कांग्रेस सांसद शशि थरूर के एक बयान ने पार्टी में ही नया विवाद खड़ा कर दिया है। पनामा में एक कार्यक्रम के दौरान थरूर ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक का ज़िक्र करते हुए कहा कि 2016 में पहली बार भारत ने नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पार कर आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की। इस पर कांग्रेस नेताओं ने संसदीय समिति को दिए विदेश मंत्री एस जयशंकर का वह बयान ही उनके सामने रख दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार में की गई सर्जिकल स्ट्राइक कोई पहली सर्जिकल स्ट्राइक नहीं थी। यह पहली बार था कि सरकार ने इसे सार्वजनिक किया। इसके बाद थरूर और पार्टी के अन्य नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप और बढ़ गए।
थरूर ने जब एक ट्वीट में आलोचक और ट्रोल्स कहकर संबोधित किया तो इसके जवाब में पवन खेड़ा ने उनकी किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर: नरेंद्र मोदी एंड हिज इंडिया’ के एक अंश को ट्वीट किया। किताब के इस इस अंश में थरूर ने नरेंद्र मोदी सरकार पर ‘सेना को अपने राजनीतिक प्रचार में बार-बार उपयोग करने’ का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा है, “पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पार की गई 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और म्यांमार में विद्रोहियों के ख़िलाफ़ की गई सैन्य कार्रवाई का बेशर्मी से चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल बेहद शर्मनाक है। यह उस सिद्धांत को कमजोर करता है जिसमें कहा जाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर विवेक और गैर-दलीय नज़रिये की ज़रूरत होती है। कांग्रेस ने पहले कई ऐसी स्ट्राइक को अंजाम देने के बावजूद कभी ऐसा नहीं किया।”
इस अंश के साथ पवन खेड़ा ने लिखा है, “मैं डॉ. शशि थरूर से सहमत हूँ, जिन्होंने 2018 में अपनी किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’ में सर्जिकल स्ट्राइक्स के बारे में लिखा था।”
इससे पहले पवन खेड़ा ने एक न्यूज़ स्टोरी का लिंक शेयर किया है और लिखा है कि जयशंकर ने अक्टूबर 2016 में विदेश मामलों की संसदीय समिति को यह कहा, “पेशेवर रूप से किए गए, टार्गेट-स्पेसिफिक, सीमित-क्षमता वाले आतंकवाद-विरोधी अभियान पहले भी एलओसी के पार किए गए हैं, लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने इसे सार्वजनिक किया है।” पवन खेड़ा ने इस ट्वीट को शशि थरूर को टैग किया है।
उदित राज ने थरूर पर तीखा हमला बोला और उन्हें बीजेपी का सुपर प्रवक्ता तक कह डाला। उन्होंने थरूर को संबोधित कर लिखा, ‘काश! मैं प्रधानमंत्री मोदी को मना लेता कि वे आपको भाजपा का सुपर प्रवक्ता घोषित कर दें, यहाँ तक कि भारत आने से पहले ही विदेश मंत्री घोषित कर दें। आप कांग्रेस के स्वर्णिम इतिहास को यह कहकर कैसे बदनाम कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से पहले भारत ने कभी एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पार नहीं की। 1965 में भारतीय सेना ने कई जगहों पर पाकिस्तान में प्रवेश किया, जिससे लाहौर सेक्टर में पाकिस्तानियों को पूरी तरह से आश्चर्य हुआ। 1971 में भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और यूपीए सरकार के दौरान कई सर्जिकल स्ट्राइक की गईं, लेकिन राजनीतिक रूप से इसका ढोल नहीं पीटा गया। जिस पार्टी ने आपको इतना कुछ दिया, उसके प्रति आप इतने बेईमान कैसे हो सकते हैं?’
कांग्रेस की आपत्ति क्यों?
कांग्रेस ने हमेशा दावा किया है कि यूपीए सरकार के दौरान भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ कठोर क़दम उठाए गए थे, जिनमें गुप्त रूप से सर्जिकल स्ट्राइक शामिल थीं। थरूर का यह कहना कि 2016 में पहली बार ऐसी कार्रवाई हुई, यूपीए की इस विरासत को कमजोर करता है। यह कांग्रेस की उस रणनीति के ख़िलाफ़ जाता है, जिसमें वह बीजेपी पर सर्जिकल स्ट्राइक को ‘राजनीतिक स्टंट’ बताकर हमला करती रही है। थरूर के बयान ने बीजेपी को यह कहने का मौक़ा दे दिया कि कांग्रेस उनकी उपलब्धियों को स्वीकार कर रही है।
थरूर का कांग्रेस में हमेशा से एक अलग स्थान रहा है। उनकी बौद्धिक छवि, वैश्विक दृष्टिकोण और अक्सर पार्टी लाइन से हटकर बोलने की आदत के कारण उन्हें पार्टी के भीतर कुछ नेताओं का निशाना बनना पड़ा है। उदित राज जैसे नेताओं का तीखा हमला इस बात का संकेत हो सकता है कि थरूर को पार्टी में कुछ हद तक अलग-थलग करने की कोशिश हो रही है। उनके ट्वीट को जयराम रमेश, पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत द्वारा रिट्वीट किया गया। खासकर, जब राहुल गांधी और पार्टी आलाकमान की ओर से कोई साफ़ समर्थन नहीं दिखा, तो यह संदेह और गहरा होता है कि थरूर का पार्टी में स्थान उतना मज़बूत नहीं है।
थरूर के बयान ने बीजेपी को एक सुनहरा मौका दिया। बीजेपी ने तुरंत थरूर के बयान को भुनाने की कोशिश की और इसे कांग्रेस की हार के रूप में पेश किया। बीजेपी नेताओं ने कहा कि थरूर ने सच बोला, जिसे कांग्रेस स्वीकार नहीं कर पा रही। यह सियासी रणनीति बीजेपी को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर देती है, खासकर तब जब कांग्रेस इस मुद्दे पर पहले से ही कमजोर दिखाई देती है।
थरूर की बौद्धिक और स्वतंत्र छवि उन्हें एक तरफ तो लोकप्रिय बनाती है, लेकिन दूसरी तरफ पार्टी नेतृत्व के लिए चुनौती भी पेश करती है। उनके बयान अक्सर पार्टी लाइन से हटकर होते हैं, जैसे कि 2014 में नरेंद्र मोदी की तारीफ करना या अब सर्जिकल स्ट्राइक पर बयान देना।
इसके अलावा, थरूर का वैश्विक मंचों पर सक्रिय रहना और उनकी किताबों व लेखों के जरिए अपनी राय खुलकर व्यक्त करना भी कुछ नेताओं को असहज करता है। उदित राज का ‘बीजेपी का सुपर प्रवक्ता’ वाला बयान इस बात का संकेत है कि थरूर को पार्टी में कुछ लोग अलग मानते हैं। हालांकि, यह कहना जल्दबाजी होगी कि थरूर पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं, क्योंकि उनकी लोकप्रियता और बौद्धिक छवि उन्हें पार्टी में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है। फिर भी, इस विवाद ने उनके और आलाकमान के बीच दूरी को उजागर जरूर किया है।
कांग्रेस इस समय बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। थरूर का बयान इस रणनीति को कमजोर करता है, क्योंकि यह बीजेपी को यह कहने का मौका देता है कि उनकी नीतियां विपक्ष द्वारा भी स्वीकारी जा रही हैं। इसलिए, पवन खेड़ा और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने तुरंत थरूर के बयान का खंडन कर यूपीए की उपलब्धियों को सामने लाने की कोशिश की।
बीजेपी इस विवाद को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। थरूर के बयान को बीजेपी ने अपनी नीतियों की जीत के रूप में पेश किया और कांग्रेस की आंतरिक कलह को उजागर करने की कोशिश की।
शशि थरूर का सर्जिकल स्ट्राइक वाला बयान कांग्रेस के लिए एक अप्रत्याशित संकट बन गया है। यह न केवल पार्टी की आंतरिक एकता पर सवाल उठाता है, बल्कि बीजेपी को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीतिक बढ़त लेने का मौका भी देता है। कांग्रेस नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि थरूर की स्वतंत्र बयानबाजी पार्टी लाइन के लिए चुनौती बन रही है।
थरूर का भविष्य कांग्रेस में क्या होगा, यह देखना बाकी है, लेकिन यह साफ़ है कि उनकी बयानबाजी ने एक बार फिर उन्हें सुर्खियों में ला दिया है।