अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू दिया है। जिसमें उन्होंने कई बातें कही हैं लेकिन उन्होंने राम मंदिर जैसे अन्य मुद्दों को लेकर जो कहा है, उसे समझना जरूरी है।मिश्रा ने कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की एक सीमा होती है। समाज को अतीत के बजाय भविष्य की ओर देखना चाहिए और विकास के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
नृपेंद्र मिश्रा 2014 से 2019 तक प्रधानमंत्री मोदी के प्रधान सचिव रहे और फरवरी 2020 में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की निर्माण समिति के अध्यक्ष नियुक्त हुए। उन्होंने कहा कि राम मंदिर को सभी ने इसलिए स्वीकार किया क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नतीजा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि अतीत के हर विवाद के लिए न्याय की मांग नहीं की जा सकती। मिश्रा ने कहा, “जब लोग यह समझ लेंगे कि बीता समय वापस नहीं आता और वर्तमान में रहकर भविष्य के सपने देखने चाहिए, तो समाज अधिक सकारात्मक होगा और विकास के मुद्दों की ओर ध्यान देगा।”
मोहन भागवत भी कह चुके हैं लेकिन…
पीटीआई के मुताबिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने 20 दिसंबर 2024 को देश में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर चिंता जताई थी। भागवत ने पुणे में ‘भारत-विश्वगुरु’ पर भाषण देते हुए कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग इस धारणा के शिकार हो गए हैं कि वे इस तरह के विवाद उठाकर “हिंदुओं के नेता” बन सकते हैं और उन्होंने कहा कि यह अस्वीकार्य है। समावेशी समाज की वकालत करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत सद्भाव के साथ एकसाथ रह सकता है। भागवत ने यह बात कई मौकों पर कहा। लेकिन खुद आरएसएस और तमाम हिन्दू नेता इस बात से पलटते रहे हैं। अब नृपेंद्र मिश्रा का बयान उन्हीं लाइन पर आ गया है।
हालांकि, इस रुख को हिंदू संगठनों से बहुत कम समर्थन मिला। भागवत के बयान के चार दिन बाद ही हिंदू संत रामभद्राचार्य ने कहा, “मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम हैं।” अखिल भारतीय संत समिति (एकेएसएस) जैसे संत संगठन ने भागवत की आलोचना की, जिसमें उन्होंने विभिन्न स्थलों पर मंदिर-मस्जिद विवादों को हवा देने के हिंदू नेताओं के रुझान की आलोचना की थी।
AKSS के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ऐसे धार्मिक मामलों का फैसला RSS के बजाय ‘धर्माचार्यों’ (धार्मिक नेताओं) द्वारा किया जाना चाहिए। सरस्वती ने कहा, “जब धर्म का विषय उठता है, तो धार्मिक गुरुओं को निर्णय लेना होता है। और वे जो भी निर्णय लेंगे, उसे संघ और विहिप स्वीकार करेंगे।”
सरस्वती ने कहा कि RSS प्रमुख मोहन भागवत की अतीत में इसी तरह की टिप्पणियों के बावजूद, 56 नए स्थलों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है। उन्होंने कहा कि धार्मिक संगठन अक्सर राजनीतिक एजेंडे की तुलना में जनता की भावनाओं के जवाब में काम करते हैं।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले आरएसएस ने कहा था कि राम मंदिर के अलावा उसकी नजर अन्य किसी धार्मिक स्थल पर नजर नहीं है। लेकिन अन्य हिन्दू संगठनों ने फौरन ही ‘…मथुरा-काशी बाकी है’, जैसा नारा दिया था। इसके बाद इस मुद्दे पर बहस होती रही है। अब नृपेंद्र मिश्रा का अतीत को भूलने की बात कहने का संकेत यही माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इसी नीति पर चलना चाहती है।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में नृपेंद्र मिश्रा ने कहा- भविष्य के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत 7% की आर्थिक वृद्धि के साथ जल्द ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने सामाजिक समूहों और प्रतिनिधियों से अपील की कि वे ऐतिहासिक मुद्दों को सुधारने की सीमाओं को समझें और विकास के लिए एकजुट हों।
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हुआ, जिसमें मंदिर निर्माण के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया गया था। मिश्रा ने इस परियोजना को “दिव्य आशीर्वाद” करार दिया और इसे अपने करियर का सबसे विशेष कार्य बताया। मंदिर का पहला चरण जनवरी 2024 में पूरा हुआ, जब राम लला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री मोदी सहित 8,000 से अधिक लोग शामिल हुए।
मिश्रा ने कहा कि मंदिर को कम से कम 1,000 साल तक टिकने वाला बनाने के लिए विशेष तकनीकों का उपयोग किया गया है। लोहे का उपयोग नहीं किया गया, क्योंकि इसकी आयु केवल 90 वर्ष होती है। बहरहाल, मंदिर निर्माण का अंतिम चरण इसी साल पूरा हो जाएगा। अब, जब यह अंतिम चरण है, तो संदेश स्पष्ट है, अतीत को पीछे छोड़कर, भविष्य के लिए एक पॉजिटिव नजरिया अपनाएं।