अमरावती के कांग्रेस नगर क्षेत्र में कमलताई का घर, जिसकी दीवारें डॉ. बी. आर. आंबेडकर की तस्वीरों से सजी हैं, आज खुशी और गर्व से भरा है। 84 वर्षीय कमलताई अपने बेटे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 14 मई को शपथ लेने की तैयारी के बीच आशीर्वाद देते थक नहीं रही हैं। वो सवाल करती हैं- “मेरे बच्चे को तो मुकद्दर का सिकंदर बनना ही चाहिए न?”
कमलताई, जो एक पूर्व स्कूल टीचर हैं, के लिए यह पल ऐतिहासिक है। उनके बेटे जस्टिस गवई दलित समुदाय से भारत के सीजेआई बनने वाले केवल दूसरे व्यक्ति होंगे। इससे पहले 2007 में जस्टिस के. जी. बालकृष्णन पहले दलित मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर को समाप्त होगा।
फ्रेजरपुरा की गलियां
जस्टिस गवई का बचपन अमरावती के फ्रेजरपुरा क्षेत्र में बीता, जहां वह मराठी माध्यम के नगरपालिका स्कूल में सातवीं कक्षा तक पढ़े। आज वह स्कूल उर्दू माध्यम का हो चुका है। कमलताई के घर में एक पुरानी फाइल है, जिसमें उनके बेटे की यात्रा के दस्तावेज, हस्तलिखित नोट्स, पुरानी तस्वीरें और समाचार कटिंग्स संभालकर रखे गए हैं। यह फाइल उनके बेटे के जन्म से लेकर सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद तक की कहानी बयां करती है।
जस्टिस गवई ने अक्सर संविधान की भावना को याद करते हुए कहा है कि उनकी सफलता का श्रेय डॉ. आंबेडकर के प्रयासों को जाता है। अप्रैल 2024 में एक भाषण में उन्होंने कहा, “यह केवल डॉ. आंबेडकर की वजह से है कि मैं, जो एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र के नगरपालिका स्कूल में पढ़ा, इस मुकाम तक पहुंच सका।” उनके “जय भीम” के नारे के साथ भाषण समाप्त करने पर श्रोताओं ने खड़े होकर तालियां बजाईं।
न्यायिक योगदान और ऐतिहासिक फैसले
जस्टिस गवई ने कई महत्वपूर्ण और विवादास्पद मामलों में फैसले सुनाए हैं। उन्होंने न्यूजक्लिक के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मामलों में मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुरक्षा स्थापित की। नवंबर 2024 में उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने बिना उचित प्रक्रिया के नागरिकों की संपत्ति को ध्वस्त करने को कानून के शासन के खिलाफ बताया।
वह उस सात-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने अनुसूचित जाति कोटा के उप-वर्गीकरण के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने अपने अलग राय में कहा कि कोटा विभाजन का विरोध करने वाले अनुसूचित जाति समूहों का रवैया “उच्च जातियों द्वारा अनुसूचित जातियों के साथ किए गए भेदभाव” जैसा है।
जस्टिस गवई ने फरवरी 2023 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द करने और दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को रद्द करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने वाली संविधान पीठ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक कार्य
24 नवंबर, 1960 को जन्मे जस्टिस गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई, जिन्हें उनके अनुयायी “दादासाहेब” कहते थे, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। वह अमरावती से लोकसभा सांसद रहे और 2006 से 2011 तक बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे।
कमलताई बताती हैं कि सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने वाले उनके पति को चिंता थी कि उनके बच्चे “राजनेताओं के बच्चों की तरह बिगड़” न जाएं। इसलिए, उन्होंने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संभाली। भूषण, सबसे बड़े बेटे होने के नाते, कम उम्र में ही परिपक्व हो गए थे। वह घर के कामों में मां की मदद करते, जैसे खाना बनाना, बर्तन धोना, खेतों में काम करना और देर रात बोरवेल से पानी निकालना।
आगे की चुनौतियां
मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई का कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां हैं। वह ऐसे समय में पदभार ग्रहण कर रहे हैं, जब न्यायपालिका विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है। दो मौजूदा हाई कोर्ट जजों—इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव और पूर्व दिल्ली हाई कोर्ट जज यशवंत वर्मा—के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की चर्चा है। सीजेआई बनते ही 15 मई को वह वक्फ अधिनियम में विवादास्पद संशोधनों को चुनौती देने वाले महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करेंगे।