‘मां कुश्ती मेरे से जीत गयी मैं हार गयी माफ़ करना आपका सपना मेरी हिम्मत सब टूट चुके हैं इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2001 -2024 . आप सबकी ऋणी रहूंगी माफ़ी। ‘ -विनेश फोगाट
ये शब्द देश के हर खेल के मैदान में अपनी परछाई लिए खड़े रहेंगे और देश की बेटियों को डराते रहेंगे। महिला पहलवान खिलाड़ी विनेश फोगाट के अदम्य साहस, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान को किसकी नज़र लगी, यह चिंता किसको है।
जवाबदेही किसकी है यह सवाल भी अब देश में कोई मायने रखता नहीं। विनेश फोगाट ने अपनी आशंका इस वर्ष अप्रैल में ही जाहिर की थी कि उसे ओलम्पिक के दौरान आधिकारिक तौर पर किसी तरह की साजिश का शिकार भी बनाया जा सकता है। जिसमे उसने साफ कहा था के डोपिंग टेस्ट केस भी हो सकता है। क्योंकि उसने कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष ताकतवर भाजपा बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के लिए आन्दोलन किया था।
परचम हौसलों से लहराए जाते हैं पाखंड से नहीं, राजनीति को यह समझ आएगा नहीं। यहां उपलब्धि चकाचौंध की है, महत्वकांक्षा की है, स्वार्थ की है। आभाव और बाधाओं के संघर्ष की नहीं। विकसित भारत की धुंध में क्या क्या लुप्त हो रहा है इसके आकलन की आवश्यकता भी बची नहीं।
खेलो इंडिया को कैसे ग्रहण लगा यह पूरे देश ने विनेश फोगाट के अयोग्य घोषित किये जाने पर देखा है। 140 करोड़ के देश में अपनी विलक्षण प्रतिभा और हौसले से विश्व की सर्वोच्च प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंची और गोल्ड मेडल की सशक्त दावेदार पहलवान विनेश फोगट को 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण अयोग्य घोषित किये जाने से देश में नई ऊर्जा और प्रेरणा को एक बड़ा धक्का लगा है। पेरिस ओलंपिक में विनेश को अयोग्य करार देने के निर्णय ने पूरे देश में भावनाओं को आहत किया है। पहलवान विनेश फोगाट के संघर्ष की कहानी ने भारत में खेलों के प्रति गंभीरता और व्यवस्था के खेल पर नए सवल खड़े किये हैं।
भारत की आधी आबादी महिलाओं के सम्मान की दास्तान अपने में समेटे विनेश फोगाट ने निश्चय और साहस को जैसे परिभाषित करने के प्रयास किये, उनको व्यवस्थाओं ने किस तरह कमजोर किया, यह भी अपने आप में अद्भुत उदाहरण देश ने देख लिया है। भारतीय महिला खिलाड़ियों को खेलों में अपने स्वाभिमान की रक्षा करने में किस तरह की बाधाओं और शोषण से गुजरना पड़ता है यह विनेश फोगाट के साथ अन्य पहलवानों के पिछले वर्ष हुए आन्दोलन में भी देखा गया। ओलंपिक या अन्य विश्व स्तरीय प्रतियोगितओं में देश के लिए मेडल जीतने के गौरव को किस तरह प्रक्रिया और व्यवस्थाओं में बैठे लोग अपने स्वार्थ के लिए बर्बाद कर सकते हैं, यह भी इस घटनाकर्म से स्पष्ट हो गया है।
खेलों के प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए बनी संस्थाएं किस मानस्किता के कैंसर से ग्रसित है, यह वर्तमान भारतीय कुश्ती संघ की कार्यपद्धति और उनके ताकतवर पदाधिकारियों के कारनामों का सर्वजनिक सबूत है। जिसके चलते देश की एक प्रतिभवान खिलाडी साक्षी मालिक को समय से पहले ही कुश्ती खेल से संन्यास लेने को बाध्य होना पड़ा और अब विनेश फोगाट को भी वही राह चुनने को मजबूर कर दिया गया।
देश के खेल मंत्री देश में उमड़ी भावनाओं के दबाव में सरकार के बचाव के लिए संसद में घटिया स्पष्टीकरण के जरिये नियमों की दुहाई देने और खिलाड़ी पर देश के खजाने से किये गए खर्च को गिनवाने के ओछे प्रयास में लगे रहे। केंद्रीय सरकार द्वारा खेलों के लिए विभिन्न राज्यों को आवंटित बजट की विसंगतियां खेलो इंडिया की पोल अलग से खोल रही है। 117 खिलड़ियों के साथ 140 अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल पेरिस ओलंपिक में गया है। उसके अलावा विभिन्न खेलों की एसोसिएशन के पदाधिकारी भी ओलंपिक खेलों में पहुंचे हैं, जिनका कोई हिसाब खेल मंत्री के पास नहीं। किसी भी प्रकार की चूक के लिए कारण और गैर जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और उस पर कार्रवाई करने का कोई संतोषजनक उत्तर खेल मंत्री ने उचित नहीं समझा।
लोकतंत्र में चुनावों को जीत कर सत्ता जिस तरह अपनी नीतियों को आगे बढ़ती है उसको चुनातियाँ भी उन्ही चुनावों में मिलती है। हरियणा की माटी से उठने वाली संघर्ष की चुनौती राज्य के विधान सभा चुनावों में अपना प्रभाव अवश्य ही अंकित करेगी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। हरियाणा में अब भाजपा को अन्य मुद्दों की साथ साथ इस घटना की तपिश को भी झेलना होगा। बेशक हरियाणा में भाजपा की सरकार ने विनेश फोगाट के लिए घोषणाएं करने की पहल की लेकिन उनका कोई औचित्य प्रासंगिक नहीं है। विनेश फोगाट केवल एक ओलम्पिक खिलाड़ी ही नहीं बल्कि हरियाणा की आधी आबादी के आत्मसम्मान और अस्मिता का प्रतीक बन कर खड़ी हैं।
हरियणा की राजनीति के जानकारों की प्रतिकिर्याओं को अगर सही परिपेक्ष में समझा जाये तो कहा जा सकता है की आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व को एक ताकतवर पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह को संरक्षण देने की कीमत चुकाना तय है । गोल्ड मेडल से वंचित हो जाने से बढ़ कर किसी भी साजिश को नाकाम करके खिलाड़ी के मनोबल की रक्षा करने की टीस जन भावनाओं में चुनावों तक कमजोर होने वाली नहीं। सामाजिक न्याय के बड़े बड़े दावे करने वाली सत्ताधारी भाजपा की नीतियों पर संदेह मतदाताओं में कितने गहरे तक बैठ गया है, ये चुनाव परिणामों में स्पष्ट हो जाएगा।