भारत के पड़ोस में एक नई चुनौती उभर रही है, जो देश की सुरक्षा और कूटनीति के लिए गंभीर खतरा बन रही है। यह चुनौती है चीन की अपने पड़ोसियों के साथ बढ़ती नजदीकी। पाकिस्तान तो पहले से ही चीन का ‘लौह मित्र’ रहा है, लेकिन अब नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देश भी धीरे-धीरे चीन के प्रभाव क्षेत्र में आते दिख रहे हैं। चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई के तहत भारी निवेश और रणनीतिक परियोजनाओं के जरिए भारत को क्षेत्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। आखिर भारत अपने पड़ोसियों से क्यों दूर हो रहा है? क्या यह भारत की कूटनीति और विदेश नीति की असफलता नहीं है।
चीन का BRI
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना यानी BRI दुनिया के 150 से अधिक देशों में 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश कर रही है। इसका लक्ष्य सड़कों, रेल, बंदरगाहों और ऊर्जा परियोजनाओं के जरिए वैश्विक व्यापार और प्रभाव बढ़ाना है। भारत इस महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसके पड़ोसी देश इस जाल में फंसते जा रहे हैं। खास तौर पर पाकिस्तान ने इस परियोजना से जैसे लॉटरी हासिल कर ली है।
पाकिस्तान का लौह मित्र
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) BRI का हिस्सा है। यह 62 अरब डॉलर की परियोजना है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते चीन के शिनजियांग से जोड़ता है। भारत का कहना है कि यह गलियारा अवैध रूप से कब्जाए गए गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है। लेकिन चीन के लिए यह गलियारा सामरिक और आर्थिक रूप से इतना महत्वपूर्ण है कि वह भारत की आपत्तियों को नजरअंदाज करता है। ग्वादर बंदरगाह में चीन का भारी निवेश है, जिसे भविष्य में सैन्य ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
पाकिस्तान और भारत के बीच चार युद्धों का इतिहास रहा है, जिसमें 1971 का युद्ध सबसे निर्णायक था, जब भारत की मदद से बांग्लादेश का जन्म हुआ।
चीन की गोद में नेपाल
कभी भारत का सबसे करीबी पड़ोसी रहा नेपाल अब चीन की ओर झुक रहा है। 2015 में नेपाल के नए संविधान पर भारत के विरोध और कथित नाकेबंदी ने नेपाल को आर्थिक संकट में डाल दिया। नतीजतन, नेपाल ने चीन की ओर रुख किया। चीन ने नेपाल में ट्रांस-हिमालयन रेल परियोजना शुरू की है, जो तिब्बत के शिगात्से को काठमांडू से जोड़ेगी। इस 5.5 अरब डॉलर की परियोजना को 2027 तक पूरा किया जाना है, जिसे बाद में पोखरा और लुंबिनी तक विस्तारित किया जाएगा। इसके अलावा, चीन ने नेपाल में सड़कों, हाइड्रोपावर और फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क में 10 अरब डॉलर का निवेश किया है।
2020 में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपने नक्शे में शामिल कर भारत के साथ विवाद बढ़ाया। साथ ही, चीन ने नेपाल के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति शुरू की है। 2019 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा ने दोनों देशों के बीच ‘रणनीतिक साझेदारी’ को और मजबूत किया। भारत की सीमा से महज 700 किलोमीटर दूर काठमांडू है। लुंबिनी तो सीमा से सटा इलाक़ा है। यहाँ तक चीन की ट्रेन से पहुँच का मतलब समझा जा सकता है।
बदलता बांग्लादेश
1971 में भारत की मदद से बांग्लादेश का जन्म हुआ। लेकिन हाल के वर्षों में स्थिति बदली है। शेख हसीना की सरकार के बाद बनी अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने चीन के साथ सहयोग बढ़ाया है। 1 जून 2025 को ढाका में आयोजित चीन-बांग्लादेश निवेश और व्यापार सम्मेलन में 150 से अधिक चीनी निवेशकों ने हिस्सा लिया और 2 अरब डॉलर के नए निवेश की घोषणा की। चीन ने बांग्लादेश में पायरा कोयला पावर प्लांट और चट्टोग्राम बंदरगाह में भारी निवेश किया है। बांग्लादेश का कुल बाहरी कर्ज 101.4 अरब डॉलर है, जिसमें 14.8% हिस्सा चीन का है। इसके अलावा, चीन ने बांग्लादेश को दो पनडुब्बियां भी बेची हैं, जो भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं।
असमंजस में भूटान
भूटान भारत का पारंपरिक सहयोगी रहा है, लेकिन चीन यहाँ भी अपनी पैठ बना रहा है। 2017 का डोकलाम विवाद इसका उदाहरण है। डोकलाम भूटान में है, लेकिन यह भारत के सिलिगुरी कॉरिडोर (चिकन्स नेक) के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
चीन ने भूटान में 22 गाँव बनाए हैं, जिनमें से 7 गाँव 2023 के बाद बने। ये गाँव डोकलाम और बेयुल खेनपाजोंग जैसे विवादित क्षेत्रों में हैं। 2023 में भूटान और चीन ने सीमा वार्ता के लिए एक तीन-चरणीय रोडमैप पर हस्ताक्षर किए, जिसने भारत में चिंता बढ़ा दी। भूटान की भारत पर निर्भरता कम करने की कोशिश भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर कर सकती है।
म्यांमार में मुश्किल
भारत और म्यांमार के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। वहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव है जिनके लिए भारत एक पवित्र भूमि है। भारत ने म्यांमार में सितवे बंदरगाह और इंडिया-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग में निवेश किया है। लेकिन म्यांमार की अस्थिरता और चीन के 1.5 अरब डॉलर के निवेश ने भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को कमजोर किया है। चीन ने क्याउकप्यू बंदरगाह और न्यू यांगून प्रोजेक्ट में निवेश किया है, जो बंगाल की खाड़ी में भारत की नौसेना के लिए चुनौती बन सकता है। म्यांमार का कुल बाहरी कर्ज 10 अरब डॉलर है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है।
क़र्ज़-जाल में श्रीलंका
श्रीलंका में चीन की रणनीति को ‘डेट ट्रैप डिप्लोमेसी’ का उदाहरण माना जाता है। 2017 में श्रीलंका ने 1.2 अरब डॉलर का चीनी कर्ज न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया। श्रीलंका का कुल बाहरी कर्ज 61 अरब डॉलर है, जिसमें 8.54 अरब डॉलर चीन का है। 2022 के आर्थिक संकट में भारत ने श्रीलंका को 4 अरब डॉलर की सहायता दी, लेकिन 2024 में बनी नई सरकार (NPP) ने चीन के साथ रक्षा और आर्थिक सहयोग बढ़ाया। हंबनटोटा बंदरगाह, जो भारत के दक्षिणी तट से सिर्फ 200 नॉटिकल मील दूर है, भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
मोतियों का मकड़जाल
चीन की रणनीति को ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ कहा जाता है, जिसके तहत वह ग्वादर, हंबनटोटा, क्याउकप्यू और चट्टोग्राम जैसे बंदरगाहों में निवेश कर भारत को समुद्री और स्थलीय मार्गों से घेर रहा है। यह भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है।
भारत ने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों के तहत श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में भारी निवेश किया है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका को 4 अरब डॉलर की सहायता, मालदीव में 500 मिलियन डॉलर का निवेश और बांग्लादेश में 8 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन। लेकिन चीन का 48.1 अरब डॉलर का कर्ज भारत के 9 अरब डॉलर के निवेश पर भारी पड़ रहा है।
श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएँ बढ़ रही हैं। नेपाल और भूटान में भी चीन की पैठ चिंताजनक है। भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष छवि कमजोर होने से भी पड़ोसियों के साथ रिश्ते प्रभावित हुए हैं। पहले भारत गुटनिरपेक्ष देशों का नेता था, लेकिन आज, जब यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, इसके पड़ोसी उससे दूर हो रहे हैं।