
Bihar Assembly Election 2025
Bihar Assembly Election 2025
Bihar Assembly Election 2025: बिहार की राजनीति में इन दिनों वक़्त सियासी सरगर्मी तेज़ हैं। विधानसभा चुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर मंथन लगातार जारी है। NDA और महागठबंधन दोनों खेमे अपनी-अपनी रणनीति में तेज़ी से लगे हुए हैं। इस वक़्त NDA की सबसे बड़ी चुनौती उन इलाकों को लेकर है, जहां साल 2024 लोकसभा चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। शाहाबाद का इलाका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। विशेषकर काराकाट सीट, जहां भोजपुरी के पावर स्टार के नाम से मशहूर सुपरस्टार और गायक पवन सिंह ने चुनावी मैदान में उतरकर पूरे समीकरण बड़ा झटका दिया था। हालांकि भाजपा की ओर से अब डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया जा रहा है।
भाजपा अब पवन सिंह को साधने में जुटी हुई है। सोमवार की रात पार्टी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा ने उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की थी। यह मुलाकात सिर्फ औपचारिक रूप से नहीं देखी जा रही है। वहीं आज 30 सितंबर 2025 यानी मंगलवार को पवन सिंह उपेंद्र कुशवाहा से मिलने पहुंचे। इस दौरान अब भाजपा नेता विनोद तावड़े ने घोषणा किया कि पवन सिंह भाजपा में थे और भाजपा में ही रहेंगे।
भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में आसन आसनसोल से उम्मीदवार खड़ा किया था। हालांकि वो काराकाट सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे। बाद में पवन सिंह ने भाजपा छोड़कर निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया था। पवन सिंह के बगावत से NDA उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को शिकस्त मिली थी। बाद में भाजपा ने पवन सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर पवन सिंह NDA के लिए क्यों जरूरी हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बिहार की राजनीति में पवन सिंह जैसे जाने-माने चेहरे को अनदेखा करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है। उनकी लोकप्रियता न सिर्फ भोजपुरी भाषी वोटरों में है, बल्कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी उनका प्रबल प्रभाव नज़र आता है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट से NDA के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा उम्मीदवार थे। लेकिन पवन सिंह ने बगावत कर चुनाव लड़ा था। नतीजा यह हुआ कि कुशवाहा तीसरे नंबर पर पहुंच गए और NDA को हार का सामना करना पड़ा था। शाहाबाद के समीकरण इस चुनाव में पूरी तरह बिगड़ गए। कुशवाहा समाज और राजपूत समाज के बीच तनाव ने इस हार को और गंभीर बना दिया। यही वजह है कि इस बार भाजपा और NDA इस क्षेत्र पर खास तौर से ध्यान दे रहे हैं।
जातिगत वोट बैंक के लिए भी आवश्यक हैं पवन सिंह
काराकाट लोकसभा क्षेत्र शाहाबाद की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र हमेशा जातीय समीकरणों के आसपास घूमता रहा है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी शाहाबाद क्षेत्र की 22 सीटों में NDA को मात्र 2 सीटें प्राप्त हुई थीं। ऐसा मानना है कि पवन सिंह की बगावत के वजह से ही भाजपा को लोकसभा चुनाव में आरा, काराकाट, औरंगाबाद और बक्सर सीट पर भारी नुकसान झेलना पड़ा था। इन दिनों बिहार में भाजपा के बड़े चेहरे आरके सिंह भी कई बार भाजपा के खिलाफ नज़र आ चुके हैं ऐसे में NDA को अपने परंपरागत राजपूत वोट को साथ रखने के लिए किसी मजबूत चेहरे की आवश्यकता है। और…. पवन सिंह के साथ आने से यह पूरा हो सकता है।
जानकारी के मुताबिक, पवन सिंह को कुशवाहा की पार्टी में दो विधानसभा सीट और राज्यसभा का वादा किया गया है। पवन सिंह की प्रसिद्धता भोजपुरी भाषी, ग्रामीण और शहरी वोटरों में समान है, इसलिए उन्हें अनदेखा करना बहुत मुश्किल है। शाहाबाद क्षेत्र की 22 सीटों में साल 2020 विधानसभा चुनाव में NDA को बड़ा नुकसान हुआ था। पवन सिंह और कुशवाहा यदि साथ आते हैं तो राजपूत-कुशवाहा समीकरण से महागठबंधन को नुकसान पहुंच सकता है। बक्सर में बागी आनंद मिश्रा को साधने के बाद अब भाजपा प्रयास कर रही है कि काराकाट में पवन सिंह अपने पाले में आ जाएं।
कुशवाहा और पवन सिंह यदि साथ आते हैं तो क्या नया समीकरण बन सकेगा ?
पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट देकर यादव, मुस्लिम और कुशवाहा समीकरण बनाने का प्रयास किया था और इंडिया गठबंधन को इसका बड़ा फायदा भी मिला था। यदि राजपूत वोट बैंक पवन सिंह के साथ NDA की ओर आती है और उपेंद्र कुशवाहा अपने स्वजातीय वोटर्स को साथ रखने में सफल हो पाते हैं तो महागठबंधन के समीकरण को कमजोर कर सकता है।
आनंद मिश्रा के बाद अब पवन सिंह ही क्यों निशाने पर…?
पिछले कई विधानसभा चुनावों से NDA का प्रदर्शन इस इलाके में कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में सभी 4 सीटों पर NDA की हार हुई थी। आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट में NDA के उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। भाजपा ने बक्सर में बागी उम्मीदवार के तौर पर उतरे आनंद मिश्रा को पार्टी में शामिल करवाया अब यदि पवन सिंह की वापसी हुई तो यह निश्चित है कि चुनाव में NDA को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है।