
BJP Politics: भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों कुछ खास चल रहा है, और वो खास है ‘मुख्यमंत्री बचाओ अभियान’। पार्टी ने पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट खोल ली है। नेताओं की कुर्सियाँ अब बोर्ड के रिजल्ट की तरह हैं कोई पास, कोई फेल, और कुछ ग्रेस मार्क्स के भरोसे टंगे हुए। सूत्र बताते हैं कि इस बार योगी आदित्यनाथ, भूपेंद्र पटेल, पुष्कर सिंह धामी, प्रमोद सावंत और राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा सबकी बारी-बारी से स्क्रीनिंग हो रही है। सवाल बड़ा है बाबा जाएंगे क्या? लेकिन जवाब उतना ही सस्पेंस से भरा है, जितना किसी वेब सीरीज़ का क्लाइमेक्स।
बाबा हटेंगे? सवाल हवा में, जवाब अटकी सांसों में
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पर चर्चा चल रही है, लेकिन अभी तक सब कुछ हवाओं में है कुछ लोगों के अनुसार ये महज अफवाह है, जबकि दूसरों के अनुसार अफवाह भी कुछ सोचकर उड़ती है। भाजपा का परंपरागत वोटबैंक यानी ब्राह्मण-क्षत्रिय-बनिया समीकरण अब एक-दूसरे को घूर रहा है। ब्राह्मण खफा हैं, क्षत्रिय कन्फ्यूज हैं और बनिए को सिर्फ अपना हिसाब चाहिए। भाजपा की रणनीति टीम अब गणित में फंसी है अगर ब्राह्मण दूर गया, तो क्षत्रिय अखिलेश के पास क्यों गया? कह सकते हैं कि योगी जी के राज में कानून व्यवस्था सुधरी हो या न हो, जातीय समीकरण जरूर उलझ गए हैं।
गुजरात के भूपेंद्र भाई: सीएम नहीं रहना, थक गया हूँ भाई
गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल का मामला थोड़ा अलग है। उन्होंने खुद कहा है कि वो इस जिम्मेदारी को दोबारा नहीं निभाना चाहते। अब ये अलग बात है कि ये इच्छा उनकी खुद की है या हाईकमान की अनकही सलाह, ये अभी क्लियर नहीं। सियासी पंडितों की मानें तो भूपेंद्र भाई पर अंदरूनी दबाव भी हो सकता है। गुजरात की राजनीति में जब तक आप खुद कुर्सी नहीं छोड़ते तब तक कोई नहीं मानता कि आपने छोड़ी है। यानी स्वेच्छा शब्द का मतलब अक्सर दबाव भी होता है।
उत्तराखंड, गोवा, राजस्थान: कुर्सी बचेगी या चेहरा बदलेगा?
तीन राज्यों की कुर्सियाँ भी मंथन में हैं। उत्तराखंड में धामी जी दोबारा आए जरूर पर ये संकल्प यात्रा कब तक चलेगी? गोवा में प्रमोद सावंत कभी डॉक्टर थे, अब राजनीतिक सर्जरी से खुद गुजर रहे हैं। राजस्थान में तो मामला सबसे दिलचस्प है। यहां के मुख्यमंत्री पहले ही दिल्ली के चक्कर लगाने लगे। सियासत की हवाओं में उड़ रही अफवाहों के बीच पीएम मोदी से मुलाकात कर रहे।
दिल्ली की उलझनें नाम तय नहीं, चेहरा ढूँढ रहे हैं
इन सबके बीच हाईकमान खुद भी थोड़ा उलझा हुआ है। उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार की तलाश, बिहार की रणनीति, विपक्ष के तानों की बौछार सब एक साथ आ रहा है। लेकिन फिर भी, वक्त निकालकर मुख्यमंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट चेक हो रही है।शायद पार्टी ने Appraisal Season शुरू कर दिया है। फर्क बस इतना है कि कॉर्पोरेट में बोनस मिलता है, यहां कुर्सी जाती है।
भाजपा का ‘कुर्सी संतुलन’ ऑपरेशन चालू है
इन सबके बीच भाजपा एक बात जरूर समझ चुकी है 2024 के बाद की राह इतनी सीधी नहीं है। चेहरे बदले बिना छवि नहीं बदलेगी और छवि बदले बिना चुनाव नहीं जीतेंगे। तो क्या बाबा की विदाई होगी? क्या भूपेंद्र पटेल जाएंगे? क्या राजस्थान में कोई नया चेहरा आएगा? जवाब फिलहाल हाईकमान की गोपनीय फाइलों में बंद है। लेकिन इतना तय है कुर्सी का खेल फिर से शुरू हो चुका है। और इसमें दोस्त भी खिलाड़ी हैं, और विपक्ष तो कमेंट्री में है ही।