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    Home » देश के सबसे ‘पावरफुल’ आदमी के लिए इतनी बड़ी साजिश! कांग्रेस की स्क्रिप्ट लीक; ‘अब तेरा क्या होगा कालिया?’
    राजनीति

    देश के सबसे ‘पावरफुल’ आदमी के लिए इतनी बड़ी साजिश! कांग्रेस की स्क्रिप्ट लीक; ‘अब तेरा क्या होगा कालिया?’

    Janta YojanaBy Janta YojanaAugust 1, 2025No Comments4 Mins Read
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    Congress on Mohan Bhagwat: देश की राजनीति में एक बार फिर पावर प्ले का नया स्क्रिप्ट सामने आया है मुख्य किरदार हैं एक रिटायर्ड एटीएस अधिकारी, कुछ सियासी रणनीतिकार, भगवा रंग और ‘सत्य’ की अंतहीन तलाश। मालेगांव बम धमाका केस में सभी सात आरोपियों की बरी होने के बाद अब सवाल यह नहीं कि ‘दोषी कौन?’ बल्कि यह है कि ‘साजिश कितनी गहरी थी और स्क्रिप्ट लेखक कौन?’

    मुजावर का ‘मुंह खोलना’ या देर से जागी आत्मा?

    पूर्व एटीएस अधिकारी महबूब मुजावर का हालिया खुलासा हैरतअंगेज है लेकिन साथ ही थोड़ा देर से पकाया गया बिरयानी भी लगता है खुशबू ज़रूर आई है, लेकिन स्वाद पर शक करना जायज़ है। मुजावर का दावा है कि उन पर सीधे-सीधे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का दबाव था। वो भी बिना लिखित आदेश, बस ‘उपर से फोन आया था’ की शैली में। ये वही स्टाइल है जिसमें आम जनता का बिजली कनेक्शन काटा जाता है लेकिन अब इसी शैली में देश की सबसे प्रभावशाली संस्था के प्रमुख को अरेस्ट करने की साजिश रची जा रही थी?

    अगर यह सही है, तो सवाल उठता है यह कौन-सी जांच एजेंसी थी जो मौखिक आदेशों पर राजनीतिक दुश्मनों को फँसाने निकल पड़ी थी? और यदि यह गलत है, तो फिर इस बयान के पीछे की टाइमिंग पर ध्यान देना ज़रूरी है। क्या यह एक पेंशन-पैकेज प्लस पब्लिसिटी ऑफर का हिस्सा है?

    भगवा आतंकवाद: विचार या वोटबैंक का विजन?

    भगवा आतंकवाद ये शब्द खुद में ही एक राजनीतिक प्रयोगशाला है। इसे गढ़ने वालों ने धर्म को अपराध में रंगने की कोशिश की और जो विरोध में बोले उन्हें संघी करार देकर चुप करवा दिया। मुजावर के अनुसार, उनसे कहा गया कि मारे गए लोगों को ज़िंदा दिखाया जाए और झूठी चार्जशीट तैयार की जाए। जब उन्होंने इंकार किया, तो परमवीर सिंह ने उन्हें झूठे केस में फँसाया। अब ज़रा सोचिए ये वही पुलिस तंत्र है जिससे आम आदमी को न्याय की उम्मीद होती है और उसके भीतर यह सब चल रहा था? क्या ये सिर्फ कुछ अफसरों का व्यक्तिगत करियर जंप था या कोई संगठित राजनीतिक प्रयोग जिसमें भगवा रंग को बारूद में बदलने की कोशिश की गई?

    कांग्रेस का मौन और बीजेपी की माफीनामा मांग

    बीजेपी, हमेशा की तरह इस मुद्दे पर चौकन्नी निकली। दिनेश शर्मा ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से माफी की माँग की है और उनका तर्क है कि यह एक ‘संघ को बदनाम करने की साजिश’ थी, जिसका उद्देश्य सनातन को कटघरे में खड़ा करना था। अब इसमें व्यंग्य यह है कि कांग्रेस के नेताओं का जवाब भी एकदम ‘कांग्रेसनुमा’ आया।

    इमरान मसूद बोले कि सब अफसर चम्मचबाज़ी कर रहे हैं। मतलब, जब आरोप आपकी पार्टी पर हो तो जिम्मेदारी अफसरों पर डाल दो और जब क्रेडिट लेना हो तो वही अफसर ‘देशभक्त’ बन जाते हैं।

    हेमंत करकरे बनाम मुजावर: सच कौन बोल रहा है?

    सपा सांसद अफजाल अंसारी का बयान एक दिलचस्प मोड़ लाता है। उनका कहना है कि हेमंत करकरे ने वैज्ञानिक सबूतों पर जांच की थी। तो फिर सवाल यह है कि क्या मुजावर और करकरे दो अलग-अलग भारत में थे? या फिर समय के साथ सच भी पाला बदल लेता है?

    एक प्रश्न: जांच एजेंसियाँ लोकतंत्र की नौकर हैं या राजनीति की बंधक?

    इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर देश की जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर मुजावर सही हैं, तो ये साफ है कि जांच एजेंसी एक राजनीतिक टूलकिट में बदल गई थी। और अगर वे गलत हैं, तो यह खुद एक रिटायरमेंट ड्रामा है जिसमें पुराने किरदार, नए स्क्रिप्ट के साथ वापसी कर रहे हैं।

    राजनीति में साजिशें नई नहीं होतीं लेकिन उन्हें उजागर करने की टाइमिंग अक्सर सब कुछ कह जाती है। मुजावर का यह बयान कोई आत्मा की पुकार है या खुद को इतिहास में सच्चा किरदार स्थापित करने की कोशिश? यह तो वक़्त बताएगा। लेकिन इस घटनाक्रम ने ये तो साफ कर दिया कि देश में सिर्फ अदालतें नहीं, साजिशें भी फैसला सुनाती हैं। फर्क बस इतना है कि अदालतों में गवाह चाहिए, और साजिशों में सिर्फ मौन सहमति।

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