अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर दावा किया है कि उनके प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ट्रम्प ने शुक्रवार को व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, “हमने भारत और पाकिस्तान को युद्ध से रोका, जो एक परमाणु आपदा में बदल सकता था। मैं भारत और पाकिस्तान के नेताओं और अपनी टीम का धन्यवाद करता हूँ।” ट्रम्प ने यह भी कहा कि उन्होंने व्यापार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर दोनों देशों को संघर्ष विराम के लिए राजी किया। भारत के तमाम विपक्षी दल खासतौर पर कांग्रेस ने इस सवाल को पीएम मोदी से बार-बार पूछा कि आखिर भारत जब पाकिस्तान पर लगातार सफल हमले कर रहा था तो किसके कहने पर इस युद्ध को रोका गया। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि पाकिस्तान से फोन आया और दोनों देशों ने आपस में बात करके इसे रोक दिया। इस सवाल का जवाब आज भी नहीं आया कि किसने इसे रोकने को कहा था।
हालांकि, भारत सरकार ने ट्रम्प के इन दावों का खंडन किया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ संघर्ष विराम दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच सीधी बातचीत का परिणाम था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जर्मन अखबार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन जेतुंग को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “संघर्ष विराम का फैसला दोनों पक्षों के सैन्य कमांडरों के बीच हुआ। इसमें अमेरिका की कोई मध्यस्थता या व्यापार संबंधी चर्चा शामिल नहीं थी।”
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए। इसके जवाब में भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के नौ ठिकानों को निशाना बनाया गया। इसके बाद दोनों देशों के बीच चार दिनों तक ड्रोन और मिसाइल हमलों का आदान-प्रदान हुआ, जिसने दक्षिण एशिया में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया।
10 मई को दोनों देशों ने सैन्य स्तर पर बातचीत के बाद संघर्ष विराम की घोषणा की। उसी दिन ट्रम्प ने दावा किया कि उनकी मध्यस्थता और व्यापारिक दबाव ने इस समझौते को संभव बनाया। ट्रम्प प्रशासन ने न्यूयॉर्क की एक संघीय अदालत में भी दावा किया कि राष्ट्रपति ने व्यापारिक प्रलोभन का इस्तेमाल कर “पूरे युद्ध” को रोका।
भारत का रुख: द्विपक्षीय बातचीत पर जोर
भारत ने बार-बार जोर दिया है कि संघर्ष विराम दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सैन्य बातचीत का नतीजा था। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 9 मई को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से और 8 व 10 मई को विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल से बात की थी, लेकिन इन चर्चाओं में व्यापार का कोई जिक्र नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक भाषण में कहा, “भारत परमाणु ब्लैकमेल के सामने नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद के खिलाफ हमारी नई नीति का प्रतीक है।” लेकिन पीएम मोदी इस बात पर चुप हैं कि युद्ध किसके कहने पर रोका गया। बीजेपी और मोदी सरकार देशभर में ऑपरेशन सफलता का जश्न मना रही है। बिहार चुनाव के मद्देनजर इसे जमकर भुनाया जा रहा है।
ट्रम्प के दावों को लेकर भारत में आलोचना तेज हो गई है। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ट्रम्प के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा, “ट्रम्प का यह कहना कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को एक साथ लाकर युद्ध रोका, पूरी तरह गलत है।” उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर भी सवाल उठाए।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने भी ट्रम्प के दावों को खारिज करते हुए कहा, “यह ट्रम्प का पुराना तरीका है, वह हर चीज का श्रेय लेना चाहते हैं।”
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प का भारत और पाकिस्तान को एक ही श्रेणी में रखना और संघर्ष विराम को व्यापार से जोड़ना भारत की कूटनीतिक छवि के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है। ब्लूमबर्ग के विश्लेषक एंडी मुखर्जी ने लिखा, “ट्रम्प का यह दावा भारत के लिए विदेश नीति के लिहाज से एक चुनौती है, क्योंकि यह भारत को पाकिस्तान के साथ एक परमाणु समस्या के रूप में पेश करता है।”
हालांकि संघर्ष विराम अभी कायम है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। भारत ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ उसकी बातचीत केवल आतंकवाद के मुद्दे पर होगी। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने ट्रम्प प्रशासन की मध्यस्थता की सराहना की है और चीन के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने की बात कही है।