भारत ने एक बड़ा कदम उठाते हुए बांग्लादेश के लिए दी जाने वाली ट्रांसशिपमेंट सुविधा को तत्काल प्रभाव से ख़त्म कर दिया है। ट्रांसशिपमेंट सुविधा ख़त्म करने से मतलब है कि भारत ने अपने मार्गों से होकर जाने वाले बांग्लादेश के कार्गो जहाजों का आवागमन बंद कर दिया है। यह फ़ैसला तब आया है जब बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीन के साथ अपनी चार दिवसीय यात्रा के दौरान भारत के नॉर्थईस्ट को ‘लैंडलॉक्ड’ बताते हुए इसे चीन की आर्थिक विस्तार की संभावना के रूप में पेश किया। इस क़दम को भारत-बांग्लादेश संबंधों में बढ़ते तनाव और बदलते समीकरणों के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
मुहम्मद यूनुस ने बीजिंग में एक हाई-लेवल चर्चा के दौरान कहा था, ‘नॉर्थईस्ट यानी भारत के सात राज्य लैंडलॉक्ड हैं। उनके पास समुद्र तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है। बांग्लादेश इस पूरे क्षेत्र के लिए समुद्र का एकमात्र संरक्षक है। यह चीन की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा अवसर हो सकता है।’ इस बयान को भारत ने न केवल अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता पर टिप्पणी के रूप में लिया, बल्कि इसे चीन को नॉर्थईस्ट के क़रीब लाने की कोशिश के रूप में भी देखा।
सिलीगुड़ी में सिर्फ़ 22 किलोमीटर चौड़ा एक संकरा रास्ता वाला यह कॉरिडोर रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। यह इलाक़ा भारत को अपने पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है और अगर बांग्लादेश के ज़रिए चीन यहाँ अपनी आर्थिक या सामरिक पकड़ बनाता है तो यह भारत के लिए सुरक्षा ख़तरा बन सकता है। यूनुस की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था संकट में है और वह चीन से निवेश की उम्मीद कर रहा है। चीन ने पहले ही मोंगला पोर्ट के लिए 400 मिलियन डॉलर और चटगांव में आर्थिक ज़ोन के लिए 350 मिलियन डॉलर का वादा किया है।
2020 से चली आ रही ट्रांसशिपमेंट सुविधा के तहत बांग्लादेश अपने सामान को भारत के रास्ते भूटान, नेपाल और म्यांमार भेज सकता था। यह सुविधा बांग्लादेश के व्यापार के लिए एक किफायती और तेज रास्ता थी। लेकिन 8 अप्रैल को सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ इंडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम्स ने इसे रद्द कर दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘इस सुविधा से हमारे पोर्ट्स और हवाई अड्डों पर भीड़ बढ़ रही थी, जिससे हमारे अपने निर्यात में देरी हो रही थी।’ लेकिन जानकार मानते हैं कि असली वजह यूनुस का चीन के प्रति झुकाव और नॉर्थईस्ट पर उनकी टिप्पणी है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने यूनुस के बयान को आपत्तिजनक और निंदनीय करार देते हुए कहा कि यह ‘चिकन नेक’ की कमजोरी को उजागर करता है। उन्होंने वैकल्पिक सड़क मार्गों के विकास की वकालत की। भारत का यह क़दम बांग्लादेश को साफ़ संदेश देता है कि वह अपनी सामरिक स्थिति का दुरुपयोग करके भारत के हितों को चुनौती नहीं दे सकता।
इस फैसले से बांग्लादेश का व्यापार प्रभावित होगा। भूटान, नेपाल और म्यांमार को सामान भेजने के लिए अब उसे लंबे और महँगे रास्तों का सहारा लेना पड़ सकता है। इससे पहले से ही उसकी कमजोर अर्थव्यवस्था पर और दबाव बढ़ेगा।
यह कदम भारत के टेक्सटाइल, जूते और जेम्स-ज्वेलरी जैसे निर्यात क्षेत्रों को फायदा पहुँचा सकता है, जहाँ बांग्लादेश उसका प्रतिद्वंद्वी है। लेकिन नॉर्थईस्ट की अपनी कनेक्टिविटी और विकास की चुनौतियाँ बरकरार रहेंगी।
चीन पहले से ही अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है और वहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहा है। अगर बांग्लादेश उसका सहयोगी बनता है तो भारत के लिए यह दो मोर्चों की चुनौती होगी। यूनुस का बयान इस ख़तरे को बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।
शेख हसीना के नेतृत्व में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते मजबूत थे, लेकिन उनके सत्ता से हटने और यूनुस के अंतरिम शासन के बाद से तनाव बढ़ा है। यूनुस ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के बजाय चीन को चुना। यह भी एक संकेत था। हाल ही में बिम्सटेक समिट में पीएम मोदी ने यूनुस से मुलाकात की थी और सकारात्मक रिश्तों की बात की थी, लेकिन यह फैसला दिखाता है कि भारत अब सख्त रुख अपनाने को तैयार है।
भारत द्वारा बांग्लादेश के कार्गो जहाजों की सुविधा बंद करना एक कूटनीतिक और आर्थिक जवाब है जो बांग्लादेश को अपनी सीमाओं में रहने की चेतावनी देता है। यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की सुरक्षा के लिए जरूरी हो सकता है, लेकिन यह भी सवाल उठाता है कि क्या यह रिश्तों को और खराब करेगा। बांग्लादेश अगर चीन के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाता है तो भारत को अपनी रणनीति में और सख्ती लानी पड़ सकती है।