
Mysore Pak Sweet (Image Credit-Social Media)
Mysore Pak Sweet (Image Credit-Social Media)
Mysore Pak Sweet: भारत विविधताओं का देश है और यहां की मिठाइयाँ भी उसी विविधता का प्रतिनिधित्व करती हैं। उत्तर भारत में जहाँ लड्डू, बर्फी, और रसगुल्ला लोकप्रिय हैं, वहीं दक्षिण भारत में एक मिठाई है जो अपनी विशिष्टता और स्वाद के कारण देश भर में प्रसिद्ध हो चुकी है—मैसूर पाक। यह एक ऐसी मिठाई है जो पारंपरिक मिठाइयों में एक उच्च स्थान रखती है, खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु में। इसका नाम ‘मैसूर’ और ‘पाक’ शब्दों के मेल से बना है, जहां मैसूर दक्षिण भारत का एक ऐतिहासिक शहर है और ‘पाक’ का अर्थ होता है पाक कला में पकाने की प्रक्रिया या मिठाई।
‘मैसूर पाक’ से ‘मैसूर श्री’ तक: नाम को लेकर बढ़ता विवाद
हाल ही में एक विवाद ने तूल पकड़ लिया जब मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि जयपुर स्थित एक मिठाई की दुकान ने दक्षिण भारत की प्रसिद्ध मिठाई ‘मैसूर पाक’ का नाम बदलकर ‘मैसूर श्री’ कर दिया है। यह खबर जैसे ही सामने आई, सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा तेज़ी से फैल गई और इस पर विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगीं। कई लोगों ने इस फैसले का समर्थन किया, जबकि कुछ ने इसे हास्यास्पद बताया। कुछ यूज़र्स ने मज़ाक में सुझाव दिया कि इस मिठाई का नाम ‘मैसूर भारत’ रख देना चाहिए।
इसी विवाद के बीच एक और मिठाई ‘मोती पाक’ भी चर्चा में आ गई। दावा किया गया कि इस मिठाई का नाम भी अब बदलकर ‘मोती श्री’ रखा गया है। इन दोनों ही नाम परिवर्तनों का कारण ‘पाक’ शब्द बताया जा रहा है, जिसे अक्सर पाकिस्तान के संक्षिप्त रूप के तौर पर देखा जाता है।

हालांकि, यह स्पष्ट है कि ‘मैसूर पाक’ और ‘मोती पाक’ जैसी मिठाइयों का ‘पाक’ शब्द का संबंध पाक कला (खाना पकाने की कला) से है, न कि किसी राजनीतिक देश से। फिर भी, कुछ लोगों के लिए यह शब्द असहजता का कारण बन रहा है, विशेष रूप से तब जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में तनाव बना रहता है।
यह पहली बार नहीं है जब किसी देश के साथ राजनीतिक या सैन्य तनाव की स्थिति में आम जनता द्वारा संबंधित शब्दों या उत्पादों का विरोध किया गया हो। उदाहरण के तौर पर, साल 2020 में भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग तेज हो गई थी। उस समय भी कई ब्रांड्स को विरोध का सामना करना पड़ा था, और सोशल मीडिया पर बहिष्कार अभियान चलाए गए थे।
इसी परिप्रेक्ष्य में अब मिठाइयों के नामों को लेकर नया विवाद सामने आया है, जिसने ‘मैसूर पाक’ जैसी पारंपरिक भारतीय मिठाई को राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस का विषय बना दिया है।
मैसूर पाक का ऐतिहासिक उद्भव

मैसूर पाक की उत्पत्ति 20वीं सदी की शुरुआत मैसूर राज्य दरबार से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि मैसूर के तत्कालीन महाराजा, कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ, के लिए जब शाही रसोई में एक विशेष मिठाई बनाने की आवश्यकता हुई, तो उनके मुख्य रसोइया, कक्का सुब्बामह, ने एक नई रचना की। उन्होंने बेसन, घी और चीनी के मिश्रण से एक ऐसी मिठाई बनाई जो स्वाद में अद्भुत और बनावट में बेहद कोमल थी। महाराजा को यह मिठाई इतनी पसंद आई कि इसे स्थायी रूप से शाही व्यंजन में शामिल कर लिया गया और इसे नाम दिया गया ‘मैसूर पाक’। कालांतर में यही मिठाई पूरे दक्षिण भारत में प्रसारित हुई और फिर देश भर में प्रसिद्ध हो गई।
क्यों प्रसिद्ध है मैसूर पाक
मैसूर पाक की लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण इसका अनूठा स्वाद है—यह मिठाई घी में पकाई जाती है, जिससे इसका स्वाद बेहद समृद्ध होता है। दूसरा कारण इसकी बनावट है—जब इसे परोसा जाता है तो यह बाहर से थोड़ा कुरकुरा लगता है लेकिन मुंह में जाते ही पिघल जाता है। इसके अलावा, इसकी सुगंध भी विशेष होती है, जो बेसन और शुद्ध देसी घी के कारण घर भर में फैल जाती है। मैसूर पाक की लोकप्रियता का एक और पहलू यह है कि यह त्यौहारों, विशेष अवसरों और विवाह समारोहों में अनिवार्य रूप से परोसी जाती है।
पारंपरिक विधि से बनने की प्रक्रिया

मैसूर पाक बनाने की पारंपरिक विधि अत्यंत सूक्ष्म और संतुलन की मांग करती है। सबसे पहले बेसन को एक बड़े चलनी से छान लिया जाता है ताकि उसमें कोई गांठ न रह जाए। फिर एक भारी तले की कढ़ाही में शुद्ध देसी घी गर्म किया जाता है। उसके बाद एक अन्य पात्र में चीनी की चाशनी बनाई जाती है और उसमें बेसन को धीरे-धीरे मिलाया जाता है। इसके साथ ही उसमें लगातार गर्म घी डाला जाता है ताकि मिश्रण फूले और उसमें परतें बन सकें। इस पूरे समय मिश्रण को तेज आंच पर चलाना पड़ता है और घी डालने की मात्रा का संतुलन बेहद आवश्यक होता है। जब मिश्रण कड़ाही के किनारों से अलग होने लगे और उसमें बुलबुले आने लगें, तब उसे एक चिकनाई लगी थाली में उड़ेल दिया जाता है और ठंडा होने पर काट कर परोसा जाता है।
बनावट और प्रकार
हालाँकि मूल मैसूर पाक की बनावट घनी और थोड़ी सख्त होती है।लेकिन समय के साथ इसके कई प्रकार बन चुके हैं। पारंपरिक ‘हार्ड’ मैसूर पाक की तुलना में अब एक ‘सॉफ्ट’ वर्जन भी उपलब्ध है, जिसे विशेषकर श्री कृष्णा स्वीट्स जैसे ब्रांड्स द्वारा लोकप्रिय बनाया गया है। इस सॉफ्ट संस्करण में घी की मात्रा अधिक होती है। इसे मुंह में रखते ही पिघलने वाला बनाया जाता है। इसके अलावा हल्का पीला रंग, चमकदार सतह और सुगंध भी इसे बाकी मिठाइयों से अलग बनाती है। कुछ जगहों पर इसमें केसर या इलायची का स्वाद भी मिलाया जाता है, जिससे यह और अधिक मनभावन हो जाता है।
मैसूर पाक और दक्षिण भारतीय संस्कृति
मैसूर पाक दक्षिण भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसे पारंपरिक आयोजनों में परोसा जाता है। यह न सिर्फ एक मिठाई है बल्कि परंपरा और गर्व का प्रतीक है। विवाह, नामकरण, दीपावली, दशहरा जैसे त्यौहारों में यह मिठाई एक आवश्यक व्यंजन बन चुकी है। दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवारों में विशेष अवसरों पर घर में ही इसे बनाना एक परंपरा है और यह कौशल मां से बेटी को सौंपा जाता है।
व्यावसायिक लोकप्रियता और ब्रांड्स
जैसे-जैसे मैसूर पाक की लोकप्रियता बढ़ी, वैसे-वैसे यह व्यावसायिक उत्पाद बन गया। आज श्री कृष्णा स्वीट्स (चेन्नई), ग्रैंड स्वीट्स, अड्डीगे, नंदिनी और मैसूर की स्थानीय दुकानें इसे विभिन्न रूपों में बेचती हैं। श्री कृष्णा स्वीट्स की ‘सॉफ्ट मैसूर पाक’ तो इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि उसे भारत के बाहर भी निर्यात किया जाता है। यह मिठाई अब तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल के अलावा दिल्ली, मुंबई और यहां तक कि अमेरिका, यूके और यूएई तक पहुंच चुकी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता

मैसूर पाक ने अब भारत की सीमाओं से बाहर भी अपनी पहचान बनाई है। प्रवासी भारतीय समुदायों में इसे विशेष महत्व प्राप्त है। भारतीय त्योहारों और मेलों में विदेशों में रहने वाले भारतीय इसे विशेष रूप से मंगवाते हैं। ऑनलाइन मिठाई स्टोर और डिलीवरी सेवाओं की मदद से यह मिठाई अब अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, मिडल ईस्ट तक पहुंच चुकी है। दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट और कैटरर्स द्वारा भी इसे व्यापक रूप से परोसा जाता है, जिससे विदेशों में भी इसके स्वाद का लुत्फ लिया जा रहा है।
मैसूर पाक से जुड़ी आधुनिक चुनौतियाँ
हालांकि मैसूर पाक की लोकप्रियता बढ़ी है, पर इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है उसकी शुद्धता और गुणवत्ता बनाए रखना। कई व्यावसायिक दुकानों द्वारा लागत घटाने के लिए शुद्ध घी की जगह वनस्पति घी या मिश्रित घी का प्रयोग किया जाता है, जिससे मिठाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसके अलावा, बढ़ती मांग के कारण मशीन से बनने वाले मैसूर पाक की बनावट और स्वाद पारंपरिक घर में बने संस्करण से मेल नहीं खा पाती।
क्यों आज चर्चा में है मैसूर पाक
हाल ही में मैसूर पाक को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication – GI) टैग दिलाने की कोशिशें फिर से चर्चा में आई हैं। कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ही राज्य इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं और इस पर अधिकार जताते रहे हैं। तमिलनाडु के ब्रांड्स ने सॉफ्ट वर्जन को बढ़ावा दिया है, जबकि कर्नाटक के पारंपरिक रूप को ‘असली मैसूर पाक’ बताया जाता है। इस सांस्कृतिक खींचतान और GI टैग को लेकर हो रही बहस ने इसे फिर से चर्चा का विषय बना दिया है।
स्वास्थ्य और पौष्टिकता से जुड़ी बातें

मैसूर पाक स्वाद में जितना समृद्ध होता है, उतना ही यह कैलोरी में भी भारी होता है। इसमें प्रयुक्त घी, चीनी और बेसन इसे एक उच्च कैलोरी युक्त मिठाई बनाते हैं। हालांकि यह ऊर्जा का अच्छा स्रोत माना जाता है, परंतु मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल और वजन संबंधित परेशानियों से ग्रसित लोगों को इसे सीमित मात्रा में सेवन करने की सलाह दी जाती है। हाल ही में बाजार में लो-शुगर और लो-फैट वर्जन भी आने लगे हैं, जो स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं।
डिजिटल युग और ऑनलाइन डिलीवरी
वर्तमान समय में, ऑनलाइन मार्केटिंग और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से मैसूर पाक की मांग और आपूर्ति में जबरदस्त वृद्धि हुई है। ज़ोमैटो, स्विग्गी, बिगबास्केट जैसे पोर्टल्स के जरिए इसे घर बैठे मंगवाना आसान हो गया है। न केवल स्थानीय रूप से बल्कि विदेशों तक भी ऑनलाइन स्टोर जैसे अमेज़न, इंडियन स्वीट्स डॉट कॉम और स्वयं श्री कृष्णा स्वीट्स की वेबसाइट्स से मैसूर पाक मंगवाया जा सकता है। इससे छोटे व्यापारियों और स्थानीय ब्रांड्स को भी वैश्विक बाजार में पहचान मिली है।
मैसूर पाक एक साधारण सी दिखने वाली मिठाई है। लेकिन इसके पीछे इतिहास, परंपरा, कला और गर्व की एक गहरी भावना जुड़ी हुई है। यह न सिर्फ स्वाद की दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी दक्षिण भारत की एक अमूल्य धरोहर बन चुकी है। चाहे त्योहार हो, विवाह समारोह या सांस्कृतिक उत्सव—मैसूर पाक की उपस्थिति उसकी प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। आधुनिक समय में इसकी गुणवत्ता बनाए रखना, पारंपरिक मूल्यों की रक्षा करना और वैश्विक स्तर पर इसे पहचान दिलाना एक साझा जिम्मेदारी बन चुकी है। यह मिठाई भारत की पारंपरिक मिठाई संस्कृति की एक अमिट छाप है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्वाद और संस्कृति का सेतु बनकर जीवित रहेगी।