महाराष्ट्र के येओला में छगन भुजबल के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं। महायुति के 11 प्रमुख नेताओं को फडणवीस की नई सरकार में जगह नहीं मिली है, जिससे उनके समर्थकों में काफी बेचैनी है। उन्हीं नेताओं के समर्थक खुलेआम बयान दे रहे हैं। छगन भुजबल ने खुले तौर पर कहा है कि वह अब विधानसभा सत्र में भाग नहीं लेंगे और नासिक लौट आएंगे। उन्होंने कहा कि मुझे निराशा हुई है। मुझे राज्यसभा सीट की पेशकश की गई लेकिन अब इसे स्वीकार करना येओला के मतदाताओं के लिए “उचित नहीं” होगा।
महायुति में शामिल एनसीपी अजित पवार गुट से सबसे ज्यादा लोग मंत्री नहीं बनाये गए हैं। इसके पांच प्रमुख नेताओं छगन भुजबल, धर्मराव बाबा अत्राम, संजय बनसोडे, दिलीप वलसे पाटिल और अनिल पाटिल कैबिनेट से बाहर हैं। भाजपा और एकनाथ शिंदे ने इनके हिस्से के तीन-तीन विधायकों को मंत्री बना दिया है। यानी मंत्रिमंडल में इन्हीं दो पार्टियों का बोलबाला है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा और शिंदे सेना के भी बड़े नेता बाहर नहीं हैं। भाजपा ने रवींद्र चव्हाण, सुधीर मुनगंटीवार और विजयकुमार गावित को और शिंदे सेना ने तानाजी सावंत, अब्दुल सत्तार और दीपक केसरकर को कैबिनेट में जगह नहीं दी है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा से असंतोष जताने के बयान नहीं आ रहे हैं। मंत्री नहीं बनाये गए दूसरे बड़े नेता, सुधीर मुनगंटीवार ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस दावे का खंडन किया है कि उन्हें “लंबी चर्चा” के बाद हटाया गया। फडवीस ने कहा था, “हमने कैबिनेट विस्तार पर सुधीर मुनगंटीवार के साथ लंबी चर्चा की। अगर उन्हें मंत्री पद नहीं मिलता है, तो संभावना है कि पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देगी।”
मुनगंटीवार ने फडणवीस के दावे का खंडन करते हुए कहा कि मंत्री पद के बारे में मुख्यमंत्री ने उनसे लंबी चर्चा नहीं की। उन्होंने केवल विस्तार के दिन ही बात की। उन्होंने कहा, फडणवीस और राज्य भाजपा प्रमुख चन्द्रशेखर बावनकुले ने कहा था कि उनका नाम कैबिनेट विस्तार से एक दिन पहले मंत्रियों की सूची में था, लेकिन नतीजा कुछ और निकला।
एकनाथ शिंदे की शिवसेना में भी भारी विरोध हो रहा है। उसके एक विधायक नरेंद्र भोंडेकर पहले ही पार्टी पद छोड़ चुके हैं। पुरंदर से विधायक विजय शिवतारे ने कहा कि वह ‘मंत्री पद से नहीं, बल्कि अपने साथ हुए बर्ताव से दुखी हैं।’ उन्होंने शामिल किए गए मंत्रियों के लिए ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले का जिक्र करते हुए संवाददाताओं से कहा, ”तीनों नेताओं ने ठीक से संवाद नहीं किया। अगर मुझे 2.5 साल बाद भी मंत्री पद दिया जाता है तो भी मैं मंत्री पद नहीं लूंगा।”
शिवतारे ने कहा, “कार्यकर्ता गुलाम नहीं हैं। मैं जरूरतमंद नहीं हूं, बस बर्ताव अच्छा नहीं था। महाराष्ट्र बिहार की राह पर है क्योंकि हम क्षेत्रीय संतुलन नहीं बल्कि जाति संतुलन देख रहे हैं।”
मगाठाणे के विधायक प्रकाश सुर्वे ने कहा कि विद्रोह के बाद शिंदे के साथ जुड़ने वाले वह पहले विधायक थे।
उन्होंने कहा, “मैं एक साधारण आदमी हूं, संघर्ष के बाद सब कुछ हासिल किया और आगे भी करता रहूंगा। जिन लोगों ने (कैबिनेट में जगह) पद मांगें थे, वे बड़े नाम वाले हैं, मैं नहीं। शिंदे के साथ जाने के बाद मुझे अपना परिवार बदलना पड़ा।” .
विभागों के बंटवारे को लेकर भी मतभेद सामने आने ही वाले हैं। पूर्व सीएम हो चुके एकनाथ शिंदे ने गृह विभाग की खुलकर मांग की है।हालांकि प्रदेश अध्यक्ष बावनकुले का दावा है कि कैबिनेट विभागों के आवंटन पर कोई विवाद नहीं है। बावनकुले ने कहा- “मंत्रियों को विभाग आवंटित करने में कोई देरी नहीं है। कोई विवाद नहीं है। मैं भी बातचीत का हिस्सा था और मामला खत्म हो गया है। कोई विवाद नहीं है और जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी।”
नई सरकार पहले ही नए मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा का वादा कर चुकी है। यह घोषणा करने वाले फडणवीस ने कहा कि एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल वाले जिन लोगों को इस बार शामिल नहीं किया गया, उन्हें उनके प्रदर्शन के कारण हटा दिया गया है। उधर, सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए केसरकर ने कहा, ”कुछ लोग हैं जिन्हें मौका नहीं मिला है, जो परेशान हैं। मैं उनसे कहना चाहूंगा कि वे दुखी न हों। पार्टी के लिए काम करें और किसी भी सरकार में विधायकों की भी जिम्मेदारी होती है, उन्हें उस जिम्मेदारी को बखूबी निभाना चाहिए। उन्हें थोड़ा धैर्य रखना चाहिए। ढाई साल बाद उनमें से कई लोगों को मौका मिलेगा।