Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • Azamghar News: पूर्व मुख्यमंत्री बोले – “भाजपा की प्राथमिकता शराब की दुकानें हैं, न कि स्कूल”
    • Bhool Bhulaiya Ka Itihas: लखनऊ की भूल भुलैया किसी रहस्य से कम नहीं, आइए जानें इसके पीछे के इतिहास को
    • Politician Devesh Thakur Wikipedia: बिहार की सियासत में एक पुराना चेहरा, नई ताकत- देवेश ठाकुर
    • पहले ही बिगड़ गया खेल! तेजस्वी की इस चाल से बिहार का बदल जाएगा ‘चुनावी गणित’, ओवैसी रह गए अकेले
    • बिहार में ‘AAP’ अकेली पड़ेगी भारी! केजरीवाल बोले- अब किसी की जरूरत नहीं.. विरोधियों के उड़ गए होश
    • Meghalay Tourist Place: कश्मीर भूल जाएँगे मॉसिनराम आ कर, दुनिया का सबसे गीला ठिकाना
    • Odanthurai Village History: ओदन्थुराई, एक ऐसा गांव जो देता है सरकार को बिजली, आइए इसे जानते हैं
    • E.T Muhammad Basheer Wikipedia: ई.टी. मुहम्मद बशीर का मिशन शिक्षा, संविधान और समावेश: संसद में IUML की एक सशक्त आवाज
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » बेलगाम@100: गाँधी और आंबेडकर का साझा मोर्चा गढ़ती कांग्रेस
    भारत

    बेलगाम@100: गाँधी और आंबेडकर का साझा मोर्चा गढ़ती कांग्रेस

    By December 26, 2024No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    डॉ. भीमराव आंबेडकर के अपमान के मुद्दे से गरमाये राजनीतिक माहौल के बीच कांग्रेस कार्यसमिति बेलगाम पहुँच गयी है। सौ साल पहले 26 दिसंबर 2024 को हुए कांग्रेस के ‘बेलगाम अधिवेशन’ में अंग्रेज़ी राज पर लगाम लगाने का रास्ता खोजा गया था। महात्मा गाँधी को इस अधिवेशन का पहली और आख़िरी बार अध्यक्ष चुना गया था जिन्होंने सत्याग्रह को ‘अस्पृश्यता निवारण’ से जोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन को नया विस्तार दिया था। सौ साल बाद ‘नव-सत्याग्रह’ शुरू करने का ऐलान करके कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह स्वतंत्रता आंदोलन के अधूरे संकल्पों को पूरा करने के लिए गंभीर है। उसके एक हाथ में गाँधी तो दूसरे में आंबेडकर का झंडा है। 27 दिसंबर को बेलगाम में होने जा रही ‘जय बापू, जय भीम और जय संविधान रैली’ कांग्रेस के चिंतन में आये बड़े बदलाव का प्रतीक है।

    कर्नाटक का बेलगाम आब ‘बेलगावी’ कहलाता है। दस साल पहले इसका नाम बदल दिया गया था। लेकिन 1924 में हुए कांग्रेस के 39वें अधिवेशन के पानी की व्यवस्था के लिए बनाया गया कुआँ आज भी लोगों की प्यास बुझाता है। आज उसकी शोहरत ‘कांग्रेस कुआँ’ के नाम से है लेकिन सौ साल पहले हुए अधिवशन में उसे ‘पम्पा सरोवर’ नाम दिया गया था। बेलगाम अधिवेशन ने ‘चौरी चौरा कांड’ के बाद असहयोग आंदोलन के स्थगित होने से उपजी हताशा से देश को बाहर निकाला था। महात्मा गाँधी ने कांग्रेस और कांग्रेसी होने का मतलब तय किया था। इसी अधिवेशन में खादी को अनिवार्य बनाया गया था और अस्पृश्यता निवारण को लक्ष्य घोषित किया गया था। न्याय सस्ता करने और सभी के धार्मिक स्वतंत्रता की माँग की गयी और संविधान में संशोधन करके चार आने की सदस्यता की जगह दो हज़ार गज़ सूत कातकर ‘चरखा संघ’ को देना अनिवार्य कर दिया गया।

    दस साल से मोदी सरकार से मोर्चा ले रही कांग्रेस आज फिर वहाँ खड़ी है जहाँ उसे वैसी ही ऊर्जा की तलाश है जैसी सौ साल पहले के ‘बेलगाम अधिवेशन’ से हासिल हुई थी। उस अधिवेशन ने राजनीतिक आज़ादी के साथ-साथ अस्पृश्यता जैसे प्रश्न को कांग्रेस के साथ जोड़ा था तो आज की कांग्रेस आर्थिक न्याय के साथ-साथ सामाजिक न्याय का मोर्चा साधने को बेचैन दिख रही है। ‘जाति जनगणना’ और ‘आरक्षण की सीमा बढ़ाने’ को लेकर उसके स्पष्ट रुख़ ने साफ़ किया है कि वह गाँधी और आंबेडकर की बहस से उपजे सहमति के बिंदुओं को जोड़कर एक नया प्रकाश स्तम्भ तैयार करना चाहती है।

    डॉ. आंबेडकर ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चल रही आज़ादी की लड़ाई के सामने कुछ ऐसे प्रश्न खड़े कर दिये थे जो उस दौर के तमाम नेताओं की नज़र में ‘लक्ष्य’ से भटकाने वाले थे। लेकिन महात्मा गाँधी और नेहरू ने माना था कि उन सवालों का हल खोजे बिना आज़ादी की अवधारणा पूरी नहीं हो सकती। डॉ. आंबेडकर का सीधा सवाल था कि आज़ादी के बाद ‘दलित वर्ग’ का क्या होगा क्या उन्हें अंग्रेज़ों के जाने के बाद वैसे ही ‘धर्मसम्मत’ वर्णव्यवस्था की चक्की में पिसते रहना पड़ेगा या हज़ारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी ग़ुलाम बनाने की इस व्यवस्था का भी अंत होगा डॉ. आंबेडकर ने अपने तीखे सवालों से महात्मा गाँधी को भी निशाना बनाया था। बहरहाल, 1932 में हुए ‘पूना पैक्ट’ ने तय कर दिया कि दलितों के प्रतिनिधित्व को आरक्षण के ज़रिए सुनिश्चित किया जाएगा। अनुभव बताता है कि आरक्षण की व्यवस्था ने भारतीय समाज में एक ऐसी अभूतपूर्व मौन-क्रांति की है जिसने करोड़ों परिवारों का जीवन बदल दिया।

    यही नहीं, डॉ. आंबेडकर ने ‘जाति उच्छेद’ को भारत के ‘राष्ट्र’ होने की शर्त बताकर भी पुरातनपंथियों में खलबली मचा दी थी। जातिप्रथा को ख़त्म करने का उपाय वे अंतरजातीय विवाह बताते थे। उनकी बहस का प्रभाव यह रहा कि गाँधी जी ने घोषणा की कि वे उन्हीं विवाहों में आशीर्वाद देने जायेंगे जिनमें एक पक्ष दलित होगा। इसका पालन करते हुए वे अपने सचिव महादेव देसाई के बेटे की शादी में शामिल नहीं हुए। उधर, कांग्रेस की सरकार बनने पर ‘विशेष विवाह अधिनियम का प्रावधान’ किया गया जो युवाओं को जाति-धर्म के भेद को तोड़कर विवाह का अधिकार देता है।

    कुल मिलाकर डॉ. आंबेडकर ने आज़ादी के आंदोलन और कांग्रेस के चिंतन को समावेशी और वैज्ञानिक बनाने में अभूतपूर्व भूमिका अदा की। उनके अभाव में आज़ादी वाक़ई अधूरी ही रहती।

    कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर के सवालों के महत्व को स्वीकार किया और महात्मा गाँधी पर लगातार सवाल उठाने वाले डॉ. आंबेडकर न सिर्फ़ कांग्रेस के सहयोग से संविधान सभा के सदस्य बल्कि संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष भी बनाये गये। जिस हिंदू कोड बिल को तुरंत पास न होने से नाराज़ होकर डॉ. आंबेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था, उसे भी नेहरू जी ने पहले लोकसभा चुनाव जीतने के बाद टुकड़ों-टुकड़ों में संसद से पास करा लिया। नेहरू सरकार द्वारा किये गये ज़मींदारी उन्मूलन में ‘भूमि के राष्ट्रीयकरण’ की डॉ. आंबेडकर की माँग की छाया स्पष्ट है।

    बीजेपी, डॉ. आंबेडकर का नाम लेने को फ़ैशन बताने की गृहमंत्री अमित शाह की टिप्पणी से उपजे आक्रोश को अलग ही मोड़ देने में जुट गयी है। पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के कई नेता कांग्रेस पर डॉ. आंबेडकर के अपमान का आरोप लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर को 1952 में लोकसभा चुनाव नहीं जीतने दिया। पर वे भूल जाते हैं कि अपनी हार के लिए डॉ. आंबेडकर ने सावरकर को ज़िम्मेदार ठहराया था और इसी साल कांग्रेस के सहयोग से वे राज्यसभा सदस्य भी चुन लिये गये थे। यानी कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर का संसद में होना सुनिश्चित किया। आंबेडकर और कांग्रेस में जो भी मतभेद था, वह प्राथमिकताओं को तय करने और उस पर ज़ोर देने को लेकर था, न कि लक्ष्य को लेकर। दोनों एक ‘सेक्युलर, समावेशी और लोकतांत्रिक’ भारत बनाना चाहते थे जबकि आरएसएस/बीजेपी इस सपने को पहले दिन से उलटने में जुटी है।

    डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि अगर सामाजिक और आर्थिक बराबरी नहीं होगी तो राजनीतिक आज़ादी ख़तरे में पड़ जाएगी। मोदी राज में यही होता दिख रहा है। भारत का लोकतंत्र तेज़ी से निर्वाचित तानाशाही में तब्दील होता जा रहा है। किसी भी छल-बल से लोगों के वोट हासिल करने को ही लोकतंत्र बताया जा रहा है। तमाम संवैधानिक संस्थाएँ अपना तेज़ खो चुकी हैं और आर्थिक विषमता ख़तरनाक स्तर तक बढ़ चुकी है। यही नहीं, आरक्षण जैसे प्रतिनिधित्व के क्रांतिकारी उपाय को बेमानी बनाने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों को बड़े पैमाने पर निजी हाथों में बेचा जा रहा है। साथ में ‘लेटरल एंट्री’ जैसी सीधी और मनमानी भर्ती की व्यवस्था को भी गति दी जा रही है।

    ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपनी प्राथमिकताओं को नये सिरे से तय करती दिख रही है। अब उसके मंच पर गाँधी के साथ आंबेडकर भी हैं। बल्कि कहा जाये तो आंबेडकर ही कांग्रेस के नये नारे को गढ़ रहे हैं। रायपुर अधिवेशन में पास किये गये राजनीतिक-आर्थिक प्रस्तावों ने कांग्रेस में आ रहे बदलावों का जो संकेत दिया था, उसे बेलगाम की ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान रैली’ और साफ़ कर रही है। बेलगावी बन चुके बेलगाम का ‘कांग्रेस कुआँ’ गाँधी और आंबेडकर का साझा मोर्चा बनता देख रहा है जो कांग्रेस का ही नहीं, देश का भविष्य भी तय करेगा।

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleप्रेम राशिफल से जानें, वर्ष 2025 में किन राशियों का प्रेम चढ़ेगा परवान; सिंगल भी होंगे मिंगल!
    Next Article Congress CWC Meeting: बेलगावी में कांग्रेस बैनरों पर भारत का गलत नक्शा, छिड़ा विवाद

    Related Posts

    ट्रंप की तकरीर से NATO में दरार!

    June 25, 2025

    ईरान ने माना- उसके परमाणु ठिकानों को काफी नुकसान हुआ, आकलन हो रहा है

    June 25, 2025

    Satya Hindi News Bulletin। 25 जून, शाम तक की ख़बरें

    June 25, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    मूंग की फसल पर लगा रसायनिक होने का दाग एमपी के किसानों के लिए बनेगा मुसीबत?

    June 22, 2025

    केरल की जमींदार बेटी से छिंदवाड़ा की मदर टेरेसा तक: दयाबाई की कहानी

    June 12, 2025

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    MECL में निकली भर्ती, उम्मीवार ऐसे करें आवेदन, जानें क्या है योग्यता

    June 13, 2025

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.