाद किसान संगठनों ने तय किया कि वे 101 निहत्थे किसानों को दिल्ली अपनी बात कहने के लिए भेजगी। किसानों ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि 101 निहत्थे किसानों का दिल्ली कूच शुक्रवार को शुरू होगा। इधर पहले से कुछ और तैयारी थी। पंजाब-हरियाणा सीमा पर बैरिकेडिंग कर दी गई, कीलें गाड़ दी गईं और कंटीले तार फैला दिए गए। इसके बावजूद 101 निहत्थे किसान जब आगे बढ़े तो उन्हें रोकने के लिए आंसू गैस छोड़ी गई, लाठी चार्ज किया गया। बहुत स्पष्ट है कि किसान न सिर्फ निहत्थे थे, बल्कि शांति से आगे बढ़ रहे थे लेकिन उन्हें रोक कौन रहा था।
किसान नेता पंधेर ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्र सरकार ने फरवरी से उनसे कोई बात नहीं की है। वे अभी भी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि सरकार उनसे बात करेगी। पीएम मोदी से लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान तक कह रहे हैं किसान अन्नदाता हैं। लेकिन निहत्थे अन्नदाता पर फिर लाठी क्यों।