लोकपाल ने बुधवार को सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच को हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर आधारित भ्रष्टाचार और हितों के टकराव के आरोपों से क्लीन चिट दे दी है। लोकपाल ने अपनी जांच में पाया कि इन आरोपों का कोई ठोस सबूत नहीं है और आरोपों को अनुमानों और कल्पनाओं पर आधारित बताते हुए सभी शिकायतों को खारिज कर दिया।
अमेरिका की एजेंसी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर अडानी समूह से जुड़े मामलों में अनुचित लाभ और हितों के टकराव के आरोप लगाए थे। इन आरोपों में दावा किया गया था कि सेबी चेयरपर्सन के रूप में बुच ने कुछ कंपनियों के पक्ष में निर्णय लिए, जिनसे उन्हें कथित तौर पर परामर्श शुल्क के रूप में लाभ हुआ। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा सहित कई लोगों ने इस मामले में लोकपाल के समक्ष शिकायत दर्ज की थी।
लोकपाल ने पांच प्रमुख आरोपों की जांच की, जिनमें परामर्श शुल्क के ज़रिए कथित साठगांठ, अडानी समूह के साथ कथित संबंध, और सेबी के नियमों में कथित हेरफेर शामिल थे। लोकपाल की जाँच में पाया गया कि ये आरोप सबूतों के अभाव में निराधार हैं। इसने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित करार दिया।
जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली लोकपाल की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि माधबी पुरी बुच के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराध साबित कर सके।
इस फ़ैसले पर राजनीतिक हलकों में मिलीजुली प्रतिक्रियाएँ आई हैं। कुछ सोशल मीडिया पोस्टों में इसे सच की जीत करार दिया गया। जहाँ बीजेपी समर्थकों ने कांग्रेस और विपक्षी नेताओं पर बेबुनियाद आरोप लगाने का तंज कसा, वहीं विरोधियों ने इस फ़ैसले पर सवाल उठाए और इसे ‘मोदी सरकार की क्लीन चिट नीति’ का हिस्सा बताया। एक यूजर ने लिखा, ‘मोदीजी, अमित शाह, अडानी और अब माधबी बुच को क्लीन चिट – यह सरकार क्लीन चिट सरकार है।’
लोकपाल का यह फैसला हिंडनबर्ग मामले में एक अहम मोड़ है। इससे सेबी की कार्यप्रणाली और अडानी समूह से जुड़े विवादों पर चल रही चर्चा को नया आयाम मिल सकता है। हालाँकि, विपक्षी दलों और कुछ सोशल मीडिया यूजरों के बीच इस फ़ैसले पर असंतोष बना रह सकता है, जो इसे राजनीतिक हस्तक्षेप का परिणाम मानते हैं।
लोकपाल के इस फ़ैसले ने न केवल माधबी पुरी बुच को राहत दी है, बल्कि यह भी दिखाता है कि बिना ठोस सबूतों के लगाए गए आरोप जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतर सकते। इस मामले पर अब सभी की नजरें सेबी और सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।