
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौता हो गया। इसके तहत चीन अमेरिका को दुर्लभ अर्थ मिनरल की आपूर्ति करेगा और अमेरिका चीनी छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालयों में एडमिशन देगा। इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन ने चीनी आयात पर टैरिफ़ को 55% करने की घोषणा की है, जबकि चीन को 10% टैरिफ का लाभ मिलेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि यह सौदा पक्का हो गया है।
यह समझौता दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे व्यापारिक तनाव को कम करने की दिशा में एक बड़ा क़दम माना जा रहा है। इस समझौते के तहत चीन ने अमेरिका को दुर्लभ अर्थ मिनरल की तत्काल और नियमित सप्लाई शुरू करने का वादा किया है। ये खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी और रक्षा उपकरणों के निर्माण में अहम हैं। इसके बिना अमेरिका में इन उपकरणों के निर्माण में बड़ी बाधा आ रही थी और उत्पादन रुकने के करीब पहुंच गया था। चीन ने अप्रैल में ट्रंप के आक्रामक टैरिफ़ नीतियों के बाद ये प्रतिबंध लगाए थे।
दोनों देशों के बीच लंदन में यह समझौता अमेरिकी ऑटो उद्योग के लिए एक संकट के क़रीब आने के बाद हुआ। लैंकेस्टर हाउस में दो दिनों की बातचीत के बाद अमेरिकी और चीनी अधिकारियों ने व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया। इसके बदले में अमेरिका ने चीनी छात्रों को अपनी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा जारी रखने की अनुमति दी है। इसके अलावा सौदे में कुछ अन्य व्यापारिक रियायतें भी शामिल हैं, जिनकी जानकारी अभी पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं की गई है।
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने इस समझौते को दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया युग बताया। उन्होंने कहा कि यह सौदा न केवल अमेरिका की रणनीतिक ज़रूरतों को पूरा करेगा, बल्कि चीन द्वारा दुर्लभ अर्थ मिनरल पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों को भी कम करेगा। लुटनिक ने यह भी जोड़ा कि यह समझौता वैश्विक सप्लाई चेन को स्थिर करने में मदद करेगा।
हालांकि, एक व्हाइट हाउस अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता अमेरिका को आयातित चीनी सामानों पर 55 प्रतिशत शुल्क लगाने की अनुमति देता है। इसमें 10 प्रतिशत का आधारभूत रेसिप्रोकल टैरिफ़, फेंटानिल तस्करी के लिए 20 प्रतिशत शुल्क और पहले से मौजूद शुल्कों को दिखाने वाला 25 प्रतिशत शुल्क शामिल है। अधिकारी ने कहा कि चीन अमेरिकी आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाएगा।
जानकारों का मानना है कि टैरिफ़ में इस बढ़ोतरी का असर अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर भी पड़ सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और जैसे अन्य चीनी उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, चीनी कच्चे माल पर निर्भर अमेरिकी कंपनियों को भी लागत में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते को आर्थिक युद्ध में अमेरिका की जीत के रूप में पेश किया है। वह लगातार कहते रहे हैं, ‘हमने चीन को अपनी शर्तों पर झुकने के लिए मजबूर किया है। यह सौदा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाएगा और लाखों अमेरिकियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा।’ ट्रंप ने यह भी दावा किया कि यह समझौता दोनों देशों के बीच बढ़िया संबंधों का प्रतीक है।
हालांकि, कुछ आलोचकों ने इस सौदे पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि बौद्धिक संपदा की चोरी और व्यापार असंतुलन जैसे कई अहम मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। डेमोक्रेटिक सांसद नैन्सी पेलोसी ने कहा, ‘यह सौदा सतही तौर पर प्रभावशाली लग सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करना जरूरी है।’
यह समझौता न केवल अमेरिका-चीन संबंधों के लिए, बल्कि वैश्विक व्यापार के लिए भी अहम है। विश्लेषकों का मानना है कि यह सौदा दोनों देशों के बीच तनाव को कम कर सकता है, लेकिन टैरिफ में बढ़ोतरी यूरोपीय संघ और जापान जैसे अन्य व्यापारिक साझेदारों के साथ संबंधों को जटिल बना सकती है।
इस समझौते की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश अपनी प्रतिबद्धताओं को कितनी अच्छी तरह निभाते हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में उतार-चढ़ाव का इतिहास रहा है और इस सौदे के लागू होने में भी चुनौतियां आ सकती हैं।