वे जो बांग्लादेश में हिंदुओं पर कथित हमलों पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, उन्हें मणिपुर में पिछले डेढ़ साल से जारी हिंसा और वहां के लोगों की दुर्दशा पर शर्म आनी चाहिए। मणिपुर केवल सिसक नहीं रहा है, बल्कि दहाड़ें मार कर रो रहा है। वहां की महिलाएं विधायकों के घरों पर जाकर छाती पीट-पीट कर चीख रही हैं। इंफाल से आए दिल दहला देने वाले वीडियो इसकी गवाही दे रहे हैं। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
कई लोगों को उम्मीद थी कि शायद तीसरे कार्यकाल में, बैसाखियों पर चल रही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार, संघ प्रमुख मोहन भागवत की झिड़कियों को सुनकर ही सही, मणिपुर के हालात सुधारने की कोई ठोस पहल करेगी। लेकिन सरकार ने हालात इस कदर बिगाड़ दिए हैं कि उसे खुद ही संभालना मुश्किल हो रहा है।
ताजा घटनाएं और बढ़ता आक्रोश
ताजा हालात तब बिगड़े, जब बीते हफ्ते 11 नवंबर को सुरक्षा बलों ने जिरीबाम जिले में कथित कूकी उग्रवादियों पर कार्रवाई की। मुठभेड़ में कथित 10 उग्रवादियों को मार गिराया गया। इनमें 9 म्यांमार से और 1 बांग्लादेशी घुसपैठिया बताया गया। इसके बाद, मृतकों के परिजनों ने असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल (SMCH) के बाहर प्रदर्शन किया। पुलिस द्वारा शव मणिपुर पुलिस को सौंपे जाने की बात कहने पर प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और पत्थरबाजी शुरू कर दी। असम पुलिस ने लाठीचार्ज किया। फिर हालात काबू में आए और परिजन मणिपुर पुलिस से शव लेने पर सहमत हुए। इसके बाद शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट किया गया।
इसी बीच 11 नवंबर को CRPF और पुलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान सशस्त्र उग्रवादियों ने छह लोगों—तीन महिलाएं और तीन बच्चों को अगवा कर लिया। शुक्रवार को बराक नदी में इनमें से तीन शव मिलने के बाद राज्यभर में भारी विरोध प्रदर्शन हुए। इन शवों में एक आठ महीने का बच्चा भी शामिल था। हालातों से दुखी होकर जिरीबाम के पुलिस थाना प्रभारी इंस्पेक्टर सागापाम इबातोम्बी सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
महिला प्रदर्शनकारी और जनाक्रोश का विस्फोट
शनिवार को इंफाल में हालात बेकाबू हो गए। राज्य में महिला अधिकारों के लिए प्रसिद्ध संगठन ‘मेईरा पैबीस’ ने बीजेपी के कई विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हमले किए। कम से कम तीन विधायकों के घरों में आगजनी और तकरीबन दस विधायकों के घरों पर तोड़फोड़ की घटनाएं भी सामने आईं। मेईरा पैबीस ने राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी व एनडीए के विधायकों के घरों पर प्रदर्शन और तोड़फोड़ की योजना बना ली है। इससे घाटी के हालात और बिगड़ गये हैं।
ऐसे चले घटनाक्रम
· 11 नवंबर: सुरक्षा बलों के साथ जिरीबाम जिले में मुठभेड़
· मुठभेड़ में 10 उग्रवादियों को मार गिराया गया
· इनमें 9 म्यांमार से और 1 बांग्लादेशी घुसपैठिया बताया गया
· 15 नवंबर: जिरीबाम जिले में छह लोगों का अपहरण कर निर्मम हत्या कर दी गई
· मारे गए लोग तीन महिलाएं और तीन बच्चे थे, जो एक राहत शिविर में रह रहे थे
· इस घटना ने पूरे राज्य में आक्रोश की लहर दौड़ा दी
· 16 नवंबर: विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हमले
· तीन विधायकों के घरों में आग लगा दी गई
· दस से अधिक विधायकों के घरों पर तोड़फोड़ की गई।
· आक्रोशित महिलाओं ने सत्ताधारी नेताओं के खिलाफ एक संगठित अभियान शुरू कर दिया है।
पिछले डेढ़ साल से जारी जातीय संघर्ष ने राज्य को राजनीतिक, सामाजिक और मानवीय संकट के गर्त में धकेल दिया है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार न केवल इस संकट को सुलझाने में असफल रही है, बल्कि जनता का विश्वास भी खो चुकी है। मणिपुर, जो कभी अपनी सांस्कृतिक विविधता और शांतिपूर्ण परंपराओं के लिए जाना जाता था, अब हिंसा और अस्थिरता का पर्याय बन चुका है और गंभीर संकट का सामना कर रहा है। जातीय हिंसा, राजनीतिक अस्थिरता और जनता का गहराता असंतोष राज्य को कमजोर कर रहा है। स्थायी शांति और विकास के लिए एक व्यापक, संवेदनशील और समावेशी समाधान की आवश्यकता है, जिसकी ठोस पहल नहीं दिखायी देती।
विधायकों के घरों पर मैतेई समुदाय की महिलाओं के प्रदर्शन की ताजा घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि जनता अब अपने नेताओं से जवाबदेही चाहती है। राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध और सात जिलों में कर्फ्यू जैसी सख्त कार्रवाई भी जनता की नाराजगी को दबा नहीं पा रही।
एक अंतहीन संघर्ष: जातीय विभाजन और उसके परिणाम
मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच संघर्ष मई 2023 में मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा पाने की मांग से शुरू हुआ। इस मांग ने कुकी और नागा जनजातियों के लिए एक अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया। उन्हें डर था कि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिलने से आरक्षण और अन्य अधिकारों में उनकी हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
इस विवाद ने राज्य में जातीय तनाव को बढ़ा दिया, और इसका परिणाम बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी और लोगों के पलायन के रूप में सामने आया। राज्य में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं।
मेईरा पैबीस का नेतृत्व और सरकार पर नाराजगी
मणिपुर की महिला शक्ति और सामाजिक न्याय की प्रतीक रही मेईरा पैबीस ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और उनकी सरकार इस हिंसा को रोकने में पूरी तरह असफल रही है।
एक प्रदर्शनकारी महिला ने कहा,
“हमने अपने घर, अपने बच्चे और अपनी शांति खो दी है। अब हम और चुप नहीं बैठ सकते। अगर हमारे नेता हमारी रक्षा नहीं कर सकते, तो हमें उन्हें उनके पद से हटाना होगा।”
एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा,
“हमारे नेता केवल अपने पदों पर बने रहना चाहते हैं। उन्हें हमारी तकलीफों से कोई फर्क नहीं पड़ता।”
बीजेपी के कई विधायकों के घरों पर हमले हुए, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:
सुशील्ड्रो उर्फ याइमा (मंत्री और विधायक, इंफाल ईस्ट)आर.के. इमो (मुख्यमंत्री के दामाद और विधायक)सपम निशिकांत सिंह (विधायक, इंफाल वेस्ट)
केंद्र सरकार का विफल शांति प्रयास
मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा शुरू होने के कुछ महीने बाद राज्य का दौरा किया था और कहा था कि “यह समय शांति और सौहार्द का है। हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती।”
पिछले महीने ही गृहमंत्री शाह के निर्देशों पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीनस्थ खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर दिल्ली में शांति वार्ता के लिए दोनों समुदायों के विधायकों की बैठक बुलायी थी। बावजूद इसके बैठक में कूकी जनजातीय समुदाय के कुल 10 में से 4 विधायक ही आ पाये थे। तभी यह लगने लगा था कि समस्या आसानी से नहीं निपटने वाली है। वैसे भी यह बैठक दरअसल जितनी मणिपुर के जनजातीय संघर्षों पर विराम के लिए थी, उससे कहीं ज्यादा राज्य की भाजपा नीत एनडीए सरकार को बचाने के लिए थी। नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
केंद्र ने सेना की तैनाती बढ़ाई और एक विशेष शांति समिति का गठन किया। हालांकि, इन सभी प्रयासों के बावजूद हिंसा रुकने के बजाय और बढ़ गई।
अक्टूबर 2024 में केंद्र ने छह थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (AFSPA) फिर से लागू कर दिया। इस कदम को सरकार की सख्ती दिखाने का प्रयास माना गया, लेकिन इसने जनता का गुस्सा और बढ़ा दिया है।
राजनीतिक नेतृत्व पर सवाल
भाजपाई मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और उनकी सरकार को अब तक का सबसे बड़ा जन विरोध झेलना पड़ रहा है। लोगों का मानना है कि सरकार ने न केवल स्थिति को नजरअंदाज किया, बल्कि इस संकट को और बढ़ा दिया। बीजेपी विधायक करम श्याम ने जनता के दबाव के बाद इस्तीफा देने की पेशकश की।
बदलाव की पुकार
मणिपुर की हिंसा न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यह दिखाता है कि जातीय और राजनीतिक समस्याएं यदि समय पर नहीं सुलझाई गईं, तो वे पूरे समाज को तोड़ सकती हैं। मणिपुर की भाजपा सरकार इस मामले में पूरी तरह विफल रही है। फिर भी राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया गया।
अब मणिपुर की महिलाएं यह संदेश दे रही हैं कि वे इस अन्याय को और बर्दाश्त नहीं करेंगी। सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने और राज्य को फिर से शांति और विकास की राह पर लाने का अवसर खो चुकी है। राज्य हिंसा, अराजकता और अनिश्चितता के गंभीर संकट से गुजर रहा है और भाजपा सरकार बेशर्मी से बांग्लादेश में हिंदुओं पर कथित हमलों का सवाल उठाकर देश की जनता को गुमराह कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबतक मणिपुर का दौरा नहीं किया है। मणिपुर में तुरंत बदलाव की जरूरत है। राष्ट्रपति शासन से भी हल नहीं निकलने वाला। क्योंकि राज्य के लोगों का विश्वास राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों से उठ चुका है। मणिपुर को संकट से उबारने का अंतिम मौका शायद तत्काल चुनाव कराकर नयी सरकार बहाल करना ही बच गया है। राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समाधान की दिशा में खुले मन से सभी पक्षों को लेकर तुरंत विचार करने की आवश्यकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पूर्वोत्तर में कई सालों तक कार्य कर चुके हैं।)