
Mewat Diwas
Mewat Diwas: भारत की आज़ादी के इतिहास में कई ऐसे किस्से दर्ज हैं, जो आज भी उस दौर की त्रासदी, टूटन और बेबसी के बीच इंसानी हौसले, विश्वास और साहस की सच्ची तस्वीर सामने रखते हैं। विभाजन का समय केवल सरहदों के बंटवारे का नहीं था, बल्कि लोगों के मन, रिश्तों और पहचान की भी कठिन परीक्षा थी। ऐसे ही हालात में मेवात की धरती पर घटित एक घटना ने इतिहास को नई दिशा दी। 19 दिसंबर 1947 को महात्मा गांधी का मेवात आगमन और मेव समुदाय का भारत में ही रहने का फैसला आज मेवात दिवस के रूप में याद किया जाता है। जो राष्ट्रीय एकता, सद्भाव और गांधीवादी मूल्यों का प्रतीक बन चुका है।हर साल 19 दिसंबर को मनाया जाने वाला मेवात दिवस भारत के इतिहास का वह अध्याय है, जहां विभाजन की आग के बीच भरोसे और इंसानियत ने जीत हासिल की। यह दिन महात्मा गांधी और मेवात के मेव समुदाय के बीच बने उस गहरे रिश्ते की याद दिलाता है, जिसने लाखों लोगों को अपनी मातृभूमि भारत में ही रहने का साहस दिया। मेवात दिवस केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता, सद्भाव और गांधीवादी मूल्यों का जीवंत प्रतीक माना जाता है।
महात्मा गांधी और मेवात का ऐतिहासिक संबंध
भारत के विभाजन के बाद देश के कई हिस्सों में डर और असुरक्षा का माहौल था। इसी कठिन समय में 19 दिसंबर 1947 को महात्मा गांधी ने तत्कालीन पंजाब (वर्तमान हरियाणा) के नूह ज़िले के गांव घासेड़ा का दौरा किया। यह दौरा किसी राजनीतिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था, बल्कि यह इंसानी भरोसे को बचाने की एक ऐतिहासिक कोशिश थी। उस समय मेवात के अधिकतर मेव मुसलमान पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। उनका साफ़ कहना था कि वे इसी धरती पर पैदा हुए हैं, यहीं पले-बढ़े हैं और यहीं मरना चाहते हैं।
विभाजन का डर और असमंजस
हालांकि, विभाजन के दौरान फैली साम्प्रदायिक हिंसा ने कुछ लोगों के मन में भय पैदा कर दिया था। उन्हें लगने लगा था कि भारत में रहना उनके लिए सुरक्षित नहीं होगा। यह वह दौर था, जब पूरे उत्तर भारत में लोग असमंजस में थे कि रुकें या जाएं। मेवात भी इस मानसिक द्वंद्व से अछूता नहीं था। ऐसे में गांधी जी का वहां पहुंचना मेव समाज के लिए उम्मीद की किरण बनकर आया।
गांधी जी का ऐतिहासिक आश्वासन
घासेड़ा में आयोजित विशाल जनसभा में महात्मा गांधी ने मेव समुदाय को जो आश्वासन दिया, वही मेवात दिवस की आत्मा में बस गया। उन्होंने कहा कि वे मेवों की सुरक्षा और समान नागरिकता की जिम्मेदारी लेते हैं। गांधी जी ने मेवों को भारत की रीढ़ की हड्डी बताते हुए यह भी कहा कि वे उन लोगों के साथ मेवात में मरना पसंद करेंगे, जो अपनी मातृभूमि छोड़ना नहीं चाहते। गांधी जी के इस वचन ने लोगों के दिल से डर निकाल दिया।
मेव समुदाय का ऐतिहासिक फैसला
महात्मा गांधी के भरोसे पर विश्वास कर लाखों मेव लोगों ने पाकिस्तान जाने का इरादा बदल दिया। उन्होंने अपनी जमीन, अपनी मिट्टी और अपने देश को नहीं छोड़ा। यह फैसला केवल एक समुदाय का नहीं था, बल्कि यह भारत की साझा संस्कृति, आपसी विश्वास और राष्ट्रीय एकता की जीत थी। आज भी यह निर्णय भारतीय इतिहास में एक मिसाल के रूप में देखा जाता है। आज के दौर में मेवात दिवस का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह दिवस इस बात का प्रतीक है कि कठिन परिस्थितियों में भी सही फैसला कैसे पूरे समाज और आने वाली पीढ़ियों को दिशा दे सकता है। मेवात दिवस महात्मा गांधी के सर्वधर्म समभाव, अहिंसा और शांति के विचारों का संदेश देता है।
मेवात दिवस की शुरुआत और परंपरा
मेवात के हाजी इब्राहिम ख़ान के अनुसार, मेवात विकास सभा ने इस ऐतिहासिक स्मृति को जीवित रखने के लिए कई बार पहल करी थीं। वर्ष 2003 में घासेड़ा से दिल्ली के राजघाट तक एक यात्रा निकाली गई। इसके बाद 19 दिसंबर 2005 को पर्यावरण कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह के सहयोग से पहली बार मेवात दिवस मनाया गया। तब से हर साल 19 दिसंबर को मेवात विकास सभा इस दिन को मेवात दिवस के रूप में मनाती आ रही है।
घासेड़ा की ऐतिहासिक जनसभा
मेवात विकास सभा के अध्यक्ष दीन मोहम्मद मामलिका के अनुसार, 19 दिसंबर 1947 को मेव समुदाय के नेताओं के निमंत्रण पर महात्मा गांधी के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव और स्वतंत्रता सेनानी रणवीर सिंह हुड्डा भी घासेड़ा आए थे। गांधी जी ने यहां जनसभा को संबोधित कर मेवों से देश न छोड़ने की अपील की थी। यही सभा मेवात के इतिहास का निर्णायक मोड़ साबित हुई। मेवात केवल एक ज़िला नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक अंचल है, जो हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को मत्स्य प्रदेश कहा जाता था। इतिहासकार डॉ. कृपाल चन्द्र यादव के अनुसार, मेवात शब्द की उत्पत्ति मत्स्य प्रदेश से ही हुई है। समय के साथ इस क्षेत्र की सीमाएं बदलती रहीं, लेकिन इसकी सांस्कृतिक पहचान आज भी पूर्ववत बनी हुई है।
ब्रज परिक्रमा और मेवात का सांस्कृतिक महत्व
मेवात का धार्मिक महत्व भी अत्यंत गहरा है। ब्रज की प्रसिद्ध 84 कोस की परिक्रमा का मार्ग हरियाणा के होडल से होकर गुजरता है। इस परिक्रमा में मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव और डीग जैसे श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े पवित्र स्थल आते हैं। श्रद्धालु भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ इस परिक्रमा को पूरा करते हैं। परम्परा की गहराई से जुडी ब्रज परिक्रमा जिससे मेवात की सांस्कृतिक विरासत समय के साथ-साथ और समृद्ध होती रही है।
वर्तमान मेवात ज़िले की स्थापना 4 अप्रैल 2005 को फ़रीदाबाद और गुड़गांव के कुछ हिस्सों को मिलाकर की गई। इसमें नूह, तावड़ू, नगीना, फ़िरोज़पुर झिरका, पुन्हाना और हथीन शामिल हैं। यहां मेवाती बोली बोली जाती है, जो हरियाणवी से थोड़ी अलग है। ज़िले का दर्जा पाने के लिए मेवात के लोगों ने लंबे समय तक संघर्ष किया है।
डिस्क्लेमर: यह लेख ऐतिहासिक संदर्भों, प्रकाशित शोध, पुस्तकों और स्थानीय परंपराओं पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार और घटनाएं सूचना व सामान्य जागरूकता के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई हैं। किसी भी तथ्य की आधिकारिक पुष्टि के लिए संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और प्रामाणिक स्रोतों का अध्ययन आवश्यक है।


