भारत-पाकिस्तान युद्धविराम की घोषणा के एक दिन बाद, विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि अमेरिका ने इस समझौते को करवाने में क्या भूमिका निभाई और सरकार से युद्धविराम की पूरी जानकारी साझा करने और देश को विश्वास में लेने की मांग की।
नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की ताकि पहलगाम आतंकी हमले, ऑपरेशन सिंदूर और युद्धविराम की घोषणाओं पर चर्चा की जा सके। कांग्रेस, जिसने आतंकी हमले और उसके मास्टरमाइंड के खिलाफ सरकार की किसी भी कार्रवाई को बिना शर्त समर्थन दिया था, अब इस “अचानक हुई” युद्धविराम घोषणा और अमेरिका की भूमिका पर सवाल कर रही है। पार्टी यह जानना चाहती है कि क्या भारत को पाकिस्तान से आतंकवाद के ढांचे को ध्वस्त करने को लेकर कोई “ठोस आश्वासन” मिला है, जिसने इस युद्धविराम का रास्ता साफ किया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, “पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ को दोपहर 3.35 बजे फोन कर युद्धविराम का प्रस्ताव दिया और भारत ने सहमति जताई। राष्ट्रपति ट्रंप ने शाम 5.25 बजे युद्धविराम की घोषणा ट्वीट किया… कुछ मिनट बाद अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने ट्वीट किया कि भारत और पाकिस्तान एक ‘तटस्थ स्थान’ पर बातचीत करेंगे। भारत के विदेश सचिव ने शाम 6 बजे एक संक्षिप्त बयान दिया। घटनाओं और घोषणाओं की यह समयरेखा चौंकाने वाली है। भारत के विदेश सचिव ने न तो राष्ट्रपति ट्रंप, न ही विदेश मंत्री मार्को रुबियो, न ही किसी बैठक या तटस्थ स्थान का जिक्र किया—यह भी चौंकाने वाली बात है।”
एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, “डीजीएमओ बिना उच्च स्तर की मंजूरी के युद्धविराम पर कैसे सहमत हो सकते हैं? इससे जो निष्कर्ष निकाला जा सकता है वह यह है कि उच्च नेतृत्व की ओर से डीजीएमओ को युद्धविराम पर सहमत होने का निर्देश मिला था। तो क्या हुआ, इसका खुलासा होना चाहिए।”
कई कांग्रेस नेताओं ने इस ओर इशारा किया कि अतीत में भी जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंचा है, तब अमेरिका ने हस्तक्षेप किया है, लेकिन वाशिंगटन ने कभी भी अपनी परदे के पीछे की कोशिशों को सार्वजनिक नहीं किया। इस मायने में, उन्होंने कहा, इस युद्धविराम को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता था।
उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि “क्या पाकिस्तान ने आतंकवाद के ढांचे को समाप्त करने को लेकर कोई प्रतिबद्धता जताई? इस दमनकारी प्रतिरोध (coercive deterrence) की पूरी सोच यही है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंक की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। तो युद्धविराम अपनी जगह, लेकिन उस आतंक के ढांचे को खत्म करने को लेकर क्या ठोस आश्वासन मिला है?… अगर मान लें कि भारत और पाकिस्तान ने व्यापक मुद्दों पर बात करने का निर्णय लिया है, जैसा कि 2021 की संयुक्त घोषणा में भी कहा गया था, तो उसकी पूर्व शर्त यह होनी चाहिए कि पाकिस्तान को भारत और क्षेत्र में आतंक फैलाना बंद करना होगा।”
कांग्रेस की ओर से पार्टी की आधिकारिक लाइन स्पष्ट करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीडब्ल्यूसी सदस्य सचिन पायलट ने कहा, “यह पहली बार था जब युद्धविराम की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने सोशल मीडिया पर की। और उन्होंने जो लिखा, उस पर ध्यान देना चाहिए। भारत-पाकिस्तान विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की जो नई कोशिश हुई है, वह बहुत चौंकाने वाली है। किस शर्त पर युद्धविराम घोषित किया गया है और क्या इसकी कोई गारंटी है कि ऐसे हालात दोबारा नहीं होंगे, क्योंकि कल जो हुआ (उल्लंघन), उसके बाद कोई भरोसा नहीं बचा। हम (पाकिस्तान पर) कैसे भरोसा करें और इसकी क्या गारंटी है कि ऐसे घटनाक्रम दोबारा नहीं होंगे?”
पायलट ने कहा- “कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की कोशिश उचित नहीं है। संसद में 1994 में पारित उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को फिर से अपनाने का समय आ गया है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की बात कही गई थी। यह स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और किसी भी देश, अमेरिका सहित, को इसमें हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।”
रुबियो द्वारा भारत-पाकिस्तान संवाद के लिए “तटस्थ स्थान” की बात उठाए जाने को लेकर कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने सवाल किया, “क्या हमने शिमला समझौते को त्याग दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाज़ा खोल दिया है? अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक चैनल फिर से खोले जा रहे हैं, तो हमने क्या शर्तें रखी हैं और हमें क्या मिला है?” कांग्रेस ने 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के संदर्भ में फिर से इंदिरा गांधी को याद किया। हालांकि, कांग्रेस नेता और संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने कहा कि 1971 के युद्ध की परिस्थितियां आज की परिस्थिति से अलग हैं।