केंद्र सरकार ने विपक्ष की विशेष सत्र की मांग को दरकिनार करते हुए बुधवार को संसद के मानसून सत्र की घोषणा कर दी है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि मानसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त तक चलेगा।
यह मानसून सत्र पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार आयोजित किया जा रहा है। 22 अप्रैल को हुए उस हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की ओर से विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी।
सरकार की घोषणा के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और टीएमसी के डेरेक ओब्रायन ने सरकार पर हमला बोला। जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा- आमतौर पर संसद सत्र की तारीखों की घोषणा कुछ दिन पहले की जाती है। लेकिन इस बार सत्र शुरू होने से 47 दिन पहले ही तारीखों का ऐलान कर दिया गया -ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यह निर्णय मोदी सरकार ने केवल इसलिए लिया है ताकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और INDIA गठबंधन द्वारा बार-बार उठाई जा रही तत्काल विशेष बैठक की मांग से बचा जा सके।
6 हफ्ते बाद तो जवाब देना ही होगा
टीएमसी का भी हमला
अब सबकी निगाहें 21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र पर होंगी — क्या सरकार इन मसलों पर चर्चा को तैयार होगी, या विपक्ष को फिर से हंगामे का सहारा लेना पड़ेगा?
उन्होंने इस मांग के समर्थन में एक पत्र भी साझा किया, जिस पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी समेत कई नेताओं के हस्ताक्षर थे।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर और राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर खुली बहस से बच रही है। उनका कहना है कि पहलगाम जैसे बड़े आतंकी हमले और उसके बाद की सैन्य कार्रवाई को लेकर संसद में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है।
खड़गे ने मंगलवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा था, “हम, INDIA गठबंधन के नेता, संसद का विशेष सत्र बुलाने की सामूहिक और तात्कालिक मांग दोहराते हैं, ताकि पहलगाम हमले के बाद की घटनाओं पर चर्चा की जा सके।”
बहरहाल, सरकार ने विशेष सत्र बुलाने से इनकार करते हुए कहा कि सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर मानसून सत्र में चर्चा संभव है। रिजिजू ने कहा, “हमारे लिए हर सत्र विशेष होता है। संसदीय नियमों के तहत सभी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जा सकती है।”