मध्य प्रदेश में सीहोर जिले के मुंगावली गांव के रहने वाले बलराम पाटीदार ने अपनी गाय का सॉर्टेड सेक्सड सीमन (Sorted Sexed Semen) तकनीक से कृतिम गर्भाधान करवाया। यह तकनीक सुनिश्चित करती है कि गाय को पैदा होने वाला बच्चा फीमल काफ यानी बछिया ही हो।
भारत में उत्तराखंड के बाद मध्य प्रदेश दूसरा ऐसा राज्य है जहां सॉर्टेड सेक्स सीमन तैयार करने के लिए नैशनल गोकुल मिशन के तहत 47.50 करोड़ रुपए की लागत से लैबोरेटरी की स्थापना की गई है। इस तकनीक पर अमेरिका की कंपनियों का पेटेंट हैं। भारत इस तकनीक पर प्रति डोज़ 800 रुपए खर्च कर रहा है और किसानों सब्सिडी देकर 100 रुपये में एक डोज़ उपलब्ध करवा रहा है। इस योजना का उद्देश्य बछिया पैदा करने के साथ-साथ गाय की उन्नत ब्रीड तैयार करना भी है।
हमने अपनी रिपोर्ट में यह समझने का प्रयास किया है कि ज़मीन पर इस प्रोग्राम की स्थिति क्या है और तकनीक की मदद से गाय के गर्भ में पलने वाले बच्चे का लिंग निर्धारण करने की ज़रुरत क्यों पड़ रही है?
खत्म होती बैलों और नंदियों की ज़रुरत
भारत में लगातार आवारा मवेशियों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है। भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा करवाए गए 20वे लाईवस्टॉक सेंसस के अनुसार मध्य प्रदेश में 8 लाख 53 हज़ार से अधिक आवारा मवेशी हैं। वर्ष 2012 से 2019 के बीच ही राज्य में अवारा मवेशियों की संख्या में 95 फीसदी का उछाल आया है।
Data source: 20th Livestock Census
राज्य में वर्ष 2004 से ही गौवध पर प्रतिबंध है, ऐसे में सड़कों पर आवारा घूम रहे मवेशी रोड एक्सीडेंट का कारण बन रहे हैं या किसानों की फसल चौपट कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश में सरकार तेज़ी से गौशालाओं का निर्माण तो करवा रही है लेकिन जितनी तेज़ी से किसानों द्वारा छोड़ी जा रही गायों की संख्या बढ़ रही है उसके अनुपात में गौशालाओं की संख्या बेहद कम है।
‘बैल अब किस काम के?’
भोपाल के भदभदा स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सीमन जहां सॉर्टेड सेक्स्ड सीमन तैयार किये जा रहे हैं, वहां की इंचार्ज डॉक्टर दीपाली देशपांडे बताती हैं
“खेती में अब बैलों और नंदियों का काम नहीं बचा है। अब किसान इन्हें पालते नहीं है। इसीलिए हमें सड़कों पर बैल और नंदी स्ट्रे ऐनिमल की तरह दिखाई देते हैं। सॉर्टेड सेक्स तकनीक की मदद से बैलों और नंदियों के पैदा होने की संख्या को काबू में किया जा सकता है।”
हालांकि डॉ देशपांडे कहती हैं कि इस तकनीक को सिर्फ इस नज़रिये से देखना की इससे केवल बछिया ही पैदा होगी, यह कहना गलत होगा। इसका उद्देश्य अच्छी नस्ल की गाय तैयार करना भी है। जिससे दूध उत्पादन बढ़ेगा और किसानों को आर्थिक लाभ होगा। इससे वो अपनी गायों को छोड़ेगा नहीं।
मिशन मोड पर सीहोर
सीहोर में पशुपालन एवं डेयरी विभाग के उप संचालक डॉक्टर अशोक भदौरिया के मुताबिक यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस तकनीक का उपयोग करें। वो कहते हैं
“हमें यह पूरा विश्वास है कि मार्च 2025 तक हम करीब 1 लाख गायों में सॉर्टेड सेक्स्ड सीमन तकनीक से गर्भाधान का लक्ष्य हासिल कर लेंगे।”
सेंट्रल सीमन इंस्टीट्यूट भोपाल से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में 15 अक्टूबर 2024 तक 1 लाख 63 हज़ार 438 गायों को सॉर्टेड सेक्स सीमन दिया जा चुका है। इससे पैदा हुए कुल 26,400 बच्चों में 25 हज़ार 38 बछिया यानी फीमेल काफ ही हैं।
Sexed Semen Insemination by 15th October 2024, Data from Central Semen Institute Bhopal
बलराम पाटीदर जिन्होंने अपनी गाय का सॉर्टेड सेक्स सीमन तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान करवाया था उनके यहां बछिया ने ही जन्म लिया है। लेकिन उनके पिता शालीग्राम पाटीदार इसके नतीजों से खुश नहीं है वो कहते हैं
“हमारी गाय की नस्ल बदल गई है। हमारी गाय को कई पीढ़ियों से सींग नहीं थे और सभी बछियाओं का रंग काला था। लेकिन इस तकनीक से जन्मी बछिया को सींग हैं और इसकी नस्ल भी समझ नहीं आ रही है।”
डॉ देशपांडे इसकी वजह गलत तरीके से किया गया कृत्रिम गर्भाधान बताती हैं। उनके अनुसार सॉर्टेड सेक्स्ड सीमन तकनीक को लेकर किसानों में जागरुकता की बेहद कमी है। उन्हें इसका उपयोग करने से पहले यह जान लेना चाहिए कि उनकी गाय को किस नस्ल की स्ट्रॉ से गर्भाधान करवाया जा रहा है। वो कहती हैं
“सॉर्टेड सेक्स्ड सीमन की जो स्ट्रॉ होती है वो सफेद रंग की होती है और उसमें नस्ल के अनुसार रंगीन टैग होते हैं जिससे किसान समझ सकता है कि यह सीमन किस नस्ल का है। किसान अपने पास यह स्ट्रॉ संभाल कर रख सकता है।”
जब हमने कुछ पशु चिकित्सकों से इस बारे में बात की तो पता चला कि वो किसानों को यह स्ट्रॉ या कोई कार्ड नहीं देते हैं। उनका मानना है कि किसान इसको संभाल कर नहीं रखते।
डॉक्टर भदौरिया कहते हैं कि सॉर्टेड सेक्स सीमन तकनीक जिन पशुओं पर इस्तेमाल होती है उसका सारा डेटा भारत पशुधन ऐप पर डाला जाता है। पशुपालक के नाम से यह जाना जा सकता है कि किस पशु को कौनसी नस्ल का सीमन दिया गया है।
सॉर्टेड सेक्स सीमन के पक्षकार यह कहते हैं कि इसका लाभ किसानों को लंबी अवधी के बाद मिलेगा। तीन पीढ़ियों बाद उन्नत नस्ल की गाय तैयार हो जाएगी, जिसका दूध उत्पादन अधिक होगा।
लेकिन यहां सवाल उठता है कि नस्ल में सुधार तो कंवेंशनल आर्टिफिशिल इंसेमिनेशन तकनीक से भी किया जा सकता है। फिर बछिया पैदा करने वाले सॉर्टेड सेक्स सीमन का उपयोग करने की क्या ज़रुरत है?
इसपर डॉक्टर देशपांडे कहती हैं
“नॉर्मल सीमन से अगर एक वर्ष केड़ा यानी मेल काफ फिर अगले वर्ष बछिया और फिर अगले वर्ष केड़ा पैदा हुआ तो किसान को लंबे इंतेज़ार के बाद उन्नत नस्ल की गाय मिलेगी वहीं सॉर्टेड सेक्स सीमन के उपयोग से तीन पीढ़ी में बछिया का जन्म सुनिश्चित कर कम समय में उन्नत नस्ल तैयार हो सकती है।”
कंसेप्शन रेट कम होने से पशु चिकित्सकों की बढ़ी मुसीबत
सॉर्टेड सेक्स सीमन तकनीक की एक समस्या यह है कि इसका कंसेप्शन रेट 35 फीसदी ही है। यानी सीमन डालने के बाद गाय के गर्भवती होने की संभावना बहुत कम होती है। ऐसे में पशु चिकित्सकों को कई बार प्रयास करना पड़ता है, जबकि कंवेंशनल आर्टिफिशिल इंसेमिनेशन से आसानी से गाय गर्भवती हो जाती है।
सीहोर शहर में मैत्री-गौसेवक के रुप में पशु चिकित्सा प्रैक्टिशनर लोकेंद्र मेवाड़ा कहते हैं
“सॉर्टेड सेक्स सीमन से गाय मुश्किल से गर्भवती होती है, ऐसे में किसान निराश हो जाते हैं और वो हमें ज़िम्मेदार मानते हैं। ऐसे में हमारी रेपुटेशन खराब होती है।”
लोकेंद्र आगे बताते हैं
“बार-बार प्रयास करने पर भी गर्भाधान न होने से गाय की सेहत भी खराब हो जाती है, फिर उसका इलाज करना पड़ता है और किसानों का खर्चा बढ़ जाता है।”
दरअसल सॉर्टेड सेक्सड सीमन में कम गर्भधारण दर सीमन से एक्स और वाय क्रोमोज़ोम को अलग करने वाली प्रक्रिया के दौरान शुक्राणुओं को होने वाले डैमेज की वजह से होती है। इस सॉर्टिंग प्रक्रिया की वजह से शुक्राणुओं की जीवनक्षमता और गतिशीलता कम हो जाती है। इस वजह से कंवेंशनल सीमन की तुलना में सॉर्टेड सीमन में कम मात्रा में वायबल स्पर्म मौजूद होते हैं।
Sorted Sexed Semen Technology Diagram
डॉक्टर देशपांडे कहती हैं
“हमें इस तकनीक का उपयोग केवल उन्हीं गायों में करना चाहिए जो फिज़ीकली और गायनेकोलॉजिकली स्वस्थ हों। गाय स्वस्थ होगी तभी कंसेप्शन अच्छा होगा और पैदा होने वाली बछिया भी स्वस्थ होगी।”
डॉक्टर देशपांडे यह मानती हैं कि कई पशु चिकित्सक जो इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं वो दिशानिर्देषों का सही से पालन नहीं कर रहे हैं।
हमने भी अपने ग्राउंड असेसमेंट में यह पाया है कि चिकित्सक या ट्रेनी जो इस काम को अंजाम दे रहे हैं वो हिट एंड ट्रायल वाले मोड पर काम कर रहे हैं। कई किसानों ने बताया कि कई बार उनकी गायों पर एक साथ दो-दो स्ट्रॉ यानी स्पर्म इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया।
डॉक्टर भदौरिया यह बात स्वीकारते हैं कि सीहोर जिला काफी बड़ा क्षेत्र है और उनके पास संसाधनों का घोर अभाव है। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि “हम मार्च 2025 तक एक लाख गायों पर इस तकनीक का सफल प्रयोग करेंगे।”
नैचुरल ऑर्डर से छेड़छाड़
इंसानों की ही तरह गाय को पैदा होने वाला बच्चा नर होगा या मादा यह इस बात पर निर्भर करता है कि शुक्राणु में मौजूद एक्स और वाय क्रोमोज़ोम में से कौन रेस जीतता है। गाय के एग्स में सिर्फ एक्स क्रोमोज़ोम होता है। बुल के शुक्राणु में एक्स और वाय दोनों क्रोमोज़ोम होते हैं। एक्स-एक्स मिलने पर मादा का जन्म होता है और एक्स-वाय के मिलने से नर का। सॉर्टेड सीमन में पहले से ही वाय क्रोमोसोम हटा दिया जाता है, और यह तय हो जाता है कि बछिया यानी फीमेल काफ ही पैदा होगी। यहां से प्राकृतिक प्रक्रिया में इंसानी हस्तक्षेप शुरु हो जाता है और नैचुरल ऑर्डर गड़बड़ाने लगता है, नर और मादा की बराबर संख्या का।
भारत में गाय धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा है, नस्ल के मामले में भी देसी गाय का दर्जा सबसे ऊपर है। लेकिन देसी गाय कम दूध देती है, ऐसे में इस तकनीक का उद्देश्य उन्नत नस्ल की बछिया पैदा करना भी है जिससे दूध बढ़े और किसान की आय में बढ़ोतरी हो।
सॉर्टेड सेक्स सीमन तकनीक का इस्तेमाल होना यह बताता है कि भारत में गायों को देखने का नज़रिया भले ही आस्थापूर्ण हो उसका इस्तेमाल अब कमर्शियल तरीके से ही हो रहा है। उद्देश्य है ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना। सॉर्टेड सेक्स सीमन तकनीक का विस्तार तेज़ी से मेल काफ की संख्या को कम करेगा और किसानों को अपनी गाय के गर्भाधान के लिए बाज़ार से खरीदे गए सीमन पर ही निर्भर रहना होगा। इससे भारत में आर्टिफिशियल सीमन का बाज़ार बढ़ेगा।
आज की ताऱीख में भारत में गौवंश आर्टिफिशियल इंसेमिनेश मार्केट 456 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है जिसमें वर्ष 2030 तक 8.94 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है।
Data Source: Grand View Research
शालीग्राम पाटीदार कहते हैं
“हम केवल शान के लिए गाय पाल रहे हैं, दूध के काम में कोई मुनाफा नहीं है। हमारे पास पहले 21 गाय थी अब केवल 9 गाय बची हैं। क्योंकि चारे का दाम बढ़ रहा है और दूध का दाम आज भी 30-35 लीटर पर ही टिका हुआ है।”
इस तकनीक को मिशन मोड में इस्तेमाल कर रहे प्रशासन को वैज्ञानिक चेतावनी “केवल स्वस्थ गाय में प्रयोग हो” का विशेष ध्यान रखने की ज़रुरत है। और इस सवाल का जवाब भी ढूंढने की ज़रुरत है कि इस तकनीक के दूरगामी दुष्परिणामों से वे कैसे निपटेंगे?
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