
Lalu Yadav birthday 2025: पटना की गर्म दोपहर में अचानक जैसे जश्न का माहौल छा गया। बिहार की राजनीति के ‘मजेदार खिलाड़ी’ और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने जब अपने 78वें जन्मदिन पर 78 किलो का लड्डू केक काटा तो हर तरफ कैमरों की फ्लैश चमक उठी। पर इस बार मामला महज जन्मदिन की पार्टी तक नहीं रुका। तलवार से केक काटने के अंदाज और मेज पर रखे लालू यादव के पैर ने इस जश्न को एक नए सियासी तूफान में बदल दिया। लालू यादव के आवास पर जन्मदिन के मौके पर आरजेडी समर्थकों की भारी भीड़ जुटी थी। जश्न का माहौल ऐसा था कि जैसे कोई विजय उत्सव मनाया जा रहा हो। इस मौके को यादगार बनाने के लिए समर्थकों ने 78 किलो का विशाल लड्डू केक तैयार कराया। और फिर जैसे ही खोखे से तलवार निकाली गई और वो लालू यादव के हाथ में आई, पूरा माहौल तालियों से गूंज उठा।लालू यादव ने जब उस तलवार से केक काटा, तो उनके समर्थक जयकारे लगाने लगे। वीडियो में साफ दिखा कि केक काटते समय लालू का एक पैर टेबल पर था और चेहरे पर वही पुराना लालू यादव वाला ठहाकेदार मुस्कान तैर रही थी।
मांझी ने किया ट्ववीट
लेकिन राजनीति में हर जश्न के पीछे विरोध का स्वर भी तैयार रहता है। इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलते हुए विरोधियों को भी बोलने का मौका दे दिया। बिहार की राजनीति में लालू यादव जितने अपने चुटीले बयानों के लिए मशहूर हैं, उतने ही उनकी शख्सियत पर तंज कसने वाले भी हैं। और इस बार यह मौका उठाया केंद्रीय मंत्री और हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी ने। मांझी ने ट्वीट करते हुए कहा — “आज जब सरकार में नहीं हैं तो साहेब तलवार से केक काट रहें हैं, गलती से बेटवा कुछ बन गया तो AK-47 से केक को उड़ाया जाएगा। खैर, लालू प्रसाद यादव जी जन्मदिन की बधाई।” मांझी का तंज साफ था कि लालू यादव का ये अंदाज राजनीति में ‘दबंगई’ और पुराने दौर की याद दिला रहा है, जब बिहार की राजनीति में लाठी, बंदूक और बाहुबल का बोलबाला हुआ करता था। मांझी ने ‘लाठी में तेल पिलवाने’ वाले लालू यादव के पुराने बयानों को याद दिलाकर सीधे लालू पर निशाना साधा कि वक्त बदल गया है लेकिन लालू की आदतें नहीं बदलीं।
विवादों से भरा है लालू यादव का जीवन
लालू प्रसाद यादव को बिहार की राजनीति में एक अलग ही मुकाम हासिल है। 11 जून 1948 को गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में जन्मे लालू का पूरा सफर संघर्षों और विवादों से भरा रहा है। पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले लालू ने जेपी आंदोलन में भाग लेकर अपने लिए एक नई सियासी जमीन तैयार की।
ऐसा रहा है राजनीतिक करियर
1977 में संसद पहुंचने वाले लालू 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। लालू ने बिहार की राजनीति को जातीय समीकरणों के जरिए नए रूप में ढाला और लंबे समय तक राजनीति के केंद्र में बने रहे। 2004 से 2009 तक रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल को ‘टर्नअराउंड’ की मिसाल के तौर पर पेश किया। आज भले ही वो सत्ता से दूर हैं, स्वास्थ्य कमजोर है और केसों से घिरे हुए हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता का जादू अभी खत्म नहीं हुआ है। शायद यही वजह है कि उनके जन्मदिन पर तलवार से केक काटने जैसी परंपराएं उनके समर्थकों के लिए उत्सव बन जाती हैं और विरोधियों के लिए नया मुद्दा। लालू के 78वें जन्मदिन पर बेशक केक मीठा था, लेकिन राजनीति में इसकी गूंज काफी तीखी सुनाई दी।