
Pilibhit Tourism (Image Credit-Social Media)
Pilibhit Tourism
Pilibhit Tourism: पीलीभीत ज़िला ऐतिहासिक महत्व और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला क्षेत्र है। वर्ष 1801 में जब रोहिलखंड को अंग्रेजों को सौंपा गया, तो पीलीभीत ज़िला बरेली का एक परगना था, जिसे 1833 में समाप्त कर दिया गया। 1841 में इसे पुनः बरेली ज़िले के साथ जोड़ा गया और बाद में 1871 में परगना जहानाबाद, पीलीभीत और पूरनपुर के इलाक़ों को मिलाकर पीलीभीत तहसील का निर्माण हुआ; 1879 में इसे स्वतंत्र ज़िले का दर्जा प्राप्त हुआ। यहाँ बड़े पैमाने पर बांसुरी का निर्माण कार्य किया जाता है और यह नगर अपने ‘पीलीभीत की बांसुरी’ ब्रांड के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ गोमती, शारदा, देवहा, खकरा आदि प्रमुख नदियाँ हैं, जो इसकी कृषि, पर्यावरण और धार्मिक–सांस्कृतिक जीवन की धुरी हैं।
स्थानीय परंपरा के अनुसार, पीलीभीत नाम की उत्पत्ति यहाँ की पीली–मिट्टी, पीले किले की दीवारों और ‘पीली भित्ति’ (पीली दीवार/परकोटा) से जोड़ी जाती है; समय के साथ यही उच्चारण परिवर्तित होकर ‘पीलीभीत’ रूप में प्रचलित हो गया।
धार्मिक–सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
पीलीभीत क्षेत्र प्राचीन काल से ही सरयू/घाघरा–शारदा तट की सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा रहा है। गोमती नदी का उद्गम भी पीलीभीत के मदोटा/मधेना क्षेत्र के निकट माना जाता है, जहाँ इसे ‘गोमतताल’ या ‘गोमती उद्गम स्थल’ के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह स्थल धार्मिक–साथ–साथ पर्यावरण–पर्यटन के दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है।
यहाँ की धार्मिक–सांस्कृतिक पहचान हिंदू, सिख और सूफ़ी–परंपरा के साझा ताने–बाने से बनती है। गौरी–शंकर मंदिर, छठवीं पातशाही गुरुद्वारा और अनेक शिव–शक्ति एवं वैष्णव मंदिर स्थानीय जन–जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पीलीभीत शहर और आसपास के कस्बों में होने वाले रामलीला, जन्माष्टमी, गुरुपर्व तथा उर्स–मेलों की मिश्रित परंपरा गंगा–जमुनी तहज़ीब का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है।
बांसुरी उद्योग और आधुनिक औद्योगिक पहचान
पीलीभीत ज़िले की पहचान ‘बांसुरी नगरी’ के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित है। यहाँ के कारीगर कई पीढ़ियों से बांसुरी, शहनाई तथा अन्य बांस–निर्मित वाद्ययंत्र तैयार करते आए हैं।
– ‘वन डिस्ट्रिक्ट–वन प्रोडक्ट (ODOP)’ योजना के अंतर्गत पीलीभीत को ‘फ्लूट (बांसुरी) क्लस्टर’ के रूप में चिन्हित किया गया है। यहाँ की बांसुरी, क्लैरिनेट, रिकॉर्डर और विभिन्न प्रकार के वुडविंड वाद्ययंत्र देश–विदेश के संगीतकारों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
– बांसुरी उद्योग के साथ–साथ यहाँ चावल मिलें, आटा मिल, लकड़ी–आधारित उद्योग, ईंट–भट्ठे और कृषि–उत्पाद प्रसंस्करण इकाइयाँ भी सक्रिय हैं, जो इसे एक उभरते हुए कृषि–औद्योगिक ज़िले के रूप में स्थापित करती हैं।
– सरयू/शारदा कमांड क्षेत्र में विकसित सिंचाई नहरों और उपजाऊ दोआब–मिट्टी के कारण गन्ना, धान, गेहूँ और दलहन–तिलहन की अच्छी पैदावार होती है, जिससे कृषि–आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।
पीलीभीत टाइगर रिज़र्व और इको–टूरिज़्म
पीलीभीत की सबसे बड़ी पहचान उसके वन–सम्पदा और बाघ संरक्षण से है।
– पीलीभीत टाइगर रिज़र्व (Pilibhit Tiger Reserve) भारत के प्रमुख टाइगर लैंडस्केप्स में से एक है, जो शारदा, देवीहा और गोमती जैसी नदियों के बीच फैला हुआ है। नेपाल सीमा के साथ लगे इस तराई–क्षेत्र में घने साल, शीशम, खैर और मिश्रित वन पाए जाते हैं।
– यहाँ बाघ, तेंदुआ, हिरण, बारहसिंगा, जंगली सूअर, भालू, वन–बिल्ली, मगर, कछुए और सैकड़ों प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं, जिससे यह वाइल्डलाइफ़–सफारी, बर्ड–वॉचिंग और नेचर–फोटोग्राफी के लिए अद्वितीय गंतव्य बनता है।
– शारदा सागर बाँध और आसपास के वन–क्षेत्र के कारण यह पूरा इलाका मोनो–अकेशिया, घासभूमियाँ, दलदली क्षेत्र और नदी–तट के विविध परिदृश्य प्रस्तुत करता है, जो इको–टूरिज़्म के लिए उपयुक्त हैं।
– उत्तर प्रदेश वन विभाग और पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ ईको–हट, नेचर–ट्रेल, वॉच–टावर और गाइडेड सफारी जैसी सुविधाओं का विकास किया जा रहा है, ताकि स्थानीय समुदायों को रोज़गार और आगंतुकों को सुरक्षित–संतुलित पर्यटन अनुभव मिल सके।
प्रमुख पर्यटक स्थल
चूका बीच (Chuka Beach)
– शारदा सागर बाँध के विशाल जल–सतह पर विकसित यह स्थल स्थानीय रूप से ‘चूका बीच’ के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ रेत के प्राकृतिक तट, नौका–विहार, बर्ड–वॉचिंग और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
ओढ़ाझार मंदिर
– घने वृक्षों के बीच स्थित यह प्राचीन मंदिर स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए आस्था–केंद्र है। मंदिर के आसपास का हरित–परिसर और शांत वातावरण इसे धार्मिक–साथ–साथ प्रकृति–पर्यटन का भी केंद्र बनाता है।
गौरी शंकर मंदिर
– पीलीभीत नगर का प्रमुख शिव–मंदिर, जहाँ सावन मास, महाशिवरात्रि और सोमवारों पर विशेष भीड़ रहती है। यह मंदिर नगर की प्राचीन धार्मिक–परंपरा का प्रतीक है।
छटवीं पादशाही गुरुद्वारा
– सिख परंपरा से जुड़ा यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु हरगोविंद/छठवें पातशाह की स्मृति से संबंधित है। यहाँ गुरुपर्व, गुरुनानक जयंती और बैसाखी पर विशेष दीवान, कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है।
पीलीभीत टाइगर रिज़र्व
– वन्यजीव–प्रेमियों के लिए सफारी, वॉच–टावर से पशु–दर्शन, नेचर–ट्रेल और व्याख्या–केंद्र (Interpretation Centre) का अनुभव अत्यंत रोचक होता है। नवंबर से जून के बीच यहाँ पर्यटन–गतिविधियाँ अधिक रहती हैं।
राजा वेणु का टीला
– देवहा नदी के निकट स्थित यह प्राचीन टीला स्थानीय इतिहास और लोक–कथाओं से जुड़ा है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इसे किसी प्राचीन गणराज्य या जनपद की राजधानी–स्थली से भी जोड़ा जाता है; पुरातात्विक दृष्टि से यह स्थल अनुसंधान–योग्य माना जाता है।
शारदा सागर बाँध
– शारदा नदी पर बना यह बाँध सिंचाई, बाढ़–नियंत्रण और बिजली–उत्पादन के साथ–साथ नौका–विहार और पिकनिक के लिए भी लोकप्रिय हो रहा है।
पहुंच मार्ग
सड़क मार्ग –
वाया यूपी एसएच 26, यूपी एसएच 29, यूपी एसएच 33, एनएच 730 और एनएच 731
पीलीभीत ज़िला बरेली, शाहजहाँपुर, लखीमपुर–खीरी और उत्तराखंड की सीमा से सड़क मार्ग द्वारा सुगमता से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग –
पीलीभीत रेलवे स्टेशन
– यह लखनऊ–टानकपुर और बरेली–पीलीभीत–टनकपुर रेलखंड पर स्थित महत्त्वपूर्ण स्टेशन है, जहाँ से बरेली, लखीमपुर–खीरी, ऐशबाग/लखनऊ, टनकपुर आदि के लिए रेल सेवाएँ उपलब्ध हैं।
हवाई मार्ग –
बरेली हवाई अड्डा/पंतनगर एयरपोर्ट (लगभग 40–80 किमी, मार्ग के अनुसार दूरी में अंतर)
– निकट भविष्य में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजनाओं (UDAN) के तहत इस पूरे तराई–क्षेत्र को और बेहतर हवाई संपर्क से जोड़ने की दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे पीलीभीत टाइगर रिज़र्व और बांसुरी–क्लस्टर तक पर्यटकों की आसान पहुँच सुनिश्चित हो सके।


