
Leh Ladakh Religion (Image Credit-Social Media)
Leh Ladakh Religion
Leh Ladakh Religion: लेह-लद्दाख, जिसे अक्सर ‘छोटा तिब्बत’ कहा जाता है, अपनी शानदार पहाड़ियों, शांत झीलों और प्राचीन बौद्ध मठों के लिए जाना जाता है। जब भी इस इलाके का नाम आता है, दिमाग में बर्फ से ढके पहाड़ और रंग-बिरंगे प्रार्थना झंडों से सजा हुआ नजारा घूमने लगता है। लेकिन क्या आपको पता है कि यहां के लोग किस धर्म का पालन करते हैं और यह उनकी संस्कृति में कैसे घुला हुआ है-
कैसा है लद्दाख का भौगोलिक और सामाजिक परिदृश्य
लेह-लद्दाख अब जम्मू-कश्मीर से अलग होकर एक केंद्र शासित प्रदेश है और इसमें मुख्य रूप से दो जिले हैं लेह और कारगिल। लेह लद्दाख की राजधानी है और पर्यटकों का सबसे पसंदीदा गंतव्य माना जाता है। वहीं कारगिल अपने शिया मुस्लिम बहुल समुदाय और ऐतिहासिक कारगिल युद्ध के कारण जाना जाता है। जहां कारगिल की पहचान इस्लाम से जुड़ी है, वहीं लेह बौद्ध धर्म का केंद्र है और यही कारण है कि यहां की संस्कृति, रहन-सहन और स्थापत्य पर बौद्ध परंपरा की गहरी छाप दिखती है।

लेह में कौन सा धर्म है सबसे प्रमुख
लेह की आबादी में लगभग 60 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। यहां की जीवनशैली, लामा संस्कृति, प्रार्थना चक्र और बौद्ध मठ लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हैं। इसके अलावा इस्लाम, हिंदू, सिख और ईसाई धर्म के लोग भी रहते हैं, जो लेह की बहुरंगी संस्कृति में योगदान करते हैं। वहीं लेह-लद्दाख में बौद्ध धर्म का इतिहास बेहद रोचक है। सबसे पहले यहां आर्य लोग आए थे, जो प्रकृति को पूजते थे और पहाड़ों, नदियों और सूर्य-चांद को दैवीय शक्ति मानकर उनकी उपासना करते थे। दूसरी शताब्दी ईस्वी में बौद्ध धर्म कश्मीर और कुषाण साम्राज्य के जरिए लद्दाख में आया। सातवीं शताब्दी आते-आते यह धर्म पूरी तरह यहां की जड़ों में समा गया और लेह-लद्दाख को ‘छोटा तिब्बत’ कहा जाने लगा।
लेह की पहचान बन चुके हैं यहां मौजूद बौद्ध मठ
लेह में बौद्ध मठ न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत खास हैं। यहां के लोग मूर्ति पूजा करते हैं और मठों में बुद्ध की विशाल और छोटी मूर्तियां देखने को मिलती हैं। थिकसे मठ में मैत्रेय बुद्ध की 40 फीट ऊंची प्रतिमा सबसे आकर्षक है। वहीं यहां शे मठ सोने से मढ़ी शाक्यमुनि बुद्ध की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। हेमिस मठ अपने हेमिस उत्सव के लिए मशहूर है, जिसमें रंगीन मुखौटे और नृत्य पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इन मठों की भित्तिचित्र कला, प्रार्थना कक्ष और प्राचीन शास्त्र आज भी बौद्ध संस्कृति की जीवंत धरोहर हैं।
कारगिल एक शिया मुस्लिमों का गढ़
जहां लेह बौद्ध धर्म का केंद्र है, वहीं कारगिल में शिया मुसलमानों की आबादी सबसे अधिक है। यहां की मस्जिदें और इमामबाड़े इस जिले की पहचान हैं। मुहर्रम के मौके पर यहां की धार्मिक गतिविधियां पूरे लद्दाख में चर्चा का विषय बन जाती हैं और यह दिखाती हैं कि धर्म और संस्कृति इस क्षेत्र की सामाजिक विविधता को कैसे आकार देती हैं।

हाल ही में लेह-लद्दाख में एक बड़ा आंदोलन देखने को मिला, जिसमें चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। यह आंदोलन लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार दिलाने को लेकर था। भले ही धर्म और राजनीति का सीधा रिश्ता न हो, लेकिन यहां की जनसंख्या और धार्मिक पहचान राजनीतिक फैसलों को काफी हद तक प्रभावित करती हैं। लेह के बौद्ध और कारगिल के मुसलमान मिलकर लद्दाख की शांति और सामाजिक विविधता को भाईचारे के साथ निभाते आ रहे हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ पहाड़ों या मठों में नहीं है, बल्कि यहां के लोगों के आपसी भाईचारे में भी है। चाहे बौद्ध हों, मुस्लिम हों या हिंदू-सिख-ईसाई समुदाय के लोग, सभी एक-दूसरे के त्योहारों और पर्वों में शामिल होकर अपनी साझा संस्कृति को जीवित रखते हैं। यही धार्मिक सहिष्णुता लेह-लद्दाख की सबसे बड़ी ताकत है।
पर्यटकों को धार्मिक अनुभव का मिलता है एहसास
लेह-लद्दाख आने वाले पर्यटकों को यहां न सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी मिलता है। यहां प्राचीकर धार्मिक गतिविधियों में प्रार्थना चक्र घुमाना, मंत्रोच्चारण सुनना और रंग-बिरंगे झंडों को हवा में लहराते देखना, यह सब मन को शांति और ऊर्जा देता है और जीवन की भागदौड़ से एक पल का विश्राम प्रदान करता है। लेह के लोग मुख्य रूप से बौद्ध धर्म को मानते हैं और यही धर्म उनकी सांस्कृतिक धरोहर और पहचान का बड़ा हिस्सा है। हालांकि इस्लाम, हिंदू, सिख और ईसाई धर्म के लोग भी रहते हैं, लेकिन लेह की आत्मा बौद्ध परंपराओं से गहराई से जुड़ी है। इस धार्मिक विविधता और आपसी सौहार्द्र ने लेह-लद्दाख को भारत का और विश्व का एक अनोखा सांस्कृतिक केंद्र बना दिया है।