
Akhilesh Dimple Yadav: देश की राजनीति में एक बार फिर वह पुराना खेल शुरू हो गया है, जिसे भारत में ध्यान भटकाओ प्रीमियम योजना कहा जाता है। इस बार मंजर संसद के सामने स्थित एक मस्जिद का है जहां समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी सांसद पत्नी डिंपल यादव कुछ मिनटों के लिए बैठे क्या, भाजपा के नेता मानो अलर्ट मोड में चले गए। लगे हाथ धार्मिक भावनाओं से लेकर फैशन पुलिस तक की सारी डिवीजनें एक्टिवेट हो गईं।
भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने न केवल राजनीतिक बैठक का आरोप लगाया, बल्कि डिंपल यादव की पीठ, पेट और ब्लाउज तक पहुंच गए क्योंकि जाहिर है, अब मस्जिद में क्या चर्चा हुई उससे ज्यादा जरूरी है कि दुपट्टा कितने सेकंड लुढ़का। सिद्दीकी साहब का क्रोध समझ में आता है आखिर मस्जिद में अगर कोई सिर पर टोपी नहीं पहनता तो नीयत भी संदिग्ध हो जाती है और कपड़े ढंग से न पहने तो राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में आ जाती है। वैसे उन्होंने 25 जुलाई को उसी मस्जिद में सभा आयोजित करने का ऐलान किया है, जो राष्ट्रगीत से शुरू और राष्ट्रगान से खत्म होगी। जाहिर है अब इबादत भी राष्ट्रभक्ति के ‘पीपीटी प्रेजेंटेशन’ जैसी होगी।
सियासत के सिरे से सरका दुपट्टा, विपक्ष की पीठ पर चाबुक
डिंपल यादव ने जवाब में कहा कि हम इमाम नदवी जी के आमंत्रण पर गए थे, न कोई मीटिंग थी और न कोई ‘पॉलिटिकल एजेंडा’। पर भाजपा मानो कह रही हो बात कुछ भी हो कपड़ों से शुरू होकर एजेंडे तक हम ही तय करेंगे।
यह बात अलग है कि देश में नफरत, बेरोज़गारी, महंगाई, ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम हमले जैसे मुद्दे अस्थायी रूप से ‘Pending’ हैं क्योंकि फिलहाल प्राथमिकता यह है कि डिंपल यादव के ब्लाउज की डिज़ाइन कौन से शास्त्रों के अनुसार थी।
अखिलेश यादव की चुटकी: धर्म जोड़ता है, भाजपा तोड़ती है
अखिलेश यादव ने जवाब में राजनीति को थोड़ा ‘दार्शनिक टच’ दिया। बोले आस्था जोड़ती है, भाजपा को जोड़ना नहीं आता, उन्हें तो डर, दूरी और डिवाइडिंग पॉलिटिक्स आती है। यह सुनते ही भाजपा के कुछ नेताओं को मानो वही पुराना ‘सेकुलर सिर दर्द’ हो गया जिसमें अल्पसंख्यक के लिए खड़े होने वाला हर नेता ‘राष्ट्र-विरोधी’ हो जाता है।
राजनीतिक बयानबाज़ी में सपा नेता राजीव राय भी पीछे नहीं रहे उन्होंने कहा, अब क्या मंदिर-मस्जिद में जाने के लिए नेताओं को लाइसेंस लेना पड़ेगा? हो सकता है अगली बार एक ऐप लॉन्च हो “DarshanTracker”, जिसमें कोई VIP कितनी बार, किस धर्मस्थल गया, क्या पहना और कौन-सा मंत्र पढ़ा सब ट्रैक हो।
भाजपा का आरोप: सपा – न मंदिर स्वीकार, न मस्जिद में मर्यादा
प्रदीप भंडारी का आरोप है कि सपा घोर हिंदू विरोधी पार्टी है, क्योंकि वह राम मंदिर उद्घाटन में नहीं गई। मस्जिद गई इसलिए अब वह भी राजनीति का अपराध हो गया। अगली बार अगर कोई विपक्षी नेता चर्च में दिख जाए तो शायद उसे वेटिकन एजेंट करार दे दिया जाएगा।
व्यंग्य की तलवार से सवाल अब ये खड़े होते हैं कि क्या अब धार्मिक स्थलों में जाने से पहले कपड़ों का ‘राजनीतिक सेंसर बोर्ड’ आएगा? क्या मस्जिद में बैठना अपराध है अगर बैठने वाला विपक्ष से हो? और सबसे अहम क्या राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करना अब विपक्ष का दुपट्टा संभालने पर निर्भर करेगा?
राजनीति का नया नियम: आस्था भी पार्टी लाइन से तय होगी
जहां जनता बेरोजगारी और महंगाई की आग में झुलस रही है, वहीं दिल्ली की सियासत में ब्लाउज की लंबाई और दुपट्टे की स्थिति पर चर्चा चल रही है। अखिलेश यादव मस्जिद गए तो बवाल, राम मंदिर नहीं गए तो बवाल न जाना सही, न जाना गलत और न ही चुप रहना। अब जब ड्रेस कोड राजनीति में इतना जरूरी हो गया है तो शायद संसद में अगली बार प्रवेश से पहले आचारसंहिता फैशन शो आयोजित किया जाए। क्योंकि जब सवाल कपड़े और जगह का हो तब मुद्दों को कपड़े बदलने का भी मौका नहीं मिलता।