ईरान का इतिहास प्राचीन फारस की गौरवशाली सभ्यता से शुरू होता है, लेकिन आज यह देश वैश्विक मंच पर अपने सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली होसैनी ख़ामेनेई के कारण चर्चा में है। 86 वर्ष की आयु में खामैनी ने न केवल अमेरिका के दबाव को ठुकराया, बल्कि इसराइल पर हमले का जोखिम भी उठाया। उन्होंने धमकी दी कि यदि अमेरिका ने इसराइल का साथ दिया, तो उसके ठिकानों को भी निशाना बनाया जाएगा। आखिर ख़ामेनेई कौन हैं, और किस साहस के दम पर वे विश्व की महाशक्ति से टकराने को तैयार हैं? क्या वे 1979 की इस्लामी क्रांति के अंतिम क्रांतिकारी हैं, जो पश्चिमी हस्तक्षेप के सामने डटकर मुकाबला कर रहे हैं, या फिर एक तानाशाह हैं, जो नागरिक अधिकारों का दमन कर रहे हैं?
प्रारंभिक जीवन
अली होसैनी ख़ामेनेई का जन्म 17 जुलाई, 1939 को ईरान के पवित्र शहर मशहद में हुआ। उनका परिवार सादा लेकिन धार्मिक था। उनके पिता, सय्यद जवाद खामैनी, एक शिया धर्मगुरु थे, और मां, खदीजा मिरदामादी, एक धार्मिक परिवार से थीं। आठ भाई-बहनों में से एक, ख़ामेनेई का पालन-पोषण शिया इस्लाम की गहरी परंपराओं में हुआ।
15 वर्ष की उम्र में ख़ामने ने मशहद के धार्मिक स्कूलों में शिया इस्लाम की पढ़ाई शुरू की। बाद में वे क़ोम शहर गए, जो शिया विद्वानों का केंद्र है। वहां उन्होंने अयातुल्लाह हुसैन बोर्जरदी और अयातुल्लाह रूहोल्लाह खोमैनी जैसे गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की। खुमैनी बाद में 1979 की इस्लामी क्रांति के नायक बने। लेकिन 1950 के दशक में शाह की नीतियों ने ख़ामेनेई की जिंदगी को नया मोड़ दिया।
फ़ारस से ईरान
ईरान का इतिहास 550 ईसा पूर्व के अकेमेनिद साम्राज्य से शुरू होता है, जिसे साइरस महान ने स्थापित किया। लेकिन आधुनिक ईरान की नींव 1925 में पड़ी, जब रज़ा शाह पहलवी ने क़ाजार राजवंश (1794-1925) को उखाड़कर पहलवी राजवंश की स्थापना की। उन्होंने देश का नाम ‘फारस’ से ‘ईरान’ (आर्यों की भूमि) किया, जो 1935 में आधिकारिक हुआ। यह नाम प्राचीन पारसी पहचान को रेखांकित करता था।
1925 में रज़ा शाह ने इसे कमज़ोर कर निरंकुश शासन स्थापित किया। 1941 में उनके बेटे, मोहम्मद रज़ा शाह, सत्ता में आये। 1951 में लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देक ने तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया, लेकिन 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने ‘ऑपरेशन अजाक्स’ के तहत उनका तख्तापलट करवाया और शाह को पूर्ण शक्ति सौंप दी।
इस्लामी क्रांति
1960 के दशक में शाह की पश्चिमी नीतियाँ और निरंकुशता के ख़िलाफ़ खामेनेई ने आवाज़ उठाई। वे अयातुल्लाह ख़ुमैनी के शिष्य थे, जो ‘विलायत-ए-फकीह’ (इस्लामी शासन) का सिद्धांत दे रहे थे। 1963 में ख़ामेनेई को शाह की ‘श्वेत क्रांति’ की आलोचना करने पर गिरफ्तार किया गया। शाह की खुफिया पुलिस ने उन्हें छह बार जेल में डाला और यातनाएं दीं। लेकिन ख़ामेनेई का संकल्प अटल रहा।
1979 की इस्लामी क्रांति में ख़ामेनेई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने फ्रांस में निर्वासित खुमैनी के संदेशों को जनता तक पहुंचाया और क़ोम व मशहद में प्रदर्शनों को संगठित किया। इस क्रांति ने शाह को सत्ता से बेदखल कर ईरान को इस्लामिक गणराज्य बनाया।
राष्ट्रपति ख़ामेनेई
1981 में ख़ामेनेई ईरान के राष्ट्रपति बने। 1989 में ख़ुमैनी की मृत्यु के बाद विशेषज्ञों की सभा ने उन्हें सुप्रीम लीडर चुना। यह फैसला आश्चर्यजनक था, क्योंकि उस समय वे ‘होज्जतोल-इस्लाम’ थे, न कि ‘अयातुल्लाह-उज़्मा’। शिया इस्लाम में ‘होज्जतोल-इस्लाम’ मध्यम स्तर का धार्मिक विद्वान होता है, जो शिक्षा दे सकता है। ‘अयातुल्लाह’ उच्च स्तर का विद्वान है, और ‘अयातुल्लाह-उज़्मा’ (ग्रैंड अयातुल्लाह) सर्वोच्च स्तर है, जो धार्मिक कानून (फतवा) जारी करता है।
अमेरिका और इसराइल को चुनौती
86 वर्ष की आयु में ख़ामेनेई अमेरिका और इसराइल को ललकार रहे हैं। मार्च 2025 में उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों का जवाब दिया, “अमेरिका हमला करेगा, तो उसे पछताना पड़ेगा।” उनका ये अंदाज़ शिया इस्लाम के ‘ज़ुल्म के खिलाफ जिहाद’ के सिद्धांत और ख़ामेनेई की आत्मनिर्भरता की नीति से प्रेरित है। उनकी ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ नीति हिज़बुल्लाह, हमास, और हूती विद्रोहियों को समर्थन देती है। कई लोग उन्हें ‘मज़लूमों का मसीहा’ मानते हैं, जो फ़िलिस्तीन और यमन जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं।
13 जून, 2025 को इसराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों—नतांज़ और फोर्डो—पर हमला किया, जिसमें इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर हुसैन सलामी मारे गए। जवाब में, ईरान ने तेल अवीव पर मिसाइलें दागीं। खामैनी ने इसे ‘इसराइल को सजा’ बताया। उनकी परमाणु नीति भी उनकी दृढ़ता को दर्शाती है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की जून 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के पास 408.6 किलोग्राम 60% संवर्धित यूरेनियम है, जो हथियार-ग्रेड स्तर से एक कदम दूर है। कुछ विशेषज्ञ इसे रणनीतिक मोलभाव मानते हैं, जो ईरान को वैश्विक शक्ति देता है, लेकिन अन्य इसे ‘खतरनाक जुआ’ कहते हैं, जो युद्ध को न्योता दे सकता है।
आंतरिक असंतोष
ख़ामेनेई के शासन में ईरान की संप्रभुता मजबूत हुई, लेकिन आंतरिक असंतोष भी बढ़ा। 16 सितंबर, 2022 को 22 वर्षीय महसा अमीनी की हिजाब नियम तोड़ने के आरोप में हिरासत में मौत ने देश को हिला दिया। लाखों महिलाएं और मानवाधिकार कार्यकर्ता ‘ज़िंदगी, आज़ादी’ के नारे के साथ सड़कों पर उतरे। लेकिन सरकार ने इन प्रदर्शनों को बेरहमी से कुचल दिया। सैकड़ों लोग मारे गए, और हजारों गिरफ्तार हुए। ख़ामेनेई ने इन आंदोलनों को ‘पश्चिमी साजिश’ करार दिया। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि उनका शासन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों को दबाता है।
लोकतंत्र या तानाशाही?
ईरान में ‘विलायत-ए-फ़कीह’ के तहत सुप्रीम लीडर सर्वोच्च शक्ति रखता है। ख़ामेनेई ने सुनिश्चित किया कि उनके पास जवाबदेही के बिना सत्ता हो, जबकि निर्वाचित राष्ट्रपतियों के पास सत्ता के बिना जवाबदेही हो। राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन जैसे सुधारवादी भी उनकी मंजूरी के बिना कुछ नहीं कर सकते। 2024 के चुनाव में केवल वफादार उम्मीदवारों को अनुमति मिली, जिसे कई लोग लोकतंत्र का दिखावा मानते हैं। ख़ामेनेई के समर्थक तर्क देते हैं कि उनका शासन पश्चिमी हस्तक्षेप से ईरान को बचाता है, और इस्लामी शासन देश की एकता की गारंटी है।
भविष्य का सवाल
ख़ामेनेई और ईरान का भविष्य अगले कुछ दिनों में तय हो सकता है। यदि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश इसराइल के साथ खुलकर युद्ध में उतरे, तो ईरान के लिए स्थिति जटिल हो सकती है। इराक का उदाहरण सामने है, जहां अमेरिकी बमबारी ने देश को तबाह कर दिया था। लेकिन यदि ईरान इस टकराव में टिका रहा, तो ख़ामेनेई पश्चिम के ख़िलाफ़ संघर्ष के एक चमकते सितारे बन सकते हैं। बहरहाल, इतिहास का फ़ैसला आना बाक़ी है।