पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हालिया सैन्य कार्रवाई, ‘ऑपरेशन सिंदूर’, में भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी देश का गौरव बनकर उभरीं। उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में जिस तरह से सेक्युलरिज्म को भारतीय सेना की प्रतिबद्धता से जोड़ा, उसने पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जोरदार जवाब दिया। लेकिन मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की एक अपमानजनक टिप्पणी ने इस गौरव को धूमिल करने की कोशिश की। उन्होंने कर्नल सोफिया को “पाकिस्तानी आतंकियों की बहन” बताया। ऐसे में यह सवाल फिर पैदा हो गया है कि आखिर कब तक भारतीय मुस्लिमों की देशभक्ति पर संदेह किया जाएगा? और क्या ऐसी सोच पाकिस्तान के आधार सिद्धांत द्विराष्ट्रवाद को मजबूत नहीं करता?
विजय शाह की शर्मनाक टिप्पणी
13 मई 2025 को, इंदौर के पास महू में एक सार्वजनिक सभा में मध्य प्रदेश के परिवहन और स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “जिन कटे-फटे लोगों ने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े, मोदी जी ने उनकी बहन को भेजकर उनकी ऐसी-तैसी करवा दी।” यह बयान स्पष्ट रूप से कर्नल सोफिया को “आतंकियों की बहन” कहकर निशाना बनाता है, जो भारतीय सेना की एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय सेना का प्रतीक चेहरा बनकर उभरीं। विजय शाह नौ बार विधायक और लंबे समय से मंत्री रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी न केवल कर्नल सोफिया और सेना का अपमान है, बल्कि भारत की सेक्युलर परंपराओं पर भी हमला है। सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और समर्थकों में मुस्लिमों के प्रति इतना गहरा संदेह क्यों है? क्या यह सोच समाज को बाँटने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा नहीं देती?
कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी
कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना के सिग्नल कोर की एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। गुजरात के बड़ोदरा की रहने वाली सोफिया 1999 में सेना में शामिल हुईं। 2018 में उन्होंने पुणे में आसियान देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व किया, जहां उनकी रणनीति और नेतृत्व ने सभी को प्रभावित किया। उनका परिवार तीन पीढ़ियों से सेना में सेवा दे रहा है, और उनके पति भी मेजर हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद 10 मई 2025 को विदेश सचिव विक्रम मिसरी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफिया ने पाकिस्तान के उन आरोपों का जवाब दिया कि भारत ने मस्जिदों को निशाना बनाया। उन्होंने कहा, “मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूँ कि भारत एक सेक्युलर देश है और हमारी सेना हमारे संवैधानिक मूल्यों का पालन करती है। हमने किसी भी धार्मिक स्थल को निशाना नहीं बनाया।” उन्होंने आगे कहा, “भारत एक सेक्युलर देश है और उसकी सेना भारत के संवैधानिक मूल्यों का एक सुंदर प्रतिबिंब है।”
मुस्लिमों की देशभक्ति पर सवाल कब तक?
कर्नल सोफिया पर टिप्पणी इस सवाल को फिर से उठाती है कि भारतीय मुस्लिमों को अपनी देशभक्ति बार-बार साबित क्यों करनी पड़ती है। जबकि देश के लिए उनकी क़ुर्बानियों का इतिहास सबके सामने है। क्या यह बात भुलाई जा सकती है कि 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में झांगर को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराने वाले ब्रिगेडियर उस्मान ने पाकिस्तानी सेना में जाने से इनकार किया था। 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तान से लड़ते हुए वे शहीद हुए और उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र मिला। इसी तरह हवलदार अब्दुल हमीद ने 1965 के युद्ध में खेमकरण सेक्टर में असल उत्तर की लड़ाई में सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया और ख़ुद शहीद हो गये। उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
हिमांशी नरवाल से नफ़रत
पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) में अपने पति, नौसेना लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, को खोने वाली हिमांशी नरवाल की तस्वीर राष्ट्रीय शोक का प्रतीक बनी। लेकिन जब उन्होंने 1 मई 2025 को करनाल में अपने पति की जयंती पर शांति की अपील की, तो उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, “मैं देख रही हूँ कि मुस्लिमों और कश्मीरियों के खिलाफ नफरत बढ़ रही है। हम यह नहीं चाहते। हम केवल शांति चाहते हैं।”
इस अपील को कुछ लोगों ने “जिहादियों का समर्थन” क़रार दिया और उनकी निजी ज़िंदगी तक पर सवाल उठाए। यह घटना दर्शाती है कि भारत में एक तबका ऐसा है, जो मुस्लिमों और कश्मीरियों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देता है, भले ही कश्मीरी मुस्लिमों ने ही उस हमले में पर्यटकों को बचाया और आतंकियों के खिलाफ वे सड़कों पर उतरे।
द्विराष्ट्रवाद के पक्षधर!
पाकिस्तान का निर्माण मोहम्मद अली जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद पर आधारित था, जो मानता है कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं। हाल ही में पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने भी इसे दोहराया। पहलगाम हमले में आतंकियों ने धर्म पूछकर हत्याएँ कीं, ताकि भारत में सांप्रदायिक नफरत फैले। लेकिन जब मस्जिदों और कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए, तो क्या यह आतंकियों के मक़सद को पूरा करना नहीं था? विजय शाह जैसे बयान और हिमांशी की ट्रोलिंग उसी नफरत को बढ़ावा देती है, जो पाकिस्तान चाहता है। यह भारत की साझा विरासत और सेक्युलर मूल्यों को कमजोर करता है।
हिंदुत्व
विजय शाह की टिप्पणी को समझने के लिए हमें हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को देखना होगा। विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में अपनी किताब हिंदुत्व में तर्क दिया कि भारतीय होने के लिए भारत को पुण्यभूमि और पवित्रभूमि मानना जरूरी है। RSS के दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर ने Bunch of Thoughts में गैर-हिंदुओं से हिंदू संस्कृति अपनाने या “दूसरे दर्जे के नागरिक” बनने की बात कही।
यह विचारधारा मुस्लिमों को संदेह की नज़र से देखती है, जिसके चलते सेना की वर्दी पहनने वाली कर्नल सोफिया भी “आतंकी की बहन” कहलाती हैं।
कर्नल सोफिया कुरैशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ़ किया था कि भारतीय सेना संविधान और सेक्युलरिज्म से बंधी है। उनके शब्द और हिमांशी नरवाल की अपील भारत की आत्मा को दर्शाते हैं। ऐसे लोग, जो नफरत फैलाकर वोट बटोरते हैं, न केवल मुस्लिमों के खिलाफ हैं, बल्कि भारतीय संविधान और सेना की सेक्युलर भावना के भी दुश्मन हैं। तिरंगा लहराने से यह हकीकत नहीं बदलती। भारत को अपनी साझा विरासत और एकता पर गर्व करना होगा, ताकि पाकिस्तान का द्विराष्ट्रवाद और नफरत की राजनीति हार जाए।