पंडित नेहरू पर अक्सर हमलावर रहे पीएम मोदी ने एक बार फिर से 1947 के ऐतिहासिक संदर्भ को उठाया और कहा कि यदि उस समय सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह पर अमल किया गया होता, तो देश को आतंकवाद की समस्या से नहीं जूझना पड़ता। पीएम के इस बयान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने पलटवार करते हुए पीएम मोदी को ‘मास्टर डिस्टोरियन’ क़रार दिया और उन पर इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘आज पंडित नेहरू की पुण्यतिथि है और आज के दिन भी देश का स्वयंभू सर्वोच्च नेता और इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाला मास्टर डिस्टोरियन नेहरू-विरोध में सक्रिय है। यह बेहद दुखद और निंदनीय प्रयास है-उन गंभीर सवालों से ध्यान भटकाने का, जिनका जवाब उन्हें देना चाहिए।’
जयराम रमेश का यह बयान पीएम मोदी के बयान के जवाब में आया है। गुजरात में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा है कि सरदार पटेल ने सुझाव दिया था कि जब तक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके को वापस नहीं लिया जाता, तब तक भारतीय सेना को पीछे नहीं हटना चाहिए। पीएम ने कहा कि उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप देश पिछले 75 वर्षों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन और कश्मीर मुद्दे के ऐतिहासिक संदर्भ की ओर इशारा करता है। 1947 में जब कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों और मुजाहिदों ने हमला किया था, तब भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने सैन्य कार्रवाई को तब तक जारी रखने की वकालत की थी, जब तक पीओके को पूरी तरह से मुक्त नहीं कर लिया जाता। पीएम मोदी का कहना है कि तत्कालीन नेतृत्व द्वारा इस सलाह को अनदेखा करने के कारण कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। पीएम ने कहा कि इसी फ़ैसले ने बाद में आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम किया।
यह बयान हाल के पहलगाम आतंकी हमले के संदर्भ में दिया गया। पीएम ने कहा कि यदि 1947 में सख्त कदम उठाए गए होते, तो ऐसी घटनाएँ शायद नहीं होतीं। समझा जाता है कि पीएम के इस बयान का मक़सद अपनी सरकार की आतंकवाद के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस नीति पर जोर देना है, साथ ही ऐतिहासिक निर्णयों की आलोचना करते हुए यह संदेश देना है कि उनकी सरकार ऐसी गलतियों को दोहराने से बच रही है।
क्या यह नेहरू पर हमला है?
हालाँकि पीएम मोदी ने अपने बयान में सीधे तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम नहीं लिया, लेकिन यह साफ़ है कि उनका इशारा तत्कालीन नेतृत्व की ओर था। तब नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। इतिहासकारों के अनुसार, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध के दौरान नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाया था, जिसके परिणामस्वरूप युद्धविराम हुआ और कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया। पीएम मोदी का यह कहना कि सरदार पटेल की सलाह को नजरअंदाज किया गया, अप्रत्यक्ष रूप से नेहरू की नीतियों की आलोचना के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस ने पीएम मोदी के दावों को ग़लत क़रार दिया है।
पीएम मोदी के इस बयान ने सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है। एक्स पर कई यूजरों ने इसे नेहरू की नीतियों की असफलता के रूप में देखा, जबकि कुछ ने इसे ऐतिहासिक संदर्भों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने पीएम के बयान की आलोचना की है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि उनका यह बयान उन गंभीर सवालों से ध्यान भटकाने का प्रयास है जिनका जवाब देना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कई सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस के 4 बड़े सवाल
- आखिर क्यों पहलगाम में हुए क्रूरतम आतंकी हमले के दोषी आतंकी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं-जबकि रिपोर्टों के मुताबिक वही आतंकी पुंछ (दिसंबर 2023), गंगगीर (अक्टूबर 2024) और गुलमर्ग (अक्टूबर 2024) के हमलों में भी शामिल थे?
- अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर पिछले 11 दिनों में 8 बार दिए गए बयानों पर हमारे प्रधानमंत्री मौन क्यों हैं, वो भी तब जब उन्हीं बयानों के कारण ऑपरेशन सिंदूर को रोकना पड़ा?
- चीन और पाकिस्तान के बीच गहराता सैन्य गठजोड़ अब पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट हो चुका है- फिर भी प्रधानमंत्री चुप हैं। चीन को उन्होंने 19 जून 2020 को सार्वजनिक मंच से क्लीन चिट दी थी, और चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
- भारत को बार बार पाकिस्तान के साथ एक ही तराजू में रखे जाने पर और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की हमारी कूटनीति तथा वैश्विक नैरेटिव की विफलता पर प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं?
नेहरू पर लगातार हमलावर रहे हैं मोदी
पीएम मोदी ने पहले भी कई मौक़ों पर जवाहरलाल नेहरू की नीतियों की आलोचना की है। पीएम मोदी ने पहले भी कहा है कि नेहरू द्वारा 1948 में युद्धविराम की घोषणा और कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना एक गलती थी। उनका तर्क है कि इस निर्णय ने कश्मीर समस्या को जटिल बनाया और पीओके को पाकिस्तान के नियंत्रण में छोड़ दिया।
मोदी ने नेहरू की चीन नीति की आलोचना की है। उनकी यह आलोचना ख़ासकर 1962 के युद्ध के संदर्भ में रही है। उन्होंने कहा है कि नेहरू की पंचशील नीति ने भारत को कमजोर किया और चीन को आक्रामक होने का मौक़ा दिया।
पीएम मोदी ने नेहरू की समाजवादी आर्थिक नीतियों को भी निशाना बनाया है, यह कहते हुए कि इन नीतियों ने भारत की आर्थिक प्रगति को धीमा किया। उन्होंने निजीकरण और उदारीकरण को बढ़ावा देने वाली अपनी नीतियों को इसके विपरीत बताया है।