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Mystery Of Loktak Lake: भारत के उत्तर-पूर्व में बसे मणिपुर की खूबसूरती पूरी दुनिया को आकर्षित करती है। यहाँ की सबसे खास जगह है लोकतक झील जिसे ‘मणिपुर की जीवनरेखा’ कहा जाता है। यह झील अपनी तैरती हुई फुमडी (Phumdi) के लिए मशहूर है। फुमडी पौधों, मिट्टी और प्राकृतिक चीज़ों का मिश्रण होती है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती है। इन्हीं पर लोग घर बनाते हैं, खेती करते हैं और जीवन बिताते हैं। यही कारण है कि लोकतक झील को ‘तैरता हुआ गाँव’ भी कहा जाता है। यह झील मणिपुर के लोगों को भोजन, पानी, रोज़गार और परिवहन उपलब्ध कराती है।
भौगोलिक स्थिति और विस्तार

लोकतक झील मणिपुर के बिष्णुपुर ज़िले में स्थित है और यह राजधानी इंफाल से लगभग 38 से 53 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका क्षेत्रफल करीब 287 वर्ग किलोमीटर है लेकिन बरसात के समय यह 250 से 500 वर्ग किलोमीटर तक फैल जाती है। यह उत्तर-पूर्व भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील मानी जाती है। इसका आकार देखने में कुछ हद तक मानव की हथेली जैसा लगता है, जो इसे और भी खास बनाता है। इस झील की सबसे बड़ी पहचान है इसके तैरते हुए द्वीप, जिन्हें फुमडी कहा जाता है। ये फुमडी स्थानीय लोगों के जीवन का आधार हैं और खासतौर पर मछली पालन के लिए बहुत उपयोगी हैं।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
लोकतक झील मणिपुर की संस्कृति और परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। स्थानीय लोग इसे सिर्फ एक झील नहीं बल्कि आस्था और पूजा का पवित्र स्थान मानते हैं। झील के किनारों और तैरते हुए फुमडी पर कई मंदिर और धार्मिक स्थल बने हुए हैं। मणिपुरी लोककथाओं में इसे देवी-देवताओं का घर कहा गया है। यह झील न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि आर्थिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आसपास के लोग मछली पालन और खेती के लिए इस पर निर्भर रहते हैं। मणिपुरी गीतों, नृत्यों और कलाओं में भी इसका बार-बार जिक्र होता है। झील के पास केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान है जहाँ मणिपुर का खास हिरण ‘सांगाई’ पाया जाता है। साल 1990 में इस झील को रामसर साइट घोषित किया गया जिससे इसकी सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्ता और बढ़ गई।
फुमडी : लोकतक झील की अनूठी पहचान

लोकतक झील की सबसे खास विशेषता इसके तैरते हुए द्वीप ‘फुमडी’ हैं। फुमडी लोकतक झील की सबसे खास पहचान हैं। ये पौधों, मिट्टी और जैविक पदार्थों से बने तैरते हुए द्वीप हैं जो पानी की सतह पर रहते हैं। समय के साथ ये और मोटे और मजबूत हो जाते हैं। मणिपुरी लोग इन्हीं पर अपने घर बनाते हैं और मछली पालन व खेती करते हैं, इसलिए इन्हें ‘तैरते गाँव’ भी कहा जाता है। यह दुनिया की अनोखी व्यवस्था है क्योंकि लोकतक झील ही ऐसी जगह है जहाँ लोग स्थायी रूप से तैरते द्वीपों पर रहते हैं। फुमडी न केवल लोगों के जीवन का आधार हैं बल्कि झील की पारिस्थितिकी के लिए भी जरूरी हैं। झील में बना केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान भी इन्हीं फुमडी पर स्थित है और यह दुनिया का एकमात्र तैरता राष्ट्रीय उद्यान है।
कीबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान
लोकतक झील का सबसे बड़ा आकर्षण है केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान। यह मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में स्थित है और पूरी तरह से फुमडी यानी तैरते हुए द्वीपों पर बना है। यही वजह है कि इसे दुनिया का एकमात्र तैरता राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता है। इस उद्यान की खास पहचान है सांगाई हिरण, जिसे मणिपुर का राज्य पशु माना जाता है। इसे ‘डांसिंग डियर’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह फुमडी पर चलते समय नृत्य करता हुआ लगता है। यहाँ कई दुर्लभ पक्षी, जलीय जीव और पौधे भी पाए जाते हैं जो इसे पारिस्थितिकी के लिए बहुत महत्वपूर्ण बनाते हैं। इस उद्यान की स्थापना 1977 में हुई थी और इसका क्षेत्रफल लगभग 40 वर्ग किलोमीटर है।
पारिस्थितिक महत्व
लोकतक झील न केवल मणिपुर बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह झील घाटी की नदियों और नालों के लिए प्राकृतिक जलाशय का काम करती है और पानी की जरूरत पूरी करती है। इसमें 100 से ज्यादा मछलियों की प्रजातियां, कई पक्षी और जलीय पौधे पाए जाते हैं, जो इसे एक जीवंत पारिस्थितिक तंत्र बनाते हैं। झील के फुमडी द्वीपों पर रहने वाले हजारों लोग खेती और मछली पालन से अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं। बिजली उत्पादन के लिए भी यह झील अहम है क्योंकि इसका पानी लोकतक हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना में इस्तेमाल होता है, जिससे मणिपुर की बिजली जरूरतें पूरी होती हैं। साल 1990 में इसे रामसर साइट घोषित किया गया, जिससे इसकी वैश्विक स्तर पर महत्ता और संरक्षण का महत्व बढ़ गया।
लोकतक झील और स्थानीय जीवन
लोकतक झील के तैरते हुए द्वीपों को फुमडी कहा जाता है और इन पर बने घरों को स्थानीय भाषा में फुमशांग कहते हैं। ये तैरते घर झील पर रहने की अनोखी जीवनशैली को दिखाते हैं। यहाँ का मुख्य व्यवसाय मछली पालन है जो हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी का आधार है। फुमडी पर खेती भी की जाती है, जिससे लोग अपने लिए अनाज उगाते हैं। झील के संसाधनों का उपयोग पारंपरिक शिल्प, घरेलू काम और जीवन की जरूरतों में किया जाता है। इस तरह झील, फुमडी और यहां रहने वाले लोग एक-दूसरे से जुड़कर अपनी संस्कृति और जीवन शैली को बनाए रखते हैं।
पर्यटन और आकर्षण
