इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लव जिहाद के मामले में मोहम्मद साकिब को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। साकिब पर लगे सारे आरोप पांच साल बाद झूठे साबित हुए। कौन है साकिब ? इन पांच सालों में उसने क्या कुछ झेला और उसे किस तरह लव जिहाद के झूठे मामले में फंसाया गया? हालांकि देश की मीडिया में इस मामले की बहुत चर्चा नहीं हो रही है।
साकिब के परिवार वालों का कहना है कि 14 दिसंबर, 2020 की रात, बिजनौर के नसीरपुर गाँव में, सोलह साल का मोहम्मद साकिब अपने दोस्त के जन्मदिन की पार्टी से लौट रहा था। बाहर उसने देखा कि एक लड़की को कुछ लोगों ने घेर रखा था। जब वह यह जानने के लिए पास गया कि क्या हो रहा है, तो भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। इस हमले के बाद साकिब उस रात अपने घर नहीं लौटा । अगली सुबह, उसके माता-पिता को पता चला कि उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। साकिब एक दिहाड़ी मजदूर था और देहरादून में वेल्डर के तौर पर काम करता था । साकिब के मुताबिक घटना से कुछ दिन पहले ही वह बिजनौर लौटा था।
सोलह साल की लड़की दलित समुदाय से थी। लड़की के पिता ने 15 दिसंबर को धामपुर थाने में साकिब के खिलाफ एक FIR दर्ज कराई। साकिब पर गंभीर आरोप लगाए गए कि उसने लड़की का अपहरण किया, शादी के लिए मजबूर किया, और यौन उत्पीड़न, और SC/ST एक्ट के तहत अपराध भी दर्ज किया गया। इसके अलावा, उस पर उत्तर प्रदेश के “लव जिहाद” कानून के तहत भी मामला दर्ज किया गया।
शिकायत में आरोप लगाया गया कि साकिब ने खुद को “सोनू” नाम का हिंदू बताकर लड़की से बात की और उसे शादी व धर्म परिवर्तन के लिए बहलाया। 14 दिसंबर की रात, उसने कथित तौर पर लड़की को बरखेड़ा चौहान गाँव से अगवा किया। जब लड़की को पता चला कि वह मुस्लिम है, तो वह भागकर अपने माता-पिता के पास लौटी। सभी आरोप गैर-जमानती थे, इसके बाद 17 दिसंबर को साकिब को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उसने 6 महीने जेल में बिताए और फिर जून 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। साकिब ने अदालत में कहा कि वह निर्दोष है, लड़की को नहीं जानता था, और उसे स्थानीय विवाद के कारण फंसाया गया।
पांच साल बाद, 21 मई 2025 को, बिजनौर की विशेष अदालत ने साकिब को सभी आरोपों से बरी कर दिया। साकिब के वकील मशरूफ कमाल ने कहा कि यह उत्तर प्रदेश में पहला ऐसा मामला है, जिसमें “लव जिहाद” कानून के तहत मुकदमे के बाद किसी मुस्लिम व्यक्ति को बरी किया गया। अदालत में इस मामले को लेकर 74 बार सुनवाई हुई । इस सुनवाई में पता चला कि शिकायतकर्ता अपने दावों को साबित नहीं कर सका।
मुकदमे में कई खामियां भी सामने आईं। लड़की ने अपने बयान में कहा कि साकिब उसे नसीरपुर ले गया और छेड़छाड़ की कोशिश की, लेकिन वह भाग निकली। हालांकि, उसके माता-पिता के बयान कुछ अलग थे। लड़की की माँ ने कहा कि वह अगली सुबह लौटी, जबकि पिता ने कहा कि वह उसी रात लौटी। माँ ने यह भी कहा कि लड़की ने उस रात की घटना के बारे में कुछ नहीं बताया।
अदालत ने उस डॉक्टर से भी पूछताछ की जिसने 16 दिसंबर को नाबालिग की मेडिकल जांच की थी। डॉक्टर ने अदालत को बताया कि उसे “पीड़िता के शरीर पर कोई बाहरी चोट नहीं मिली”। लड़की के मुताबिक उसका यौन उत्पीड़न नहीं हुआ था लेकिन फिर भी डॉक्टर ने लड़की के बयान की पुष्टि के लिए जांच की कि यौन उत्पीड़न हुआ था या नहीं । मामले की जांच कर रहे अधिकारी अजय कुमार अग्रवाल ने ने डॉक्टर से यौन उत्पीड़न पर पूरक रिपोर्ट की मांग नहीं की थी।
गौर करने की बात यह थी कि लड़की ने अदालत में कहा कि साकिब ने उसे धर्म परिवर्तन के लिए कभी नहीं कहा। जांच अधिकारी घटना का सटीक विवरण नहीं दे सके। वे यह नहीं बता पाए कि अपराध कहाँ हुआ, स्थान गाँव की किस दिशा में था, या वहाँ कितने कमरे थे। उनके द्वारा बनाया गया नक्शा भी अस्पष्ट था, जिससे सबूतों पर ही शक हो गया ।
न्यायाधीश कल्पना पांडे ने अपने फैसले में कहा, “अभियोजन पक्ष बुनियादी तथ्यों को साबित करने में विफल रहा। पीड़िता और गवाहों के बयान विरोधाभासों से भरे हैं और विश्वसनीय नहीं हैं।” इस आधार पर साकिब को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
यह मामला सिर्फ साकिब तक सीमित नहीं था। लड़की के पिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि गाँव के प्रधान ने, जो उनके खिलाफ पंचायत चुनाव लड़ रहा था, इस मामले को ‘लव जिहाद’ कहकर राजनीतिक रंग दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी FIR को पुलिस अधिकारियों ने तय किया था। वकील रमेश कुमार ने कहा कि इस कानून के तहत ज्यादातर मामले हिंदू दक्षिणपंथी समूहों के दबाव में दर्ज होते हैं, लेकिन मुकदमे में सबूतों की कमी के कारण बरी हो जाते हैं। साकिब के वकील रमेश कुमार ने बताया कि मुकदमे के दौरान उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोपों को साबित करना मुश्किल है क्योंकि यह शुरू से ही एक खराब कानून है।
साकिब के लिए बरी होना राहत की बात थी, लेकिन इस केस ने उसकी पूरी ज़िंदगी को प्रभावित कर दिया । जमानत के बाद वह देहरादून लौटा और वेल्डिंग का काम शुरू किया, लेकिन उसकी कमाई का ज्यादातर हिस्सा मुकदमे में खर्च होता गया । उन्होंने कहा, “जब मुझे नौकरी मिली थी, तब मैं 7,000 रुपये महीने कमाता था और आज मैं 10,000 रुपये कमाता हूं।”
साकिब ने कहा- “उसमें से ज़्यादातर पैसे केस लड़ने में खर्च हो गए। कभी-कभी, मुझे सुनवाई के लिए महीने में चार बार बिजनौर जाना पड़ता था। मैं कोई पैसा नहीं बचा पाया।” साकिब ने कहा, ‘यह केस तब हुआ जब मैं 16 साल का था। उस उम्र में लोग खेलते-मस्ती करते हैं, लेकिन मैं जेल में था। मेरी सारी कमाई मुकदमे में खर्च हो गई। इस केस ने मुझे और मेरे परिवार को बर्बाद कर दिया।
उनके भाई आरिफ ने बताया कि यह केस उनके परिवार के लिए एक दाग बन गया, और गाँव में लोग आज भी उन्हें शक की नज़र से देखते हैं। और हमारे परिवार का कोई भी कभी पुलिस स्टेशन तक नहीं गया लेकिन इस केस ने सब कुछ बदलकर रख दिया। आपको बता दें कि नवंबर 2020 से जुलाई 2024 तक, उत्तर प्रदेश में इस कानून के तहत 835 मामले दर्ज हुए, जिनमें 1,682 लोग गिरफ्तार हुए। लेकिन दोषसिद्धि बहुत कम हुई, क्योंकि सबूतों का अभाव और बयानों का अलग-अलग होना आम हैं।