बुधवार को केंद्र की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने देश में जातीय जनगणना कराने की घोषणा की तो राजद नेता तेजस्वी यादव पटाखे फोड़ रहे थे। यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण संकेत था कि तेजस्वी यादव और उनके सहयोगी दल मोदी सरकार के जनगणना कराने के फ़ैसले को कितने उत्साह से ले रहे हैं।
उनकी ओर से यह याद दिलाया जा रहा है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने जातीय जनगणना का विरोध किया था और भारत में केवल चार जातियाँ होने का दावा किया था। उनकी पूरी कोशिश यह संदेश देने की है कि उन्होंने सरकार को ‘झुकाया’ है और दबे कुचले लोगों की आवाज़ उठाई है। इस घोषणा का एक नकारात्मक असर यह पड़ा है कि भारतीय जनता पार्टी के जो सवर्ण वर्ग के समर्थक हैं उनमें मायूसी है और कई लोग कहते हैं कि शायद चुनाव में भी यह मायूसी झलके। सोशल मीडिया पर इस फ़ैसले को लेकर सवर्ण वर्ग को भारी असमंजस में देखा जा रहा है।
कुछ लोगों ने यह ज़रूर कहा है कि मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से विपक्ष से जातीय जनगणना का मुद्दा छीन लिया है लेकिन राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि इस समय भाजपा पूरी तरह बैकफुट पर है और उसे यह बताने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी कि उसकी नीयत जनगणना कराने की थी और है, क्योंकि अभी केवल घोषणा हुई है।
सबको मालूम है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार द्वारा घोषित जातीय जनगणना होनी नहीं है। इतना जरूर है कि महागठबंधन की सरकार के दौरान जो जातीय गणना कराई गई थी उसका श्रेय लेने और उस पर कार्रवाई न होने की बहस ज़रूर विधानसभा चुनाव पर असर डालेगी। तेजस्वी यादव ने इस घोषणा पर कहा कि 29 साल पहले जनता दल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा की समाजवादी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट द्वारा जातिगत जनगणना के निर्णय को पलटने वाली एनडीए सरकार दोबारा उस निर्णय पर निर्णय लेने के लिए बाध्य हुई है। उन्होंने इसका श्रेय राजद प्रमुख लालू प्रसाद समेत सभी समाजवादियों को दिया। उन्होंने इसे समाजवादियों की जीत बताते हुए पटाखा फोड़ कर ‘सामाजिक न्यायवादियों’ को बधाई दी।
कांग्रेस ने यह कहना शुरू कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वही किया जिसकी मांग कांग्रेस नेता राहुल गांधी करते आ रहे थे। बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस को इस बात का फायदा मिलने की संभावना बताई जा रही है, खासकर इसलिए भी कि उसने अपना प्रदेश अध्यक्ष एक दलित को बनाया और जिला अध्यक्षों के चुनाव में भी दलितों, ओबीसी-ईबीसी और अल्पसंख्यकों को अच्छी भागीदारी दी।
कांग्रेस बिहार में यह भी कह सकती है कि उसके नेता राहुल गांधी ने कहा था कि हम जाति जनगणना करवा के ही मानेंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि राहुल गांधी इस जातीय जनगणना की टाइमलाइन की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा वह आरक्षण की सीमा तोड़ने की बात कर रहे हैं तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए अपनी पार्टी को तैयार कर पाएंगे और क्या बीजेपी का पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसके लिए तैयार होगा?
इस मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद की टिप्पणी भी बहुत दिलचस्प है। उन्होंने जातीय जनगणना के फ़ैसले की ख़बर आने के बाद लिखा, “हम क्या बोले थे? 1990 में मंडल कमीशन लागू करवाने के बाद, हमने सारा ध्यान जाति जनगणना पर लगाया, बिना डरे झुके संघियों की आंख में आंख डाल ललकारा, बारंबार केंद्र सरकार नकारती रही लेकिन आखिरकार उन्हें झुकना पड़ा।” लालू प्रसाद ने जातीय जनगणना के आगे की लड़ाई का भी इशारा किया। उन्होंने लिखा, “बिहार ही देश को राजनीतिक दिशा देता है। फिर कह रहा हूँ- अब पिछड़ों और अतिपिछड़ों के लिए सीटें आरक्षित होंगी।”
दरअसल, यही वह मुद्दा है जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बहस का विषय बनेगा। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी यह जरूर कहेगी कि उनकी सरकार ने जातीय जनगणना करने का फ़ैसला किया है लेकिन विपक्ष का सवाल यह होगा कि बिहार में जो जाति गणना पहले से हुई है उसके आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने में केंद्र सरकार ने मदद क्यों नहीं की।
सवाल यह है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार आरक्षण बढ़ाने की सीमा को नौवीं अनुसूची में डालेगी और एक और चौंकाने वाला फ़ैसला करेगी या इस मामले में उसे पूरे चुनाव के दौरान रक्षात्मक रहना होगा?
बीजेपी के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी से भी यह सवाल होगा। हालांकि जदयू के नेता यह कह रहे हैं कि नीतीश कुमार शुरू से जातीय जनगणना कराने के पक्ष में रहे हैं और खुद नीतीश कुमार ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जाति के आधार पर लोगों की संख्या का पता लगेगा और उनके लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। कुछ लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार इस मामले में भारतीय जनता पार्टी से बेहतर स्थिति में रहेंगे।
इस बारे में सत्य हिंदी से बात करते हुए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार ने कहा कि मोदी सरकार ने विपक्ष से एक मुद्दा छीनने की कोशिश तो की है लेकिन लगता नहीं है कि बिहार चुनाव में एनडीए को, विशेष कर बीजेपी को इसका फ़ायदा होगा।
उन्होंने कहा, “अभी साफ़ नहीं है कि अगली जनगणना कब होगी, इसके लिए कोई टाइमलाइन नहीं बताया गया है और हम जानते हैं कि इस जनगणना में काफ़ी देर हो चुकी है। इस जनगणना को 2021 में होना चाहिए था। इसका मतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद ही जातीय जनगणना कराई जाएगी।”
इसी तरह की बात भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कही। उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला लेने में मोदी सरकार ने बहुत देर कर दी क्योंकि आम जनगणना में पहले ही चार साल की देर हो चुकी है।
प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र इस बात पर जोर देते हैं कि लोग यह देखेंगे कि बिहार में जातीय गणना कराने का फ़ैसला महागठबंधन सरकार ने किया था। वह कहते हैं, “बिहार में जातीय गणना एक बार हो चुकी है। उस जाति गणना का पूरा क्रेडिट महागठबंधन को जाता है ना कि एनडीए को।”
प्रोफेसर पुष्पेंद्र की राय है कि तेजस्वी यादव जो यह दावा करते हैं कि जातीय गणना के परिणाम को लागू करने में यह सरकार गंभीर नहीं है तो इसको और मज़बूती मिली है। उन्होंने कहा, “जो जाति गणना बिहार में हुई है वह महागठबंधन सरकार का फ़ैसला था और उसके बाद से नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए थे। एक बात और याद रखने की है कि इस गणना से जमीन का डेटा रिलीज नहीं किया गया और उस गणना के आधार पर अब तक कोई व्यावहारिक कार्रवाई नहीं हो पाई है। इस मामले में ‘सिंसियरिटी और क्रेडिबिलिटी’ एनडीए के पास नहीं है।”
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने इस फ़ैसले को ऐतिहासिक बताते हुए विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह अब तक जाति जनगणना को लेकर राजनीति करता रहा है लेकिन मोदी सरकार हर फ़ैसला लोगों की बेहतरी को ध्यान में रखकर करती है।