पंजाब और हरियाणा के बीच भाखड़ा-नंगल डैम के पानी के बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद अब और गहरा उठा है। केंद्र सरकार के नंगल डैम पर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की तैनाती के फैसले ने इस मुद्दे को नया आयाम दे दिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है, इसे पंजाब के हितों पर हमला और अनावश्यक आर्थिक बोझ करार दिया है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार के उस फैसले की निंदा की है, जिसमें नंगल डैम की सुरक्षा के लिए 296 सीआईएसएफ जवानों की तैनाती की गई है। मान का कहना है कि जब पंजाब पुलिस पहले से ही डैम की सुरक्षा संभाल रही है, तो सीआईएसएफ की तैनाती का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि इस तैनाती पर खर्च होने वाली 8 करोड़ 58 लाख रुपये की राशि का बोझ या तो भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) या पंजाब सरकार पर पड़ेगा, जो एक अनुचित आर्थिक बोझ है।
मान ने कहा, “मैं इस कदम का कड़ा विरोध करूंगा। हम न तो बीबीएमबी के माध्यम से और न ही पंजाब सरकार के सरकारी खजाने से पैसा देने की अनुमति देंगे।” सुरक्षा कवर तैनात करने के केंद्र के इरादे पर सवाल उठाते हुए मान ने पूछा कि क्या वह पंजाब के हिस्से का पानी “चुराना” चाहता है। उन्होंने जोर देकर कहा, “हम इसकी अनुमति नहीं देंगे।” मान ने पंजाब भाजपा प्रमुख सुनील जाखड़ सहित भाजपा नेताओं से भी पूछा कि क्या केंद्र का नवीनतम कदम उनकी मंजूरी से आया है। मुख्यमंत्री ने पूछा, “केंद्र को यह निर्णय वापस लेना चाहिए। बांध पंजाब के अधिकार क्षेत्र में आता है। अगर पंजाब अंतरराष्ट्रीय सीमा की रक्षा कर सकता है, तो वह बांध की रक्षा क्यों नहीं कर सकता।”
एक सवाल के जवाब में मान ने कहा कि वह शनिवार को नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री के सामने यह मुद्दा उठाएंगे और मोदी से पूछेंगे कि क्या उन्हें लगता है कि पंजाब पुलिस (बांध को सुरक्षा प्रदान करने में) असमर्थ है।
हाल ही में नंगल डैम पर बीबीएमबी के एक अधिकारी को कथित तौर पर बंधक बनाए जाने की घटना ने इस विवाद को और भड़का दिया। सूत्रों के अनुसार, 8 मई 2025 को बीबीएमबी के चेयरमैन ने डैम से पानी छोड़ने की कोशिश की थी, जिसका स्थानीय लोगों और पंजाब पुलिस ने विरोध किया। बीबीएमबी चेयरमैन मनोज त्रिपाठी ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में शपथ पत्र दायर कर पंजाब पुलिस पर असहयोग और अधिकारियों को गेस्ट हाउस में हिरासत में लेने का आरोप लगाया।
इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने नंगल डैम की सुरक्षा को सीआईएसएफ के हवाले करने का फैसला लिया। बीबीएमबी ने हाई कोर्ट को बताया था कि पंजाब पुलिस के असहयोग के कारण डैम का संचालन प्रभावित हो रहा है, जिसके चलते यह कदम उठाया गया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब सरकार के रवैये को असंवैधानिक और संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद पंजाब एसवाईएल नहर के निर्माण में देरी कर रहा है, जो हरियाणा के पानी के हक को प्रभावित कर रहा है।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) भाखड़ा-नंगल डैम के संचालन और जल बंटवारे का प्रबंधन करता है। यह बोर्ड पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के बीच पानी के बंटवारे का निर्णय लेता है। हाल की बैठकों में हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली ने अतिरिक्त पानी छोड़ने के पक्ष में मतदान किया, जिसका पंजाब ने कड़ा विरोध किया।
15 मई को बीबीएमबी की बैठक के बाद हरियाणा के लिए 9,325 क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जो उसकी मांग (10,300 क्यूसेक) से कम था। इस मुद्दे पर कोर्ट में सुनवाई होनी है, जिसमें पंजाब सरकार को अपना जवाब दाखिल करना है।
पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य स्वयं जल संकट का सामना कर रहा है। भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर डैम में जल स्तर पिछले साल की तुलना में कम है, और पंजाब का धान का सीजन शुरू हो चुका है। सीएम मान ने कहा, “पंजाब के खेतों तक नहरों का पानी पहुंचाने के लिए हमने पिछले तीन सालों में बड़ा काम किया है। अब 60% खेतों को नहर का पानी मिल रहा है, लेकिन हमारे पास अतिरिक्त पानी नहीं है।”
पंजाब विधानसभा ने 5 मई को एक विशेष सत्र में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया, जिसमें हरियाणा को “एक बूंद भी अतिरिक्त पानी” न देने का संकल्प लिया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि बीबीएमबी की बैठकें “असंवैधानिक और अवैध” तरीके से बुलाई जा रही हैं, ताकि पंजाब के हक का पानी हरियाणा को दिया जा सके।
हरियाणा सरकार का कहना है कि उसे भाखड़ा नहर से अपना हिस्सा नहीं मिल रहा है, और पंजाब समझौतों का उल्लंघन कर रहा है। हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने सुझाव दिया कि बीबीएमबी में हरियाणा के अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाए, ताकि राज्य अपने हक के लिए बेहतर पैरवी कर सके। यह विवाद अब पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। हरियाणा ने कोर्ट में बीबीएमबी के संचालन में पंजाब के हस्तक्षेप को रोकने की मांग की है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और कम बारिश के कारण पानी की उपलब्धता अनिश्चित हो रही है, जिससे यह विवाद और जटिल होता जा रहा है।