Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • मानसून में भीगी वादियां, चाय की महक और जंगल का रोमांच – वालपराई चाय बागानों और वनों के बीच प्रकृति का शांत स्वर्ग
    • ट्रंप की तकरीर से NATO में दरार!
    • Sonbhadra News: सुभासपा के अरविंद ने कहा- सरकारें बदलीं लेकिन नहीं बदला सिस्टम, बाहर से आए लोगों ने लूटा सोनभद्र के बाशिंदों का हक
    • ईरान ने माना- उसके परमाणु ठिकानों को काफी नुकसान हुआ, आकलन हो रहा है
    • Satya Hindi News Bulletin। 25 जून, शाम तक की ख़बरें
    • पाक बना रहा अमेरिका तक मार करने वाली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल: रिपोर्ट
    • Pratapgarh News: कांग्रेस पर बरसे डिप्टी सीएम केशव मौर्य, कहा- ‘सपा नकली समाजवादी पार्टी है’
    • Satya Hindi News Bulletin। 25 जून, दोपहर तक की ख़बरें
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » पटेल तो कश्मीर को सिरदर्द मानते थे, नेहरू की वजह से कश्मीर भारत में!
    भारत

    पटेल तो कश्मीर को सिरदर्द मानते थे, नेहरू की वजह से कश्मीर भारत में!

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 28, 2025No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हाल ही में गुजरात की एक चुनावी सभा में बोले कि अगर सरदार पटेल की बात मानी गई होती तो 1948 में ही पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा बन चुका होता, तब उन्होंने सिर्फ़ अपने समकालीन आलोचकों को जवाब नहीं दिया, बल्कि इतिहास के एक पुराने घाव को भी फिर से कुरेद दिया। ऑपरेशन सिंदूर को अचानक रोकने की वजह से आलोचना झेल रहे पीएम मोदी ने अपने बचाव के लिए यह तरीका चुना है। उन्होंने यह भाषण उन्होंने 27 मई को दिया—नेहरू की पुण्यतिथि के दिन। प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य एक बार फिर उस प्रचार को हवा देता है, जिसमें नेहरू को कश्मीर मुद्दे का ‘खलनायक’ और पटेल को संभावित ‘उद्धारक’ के रूप में पेश किया जाता है।

    पर सवाल यह है कि इतिहास में ऐसा कुछ सचमुच था या यह सब सियासी मिथक गढ़े जा रहे हैं?

    विलय की पेचीदगी

    जब 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ तो उसके सामने सिर्फ़ पाकिस्तान की चुनौती नहीं थी, बल्कि पाँच सौ से ज़्यादा रियासतों का भविष्य भी अधर में था। इनमें से अधिकतर रियासतें जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप भारत में मिल गईं, लेकिन तीन रियासतें- जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर- विवाद का केंद्र बनीं।

    जूनागढ़ और हैदराबाद में मुस्लिम शासक और हिंदू बहुसंख्यक जनसंख्या थी, जबकि जम्मू-कश्मीर में राजा हरि सिंह हिंदू थे, पर वहाँ की बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम। राजा हरि सिंह भारत या पाकिस्तान में से किसी में भी विलय के पक्ष में नहीं थे। वे कश्मीर को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में देखना चाहते थे- एक तरह का ‘स्विट्ज़रलैंड ऑफ़ एशिया’।

    कश्मीर पर पटेल की अरुचि

    प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते हैं कि अगर सरदार पटेल को कश्मीर का मसला सौंपा गया होता, तो वह भी जूनागढ़ और हैदराबाद की तरह हल हो गया होता। लेकिन क्या यह ऐतिहासिक रूप से सही है?

    प्रख्यात पत्रकार दुर्गादास की चर्चित किताब India From Curzon to Nehru and After में साफ़ लिखा है कि पटेल ने कश्मीर को ‘headache’ यानी सिरदर्द कहा था और सुझाव दिया था कि अगर महाराजा निर्णय नहीं ले पा रहे तो कश्मीर पाकिस्तान को दे देना चाहिए।

    महात्मा गाँधी के पौत्र राजमोहन गांधी की लिखी सरदार पटेल की जीवनी (Patel, a life) में भी उल्लेख है कि पटेल 13 सितंबर 1947 तक कश्मीर में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे। वह तब बदले जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ की याचिका स्वीकार कर ली।

    पत्रकार रशीद किदवई और राजेंद्र सरीन की किताबें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि पटेल ने पाकिस्तान के मंत्री अब्दुर रब निश्तर से यहाँ तक कहा था- “हैदराबाद और जूनागढ़ की बात छोड़ो, कश्मीर ले लो।” लेकिन पाकिस्तान ने यह ‘डील’ नहीं मानी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ‘चंद पहाड़ियों’ के बदले हैदराबाद छोड़ने को तैयार नहीं थे।

    यानी सरदार पटेल शुरू में कश्मीर को लेकर उदासीन थे। हाँ, जब एक बार विलय की प्रक्रिया शुरू हुई, तो पटेल ने उसे पूरी गंभीरता से अंजाम तक पहुँचाया।

    नेहरू की भू-राजनीति की दृष्टि

    जवाहरलाल नेहरू के पुरखे भले कश्मीर से थे, लेकिन उनके लिए कश्मीर सिर्फ भावनात्मक मुद्दा नहीं था। वे इस बात को समझते थे कि कश्मीर सामरिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है— पाँच देशों की सीमाओं से घिरा, सिंक्यांग और तिब्बत से सटा हुआ क्षेत्र, जिसकी स्थिति हिंदुस्तान की सुरक्षा नीति के लिए अत्यंत निर्णायक हो सकती थी।

    नेहरू की दृष्टि सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं थी। वे जानते थे कि अगर एक मुस्लिम बहुल राज्य भारत का हिस्सा बनता है, तो यह जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत का करारा जवाब होगा। इसलिए उन्होंने कश्मीर में कांग्रेस की समानांतर ताक़त शेख अब्दुल्ला और उनकी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठजोड़ किया। शेख़ का ‘क्विट कश्मीर’ आंदोलन हरि सिंह के विरुद्ध था, और उसमें नेहरू ने खुलकर समर्थन दिया। इससे कश्मीरी जनता में नेहरू के भारत के प्रति विश्वास पैदा हुआ।

    शेख़ अब्दुल्ला का यह बयान इसका प्रमाण है: “पंडित जवाहरलाल नेहरू मेरे उत्तम मित्र हैं और मुझे गांधीजी के प्रति सच्चा पूज्य भाव है… पाकिस्तान के नारे में कभी मेरा विश्वास नहीं रहा।”

    भारतीय सेना और अंग्रेज जनरल 

    जो लोग आज यह सवाल उठाते हैं कि युद्धविराम क्यों किया गया, वे शायद इस ऐतिहासिक सच्चाई को नजरअंदाज़ करते हैं कि उस समय भारत की सेना पूरी तरह से भारतीय नहीं थी। सेना का नेतृत्व ब्रिटिश अधिकारियों के हाथ में था। फील्ड मार्शल क्लाउड आचिनलेक भारत और पाकिस्तान दोनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर थे। भारत के पहले सेना प्रमुख जनरल रॉय बूचर भी ब्रिटिश थे। वे नियम क़ायदों को देखते हुए क़दम उठा रहे थे न कि सामरिक ज़रूरत के लिहाज़ से। दोनों ही देश यानी भारत-पाकिस्तान उनके लिए समान थे।

    लार्ड माउंटबेटन की भी सलाह यही थी कि यह भारत की नैतिक और कानूनी स्थिति को मजबूत करेगा। फिर भी नेहरू की रणनीतिक दृष्टि से दो तिहाई जम्मू-कश्मीर भारत के पाले में आ गया, जो यूँ आज़ाद होना चाहता था।

    इतिहास को जब-तब राजनीति के संदर्भ में तोड़ा-मरोड़ा गया है। लेकिन जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय, चाहे जितना भी जटिल क्यों न रहा हो, यह पूरी प्रक्रिया सरदार पटेल और पंडित नेहरू के साझा प्रयास और विवेक का परिणाम थी। नेहरू की कूटनीतिक दूरदृष्टि, शेख अब्दुल्ला का समर्थन, और समय पर लिए गए निर्णय ही वह आधार थे, जिनकी वजह से आज कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

    नेहरू और पटेल को एक-दूसरे के विरोधी खांचों में रखना, दरअसल उन दोनों नेताओं की विरासत को छोटा करना है। इस ऐतिहासिक प्रक्रिया में अगर कोई ‘वास्तविक खलनायक’ था, तो वह था पाकिस्तान। नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में मसले को ले जाकर भारत के पक्ष को वैधता दिलाई थी न कि इसका अंतरराष्ट्रीयकरण किया था। वैसे भी इंदिरा गाँधी ने शिमला समझौते के ज़रिए मामले को द्विपक्षीय बनाकर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को समाप्त कर दिया था।

    भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 1994 में सर्वसम्मत प्रस्ताव के ज़रिए पीओके वापस लेने का संकल्प लिया था। इस ज़िम्मेदारी को उठाने के लिए पं. नेहरू तो वापस आयेंगे नहीं। यह काम तो मौजूदा नेताओं को करना है। प्रधानमंत्री मोदी को एक मौका मिला था लेकिन ऑपरेशन सिंदूर को अचानक रोककर वे इतिहास बनाने से चूक गये।

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous ArticleSatya Hindi News Bulletin । 28 मई, 8 बजे की ख़बरें
    Next Article माधबी बुच को हिंडनबर्ग आरोपों पर लोकपाल से क्लीन चिट क्यों?
    Janta Yojana

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    Related Posts

    ट्रंप की तकरीर से NATO में दरार!

    June 25, 2025

    ईरान ने माना- उसके परमाणु ठिकानों को काफी नुकसान हुआ, आकलन हो रहा है

    June 25, 2025

    Satya Hindi News Bulletin। 25 जून, शाम तक की ख़बरें

    June 25, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    मूंग की फसल पर लगा रसायनिक होने का दाग एमपी के किसानों के लिए बनेगा मुसीबत?

    June 22, 2025

    केरल की जमींदार बेटी से छिंदवाड़ा की मदर टेरेसा तक: दयाबाई की कहानी

    June 12, 2025

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    MECL में निकली भर्ती, उम्मीवार ऐसे करें आवेदन, जानें क्या है योग्यता

    June 13, 2025

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.