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    भारत

    महाराष्ट्रः लाडकी बहिन, स्कूलों के लिए फंड नहीं, मंदिरों के लिए 3000 करोड़ मंजूर

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 29, 2025No Comments4 Mins Read
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    महाराष्ट्र सरकार की वित्तीय स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, जहां स्वास्थ्य, शिक्षा और लोकप्रिय ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना’ जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बजट की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद, सरकार ने हाल ही में मंदिरों और स्मारकों के संरक्षण व नवीकरण के लिए लगभग 3,000 करोड़ रुपये की योजनाओं को मंजूरी दी है। इस फैसले ने राज्य की वित्तीय प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए हैं।

    वित्तीय संकट और बजट में कटौती

    महाराष्ट्र सरकार का वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है, जो पहले के 1.10 लाख करोड़ रुपये के अनुमान से दोगुना है। इस स्थिति में सरकार ने विभिन्न विभागों में 5 से 30 प्रतिशत तक की कटौती की योजना बनाई है। वित्त विभाग के अधिकारियों ने इसे हर साल फरवरी में होने वाला नियमित अभ्यास बताया, लेकिन स्वीकार किया कि औसतन 20 प्रतिशत की कटौती से आय और व्यय के बीच का अंतर कम हो सकता है।

    इसके बावजूद, सरकार ने मंदिरों और स्मारकों के लिए 2,954 करोड़ रुपये की योजनाओं को मंजूरी दी है। इसमें अहिल्या देवी होल्कर के जन्मस्थान चोंडी में उनके स्मारक के लिए 681.3 करोड़ रुपये और सात प्रमुख तीर्थ स्थलों के लिए 5,503 करोड़ रुपये शामिल हैं। इनमें अष्टविनायक मंदिरों के लिए 147.8 करोड़ रुपये, तुलजाभवानी मंदिर के लिए 1,865 करोड़ रुपये, ज्योतिबा मंदिर के लिए 259.6 करोड़ रुपये, त्र्यंबकेश्वर मंदिर के लिए 275 करोड़ रुपये, महालक्ष्मी मंदिर के लिए 1,445 करोड़ रुपये और महुरगढ़ विकास योजना के लिए 829 करोड़ रुपये शामिल हैं। इन परियोजनाओं को अगले तीन वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य है, जिसमें मंदिरों के संरक्षण के साथ-साथ श्रद्धालुओं के लिए नागरिक सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया है।

    लाडकी बहिन योजना पर दबाव

    महाराष्ट्र की ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना’, जिसे मध्य प्रदेश की लाडकी बहिन योजना से प्रेरित होकर शुरू किया गया, 21 से 65 वर्ष की आयु की महिलाओं को 2.5 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए 1,500 रुपये मासिक सहायता प्रदान करती है। इस योजना का वार्षिक खर्च 46,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। हाल ही में, महायुति गठबंधन ने इस राशि को बढ़ाकर 2,100 रुपये करने की घोषणा की थी, जिसे उनकी चुनावी जीत का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

    हालांकि, वित्तीय तंगी के कारण इस योजना के लाभार्थियों की संख्या में कटौती की जा रही है। मार्च 2025 तक, लगभग 8 लाख महिलाओं को इस योजना से हटा दिया गया है, और 7 लाख अन्य को हटाने की प्रक्रिया चल रही है। राज्य ने जुलाई से दिसंबर 2024 तक 2.5 करोड़ महिलाओं को 21,000 करोड़ रुपये वितरित किए, लेकिन अब अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ डेटा क्रॉस-चेक करके लाभार्थियों की संख्या कम की जा रही है। कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे ने इस योजना को राज्य के खजाने पर बोझ बताते हुए कहा कि इससे किसानों के लिए ऋण माफी योजना जैसे अन्य कार्यक्रम प्रभावित हो रहे हैं।

    स्वास्थ्य और शिक्षा पर प्रभाव

    महाराष्ट्र का कर्ज 2024-25 के लिए 7.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है, और राजस्व घाटा 45,891 करोड़ रुपये तक होने की आशंका है। इस स्थिति में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए फंड की कमी हो रही है। उदाहरण के लिए, ‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना’ जैसे अन्य कल्याणकारी कार्यक्रम, जो वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिए प्रायोजित करती थी, को भी निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा, कोविड-19 के दौरान शुरू की गई ‘शिव भोजन थाली’ और ‘आनंदाचा शिधा’ योजनाओं पर भी 1,300 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद इन्हें बंद करने की संभावना है।

    विवाद और आलोचना

    महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले ने व्यापक विवाद को जन्म दिया है। विपक्षी दलों, विशेष रूप से महाराष्ट्र कांग्रेस, ने आरोप लगाया है कि सरकार ने लाडकी बहिन योजना के प्रचार पर 200 करोड़ रुपये खर्च किए, जो जनता के पैसे की बर्बादी है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि वह अवैध भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा नहीं देती, तो लाडकी बहिन जैसी योजनाओं को रोकने का आदेश दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास मुफ्त योजनाओं के लिए पैसा है, लेकिन भूमि हानि के मुआवजे के लिए नहीं।

    महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति गंभीर होने के बावजूद, सरकार ने मंदिरों और स्मारकों के लिए 3,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याणकारी योजनाओं के लिए फंड की कमी का सामना करना पड़ रहा है। लाडकी बहन योजना, जिसे महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए शुरू किया गया, अब वित्तीय दबाव के कारण कटौती का सामना कर रही है। यह स्थिति सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है और जनता के बीच असंतोष को बढ़ा रही है।

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