पाकिस्तान ने एक बार फिर सिंधु जल संधि पर बातचीत करने की गुहार लगाई है। इसके लिए इसने भारत को पत्र लिखा है, लेकिन भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। संदेश साफ़ है कि ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।’ तो सवाल है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर कार्रवाई करेगा या फिर संधि से हाथ धोकर आर्थिक नुक़सान झेलता रहेगा?
पाक ने ख़त लिखने का यह क़दम तब उठाया है, जब भारत ने इस संधि को पिछले साल अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और सीमा पार आतंकवाद के आरोपों का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया था। हालाँकि, भारत ने इस पेशकश को अभी स्वीकार करने से इनकार कर दिया है और संधि को अपने हिसाब से संशोधन करने की दिशा में क़दम उठाने की बात कही है।
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बँटवारे का एक ऐतिहासिक समझौता है। इसे दोनों देशों के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में 1960 में हस्ताक्षरित किया गया था। इसके तहत सिंधु नदी सिस्टम की छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज का जल बंटवारा है। संधि के अनुसार, रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का नियंत्रण भारत के पास है, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित है। यह संधि दशकों से दोनों देशों के बीच सहयोग का एक मजबूत आधार रही है, लेकिन हाल के वर्षों में तनाव और आतंकवाद से संबंधित मुद्दों ने इसे प्रभावित किया है।
अब, पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को पत्र लिखकर संधि को बहाल करने और इस पर बातचीत शुरू करने की अपील की है। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि पाकिस्तान ने चार बार भारत को पत्र लिखकर बातचीत की अपील की है, लेकिन उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी है।
पाकिस्तान ने यह पेशकश ऐसे समय में की है, जब उसे जल संकट का डर सता रहा है। सिंधु नदी सिस्टम पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखा मानी जाती है और संधि के निलंबन से उसके जल संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
भारत ने पाकिस्तान की इस पेशकश को ठुकराते हुए साफ़ किया है कि वह अभी बातचीत के लिए तैयार नहीं है। भारत का कहना है कि संधि का निलंबन तब तक जारी रहेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के ख़िलाफ़ ‘ठोस और दिखाई देने वाला’ क़दम नहीं उठाता। भारत ने संधि को 1960 में पाकिस्तान के प्रति उदारता के रूप में देखा था, लेकिन बार-बार आतंकवादी गतिविधियों के कारण यह भरोसा टूट गया है।
भारत ने संधि को संशोधित करने की अपनी मंशा भी जाहिर की है। सरकार का मानना है कि मौजूदा संधि भारत के लिए प्रतिकूल है और इसे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संशोधित करने की ज़रूरत है। इसके अलावा, भारत ने जम्मू-कश्मीर में सलाल और बगलिहार जलविद्युत परियोजनाओं पर तलछट हटाने का काम शुरू कर दिया है, जिसके बारे में पाकिस्तान को सूचित नहीं किया गया। यह क़दम पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि उसका मानना है कि इससे जल प्रवाह पर असर पड़ सकता है।
बता दें कि 23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत के रुख को और सख्त कर दिया। इस हमले के बाद भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए संधि को निलंबित करने का फ़ैसला किया था।
पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की है, लेकिन भारत ने साफ़ किया है कि वह संधि के निलंबन को सही मानता है और इसे तब तक बहाल नहीं करेगा, जब तक आतंकवाद पर उसकी चिंताओं का समाधान नहीं होता। संधि के मध्यस्थ विश्व बैंक ने अभी तक इस मामले में कोई सक्रिय हस्तक्षेप नहीं किया है।
जानकारों का मानना है कि यह विवाद दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। कुछ जानकारों का कहना है कि जल संसाधनों पर निर्भरता के कारण पाकिस्तान के लिए यह एक गंभीर संकट है, जबकि भारत अपनी रणनीतिक स्थिति का उपयोग करके दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।
सिंधु जल संधि पर भारत और पाकिस्तान के बीच ताज़ा विवाद दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और गहरा रहा है। पाकिस्तान की बार-बार बातचीत की पेशकश और भारत का सख्त रुख इस मुद्दे की जटिलता को दिखाता है। भविष्य में इस संधि का क्या होगा, यह काफी हद तक दोनों देशों के बीच विश्वास और कूटनीतिक संबंधों पर निर्भर करेगा। फिलहाल, भारत का रुख साफ़ है – आतंकवाद और जल एक साथ नहीं चल सकते।