मणिपुर में राजनीतिक गतिविधियों ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। मणिपुर के 23 बीजेपी विधायकों ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण बैठक की, जिसमें उन्होंने राज्य में ‘लोकप्रिय सरकार’ के गठन की दिशा में काम करने का संकल्प लिया। यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब मणिपुर 13 फरवरी 2025 से राष्ट्रपति शासन के तहत है और राज्य विधानसभा निलंबित पड़ी है।
60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में भाजपा के पास 37 विधायक हैं, जिनमें से सात कुकी-जो समुदाय से हैं। शुक्रवार की बैठक में कुकी-जो समुदाय के विधायक शामिल नहीं थे। इसके अलावा, इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और विधानसभा अध्यक्ष सत्यब्रत सिंह भी शामिल नहीं हुए। बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा गया कि विधायकों ने “निजी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर” राज्य और इसके लोगों के व्यापक हित में एकजुट होकर काम करने का निर्णय लिया है।
यह बैठक 28 मई को 10 एनडीए विधायकों द्वारा मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला से मुलाकात के दो दिन बाद हुई, जिसमें उन्होंने 44 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए लोकप्रिय सरकार के गठन की मांग की थी। विधायकों ने अपने बयान में कहा, “हमने एकजुटता और निस्वार्थ भाव से लोकप्रिय सरकार के गठन के रास्ते पर चर्चा की। हमारा मानना है कि मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सभी समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ समावेशी संवाद जरूरी है।”
बयान में यह भी सुझाव दिया गया कि मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच विश्वास और सहमति बनाने के लिए एक तटस्थ संवाद मंच की स्थापना की जानी चाहिए। इसके साथ ही, विधायकों ने एक “तटस्थ शांति दूत” या “प्रख्यात व्यक्तियों के पैनल” की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा, जिसमें मणिपुर के बाहर और भीतर के लोग शामिल हों। साथ ही, लूटी गई हथियारों की वसूली और अंतर-सामुदायिक संवाद को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया।
मणिपुर में 2023 से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा के कारण स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इस हिंसा के बाद से राज्य में शांति स्थापना एक बड़ी चुनौती रही है। फरवरी 2025 में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।
हालांकि, केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व ने संकेत दिया है कि अभी राष्ट्रपति शासन को हटाने की संभावना कम है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार का मानना है कि शांति प्रक्रिया धीरे-धीरे सही दिशा में बढ़ रही है, और सरकार के गठन का कोई भी प्रयास इस प्रक्रिया को पटरी से उतार सकता है।
विधायकों की इस पहल को कुछ लोग मणिपुर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की दिशा में एक कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक रणनीति के रूप में देख रहे हैं। मणिपुर की जनता और सिविल सोसाइटी समूहों में राष्ट्रपति शासन के दौरान ठोस कार्रवाई की कमी को लेकर बेचैनी देखी जा रही है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व विधायकों की भावनाओं को समझता है और उनसे बातचीत करेगा।” हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार गठन का निर्णय केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर है। मणिपुर में शांति और स्थिरता की बहाली के लिए विधायकों का यह कदम कितना प्रभावी होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि राज्य की जटिल सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को सुलझाने के लिए संवेदनशील नजरिए की जरूरत है।