
Bihar Election 2025 (photo credit: social media)
Bihar Election 2025 (photo credit: social media)
Bihar Election 2025: बिहार की सियासत में आगामी 2025 विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को महागठबंधन में शामिल न करने का फैसला लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक चालाक राजनीतिक चाल चली है। पहली बार यह निर्णय साधारण गठबंधन राजनीति जैसा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे सीमांचल की सीटों और MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को लेकर तेजस्वी की गहन रणनीति छिपी हुई है।
सीमांचल पर फोकस
तेजस्वी यादव ने AIMIM को महागठबंधन से बाहर रखकर एक बड़ा संकेत दे दिया है कि वे सीमांचल की राजनीति पर खुद पूरी मजबूती बनाना चाहते हैं। साल 2020 विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की लगभग 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5 सीटें जीतकर सबको हैरान कर दिया था। इसके साथ ही 4 सीटों पर तीसरा स्थान हासिल करके लगभग 5.23 लाख वोट इकठ्ठा कर लिए थे। इसने RJD के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई थी।
MY समीकरण की वापसी का प्रयास
तेजस्वी अब अपने पिता लालू प्रसाद यादव की पुरानी राजनीति—मुस्लिम-यादव समीकरण को दोबारा से साधने के प्रयास में हैं। हाल के दिनों में केंद्र सरकार की नीतियों, जैसे वक्फ बोर्ड संशोधन बिल, के कारण मुस्लिम समाज में कुछ नाराजगी देखी गयी है। तेजस्वी इस नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं और ऐसे में वे नहीं चाहते कि AIMIM जैसी पार्टी उस मतदाता वर्ग को बांटे।
राजनीतिक प्रयोग लेकिन साझेदारी नहीं
विशेषज्ञ के मुताबिक, तेजस्वी ने ओवैसी को गठबंधन से बाहर कर के एक ‘थर्ड फ्रंट’ को जन्म देने की भूमिका बना ली है। इससे AIMIM सीमांचल में NDA के वोटों में सेंध लगा सकती है, जो आखिर में RJD के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। यानी तेजस्वी ने AIMIM को सीधे साथ में लिए बिना भी उसका रणनीतिक प्रयोग करने का दांव चला है।
महागठबंधन की दीर्घकालिक सोच
तेजस्वी का यह निर्णय न केवल सीटों के बंटवारे से जुड़ा हुआ है, बल्कि महागठबंधन की दीर्घकालिक रणनीति से भी। यदि AIMIM को सीमांचल की सीटें दे दी जातीं, तो RJD की पकड़ कमजोर पड़ सकती है। इसीलिए ओवैसी को दूर रखना, तेजस्वी की नजर में, अल्पकालिक सियासी नुकसान के बावजूद दीर्घकालिक फायदे का सौदा है।
बता दे, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव ने AIMIM को गठबंधन से दूर रखकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर अपने परंपरागत वोट बैंक को बंटने नहीं देंगे। सीमांचल की सीटों पर मजबूत पकड़ बनाए रखना और मुस्लिम वोटरों को एकत्रित रखना ही उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तेजस्वी का यह सियासी दांव उन्हें सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा पाता है या नहीं।