देश में अदालतों के कुछ फैसले फिर सुर्खियों में हैं। ऐसे मामले बढ़ रहे हैं जब बीजेपी नेताओं को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर सिर्फ माफी मांगने का आदेश दिया गया। वहीं, मोदी सरकार की मामूली आलोचना करने वालों को जेल का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं गौरतलब हैं।
हाल ही में कर्नाटक में एक बीजेपी विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) ने एक मुस्लिम आईएएस अधिकारी को “पाकिस्तानी” कहने का मामला सामने आया। इस टिप्पणी ने व्यापक विवाद को जन्म दिया, जिसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने बीजेपी एमएलसी को अब उस आईएएस अधिकारी से माफी मांगने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसे आपत्तिजनक और सामुदायिक सद्भाव को ठेस पहुंचाने वाला माना। यह घटना 27 मई 2025 को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से चर्चा में रही, जहां कई लोगों ने इसे बीजेपी नेताओं की ओर से बार-बार होने वाली सांप्रदायिक टिप्पणियों का उदाहरण बताया।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 29 मई को बीजेपी एमएलसी एन. रविकुमार को मौखिक रूप से कलबुर्गी की डिप्टी कमिश्नर और जिला मजिस्ट्रेट फौजिया तरन्नुम से माफ़ी मांगने को कहा। रविकुमार ने डीसी के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। रविकुमार ने 24 मई को कलबुर्गी जिला प्रशासन की आलोचना करते हुए और उन पर कांग्रेस के प्रभाव में काम करने का आरोप लगाते हुए कहा था, “मुझे नहीं पता कि डीसी पाकिस्तान से आई हैं या यहां की आईएएस अधिकारी हैं।”
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूरज गोविंदराज ने टिप्पणी की, “ये बयान देने लायक नहीं हैं। आपने देखा है कि मध्य प्रदेश और सुप्रीम कोर्ट में एक मौजूदा मंत्री के साथ क्या हुआ। आप भी इससे अलग नहीं हैं। आप इस तरह के बयान नहीं दे सकते।” हालांकि हाईकोर्ट ने सवाल किया कि अगर पीड़ित पक्ष ने रविकुमार की माफी स्वीकार नहीं की है तो फिर उनकी माफी का क्या होगा। इसके बाद कोर्ट ने कहा, “बयान देने के बाद उस व्यक्ति को माफी स्वीकार करनी होगी। आप संबंधित महिला से माफी मांगें और उन्हें स्वीकार करने दें, उसके बाद हम इस पर विचार करेंगे।”
जस्टिस गोविंदराज ने याचिकाकर्ता के वकील को सलाह दी कि वह अपने मुवक्किल को इस मामले को और तूल देने के बजाय इसे बंद करने के लिए सलाह दें। जज ने कहा, “पहली बात तो ऐसा नहीं होना चाहिए था। अब जब ऐसा हो गया है, तो इसे कम करें।”
मध्य प्रदेश का विवाद
मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह ने सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई टिप्पणी से भी भारी विवाद हुआ। शाह ने एक सार्वजनिक सभा में कर्नल सोफिया को “आतंकवादियों की बहन” कहकर संबोधित किया था, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया को जानकारी देने वाली प्रमुख सैन्य अधिकारी थीं। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शाह के खिलाफ 14 मई 2025 को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसे “खतरनाक और अपमानजनक” करार देते हुए कहा कि यह न केवल कर्नल सोफिया, बल्कि भारतीय सेना के सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है।
इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने शाह की माफी को “असंतोषजनक” और “मगरमच्छ के आंसू” करार दिया। लेकिन 19 मई 2025 को एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया। जिसे कोर्ट ने एफआईआर की जांच करने को कहा। फिर भी, शाह को अब तक कोई सजा नहीं हुई है और वह अपनी माफी को “भाषाई गलती” बताकर बचने की कोशिश कर रहे हैं। वो अब तक कई बार माफी की पेशकश कर चुके हैं। अब यह मामला लगभग ठप हो गया है।
महाराष्ट्र का मामला
इसी तरह, पुणे की एक इंजीनियरिंग छात्रा को भी मोदी सरकार की आलोचना करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया। इन घटनाओं ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हैं। छात्रा ने अपनी याचिका में कॉलेज से अपने निष्कासन को “मनमाना और अवैध” बताते हुए चुनौती दी थी। छात्रा को पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में बंद रखा गया था। वह पुणे के सिंहगढ़ अकादमी ऑफ इंजीनियरिंग की छात्रा है, जो सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध एक निजी कॉलेज है। जस्टिस गौरी गोडसे की अगुआई वाली बेंच ने महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह स्टूडेंट्स को सिर्फ कुछ लिखने के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती। जस्टिस गौरी ने कहा- ये हो क्या रहा है।
जस्टिस गोडसे ने कहा, “यह क्या है? आप एक छात्रा का जीवन बर्बाद कर रहे हैं? यह कैसा व्यवहार है? कोई कुछ कहता है तो आप छात्रा का जीवन बर्बाद कर देंगे? आप उसे कैसे निष्कासित कर सकते हैं? क्या आपने उससे स्पष्टीकरण मांगा?” राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए जज ने कहा, “एक शैक्षणिक संस्थान का मकसद क्या होता है? क्या सिर्फ शैक्षणिक रूप से शिक्षित करना है? आपको स्टूडेंट्स को कुछ बनाना है या अपराधी बनाना है? हम समझते हैं कि आप कुछ कार्रवाई करना चाहते हैं, लेकिन आप उसे परीक्षा देने से नहीं रोक सकते। उसे बाकी तीन पेपर देने दें।”
ये मामले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन पर बहस को तेज कर रहे हैं। इन घटनाओं ने न्यायालयों और सरकार के रवैये पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। एक ओर तो भड़काऊ बयान देने वाले बीजेपी नेताओं को माफी के साथ छोड़ दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार की आलोचना करने वालों को जेल भेजा जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक है। अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर शिक्षाविदों ने इसे “बौद्धिक स्वतंत्रता पर हमला” बताया था।
कर्नाटक और मध्य प्रदेश की घटनाओं ने एक बार फिर बीजेपी सरकार और न्याय व्यवस्था के रवैये पर सवाल उठाए हैं। जहां कर्नाटक में बीजेपी एमएलसी को माफी मांगने का आदेश दिया गया, वहीं मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह के खिलाफ कोई ठोस सजा अब तक नहीं हुई। दूसरी ओर, सरकार की आलोचना करने वाले प्रोफेसर और छात्र जेल में हैं। यह दोहरा रवैया देश में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकता है।