जां अनुई आधुनिक फ्रांसीसी के अत्यंत चर्चित नाटककारों में एक हैं। उनके लिखे नाटक हिंदी में भी खेले जाते रहे हैं। उनका `एंटीगनी’ पिछले कई दशकों से हिंदी में हो रहा है। हालाँकि मूल `एंटीगनी’ ग्रीक नाटककार सोफोक्लीज का लिखा हुआ है और इसकी भी हिंदी में कई प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। पर जां अनुई की `एं’टीगनी’ सोफोक्लीज के लिखे नाटक की एक विद्रोह परक व्याख्या है। कहानी में बदलाव न्यूनतम हैं पर व्याख्या बदली हुई है। इसलिए आज ये मूल ग्रीक नाटक से भी दुनिया में ज्यादा लोकप्रिय है।
पर यहां `एंटीगनी’ की बात नहीं हो रही है। उसकी चर्चा इसलिए हो रही है ताकि जां अनुई के नाटककार स्वभाव के वैविध्य को याद किया जा सके। उनमें एक तरफ विद्रोही राजनैतिक भावनाएं थीं तो दूसरी तरफ़ हास्य भी उनका दूसरा स्वभाव था। वे अपने को फ्रांसीसी और विश्वविख्यात हास्य नाटककार मोलियर से भी जोड़ते थे। इसीलिए उन्होंने कई हास्य नाटक भी लिखे जो फ्रांस में ही नहीं, विश्व रंगमंच पर भी काफी सफल रहे। इनमें एक है `थीव्स कार्निवाल’ जिसे हिंदी में चोरों का कार्निवाल भी कह सकते हैं। इस पर फिल्म भी बन चुकी है। इस नाटक को पिछले हफ्ते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल ने अवतार साहनी के निर्देशन में प्रस्तुत किया। हालांकि नाटक का नाम अंग्रेजी अनुवाद वाला ही था यानी `थीव्स कार्निवाल’।
नाटक की शुरुआत तीन जेबकतरों से होती है। ये हैं- पीटर बोनो, हेक्टर और गुस्ताव। गलत फहमी की वजह से ये कुछ मर्तबा एक दूसरे की जेब काट लेते हैं। पर छोटी मोटी जेबकतरी से इनका मन नहीं भरता तो ये कोई बड़ा कारनामा करना चाहते हैं। इसी चक्कर में तीनों लेडी हर्फ और लॉर्ड एडगार्ड के घर में हाथ साफ़ करने घुस जाते हैं। वहां वे अपने नाम और पहचान भी बदल लेते हैं। पर वहां कुछ और गुल खिलने लगता है। हेक्टर और गुस्ताव को लेडी हर्फ की भतीजियों – ईवा और जुलियट से प्यार हो जाता है। लेडी हर्फ को ये चीजें मालूम है पर वो भी मजा ले रही है। और जुलियट तो ये जानते हुए भी कि गुस्ताव चोर है और उसके यहां माल हड़पने आया था वो उससे प्यार कर बैठती है और उसके साथ भाग निकलती है।
यही नहीं, जुलियट चोरी के कारनामे में अपने प्रेमी की मदद भी करती है। और वो अपने प्रेमी के साथ भागी कब? जब लेडी हर्फ और बाकी लोग चोरों के कार्निवाल नाम के उत्सव में भाग लेने गये थे। चोरों का कार्निवाल यानी ऐसा उत्सव जहां सम्मानित और आमंत्रित अतिथियों को चोरों के वेश में पहुंचना था। अर्थात् मनोरंजन का कार्यक्रम था। लेकिन लेडी हर्फ के साथ गए लोगों की वेशभूषा चोरों जैसी नहीं थी। कुछ अजीबो गरीब थी। इस कारण उस कार्निवाल में उनको प्रवेश नहीं मिला और वे जल्द ही लौट आए। लौटने के बाद मालूम हुआ कि सबसे छोटी लड़की चोर के साथ फरार है। खैर, `अंत भला तो सब भला’ वाली कहावत की तरह आखिर में सब कुछ ठीक जाता है और लेडी हर्फ का परिवार चोर और उससे प्रेम करनेवाली लड़की को स्वीकार कर लेता है। और दोनों चोर भी इस हाल पर प्रसन्न हो जाते हैं। घर में ही कार्निवाल जैसा माहौल बन जाता है।
नाटक के शुरू में जब तीनों चोर दर्शकों के सामने आते हैं तो उनमें दो पुरुष चरित्र महिलाओं के कपड़े में होते हैं। फिर जिस लेडी हर्फ के घर ये तीनों चोर पहुंचते हैं वहां के कुछ चरित्र भी अपने पहनावे से दर्शकों को हँसाते है। वेशभूषा परिकल्पक दुर्गा शर्मा ने अपनी कल्पनाशीलता का परिचय दिया है।
हालांकि इसका ये मतलब नहीं कि नाटक में जो दृश्य हैं या अभिनेताओं की जो संवाद अदायगी है उसमें हास्य नहीं है। वहां भी है। भरपूर है। इस नाटक में कॉमेदिया देल आर्ते की अभिनय शैली का भी इस्तेमाल किया गया है। इसमें अमित सक्सेना की सहायता ली गई है। नाटक का संगीत भी जोरदार है। कुल मिलाकार `थीव्स कार्निवाल’ एक ऐसा नाटक है जिसके अंग अंग में हास्य है और निर्देशक अवतार साहनी ने दक्षता के साथ शुरू से अंत तक इसे चुस्त बनाए रखा है। कोई ढीला स्थल नहीं है। वैसे, साहनी इस नाटक को पहले भी निर्देशित कर चुके हैं। तब भी इसकी सराहना हुई थी।
नाटक का अनुवाद वीके शर्मा का है। वैसे, वीके बाल-रंगमंच के वरिष्ठ निर्देशक हैं। अभिनेता भी। मगर उनके व्यक्तित्व में हास-परिहास के तत्व भी भरपूर हैं। ये भी एक कारण है कि अनुवाद कहीं खटकता नहीं है और इसके संवाद लगातार हँसाते ही रहते हैं। नाटक के सारे वाक़ये तेजी से घटते हैं। वैसे जिस नाटक की प्रस्तुति यहाँ हुई वो मूल नाटक की समयावधि से कम है। लेकिन असल बात तो ये है न कि नाटक बांधता है या नहीं। बिल्कुल बांधता है।