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    Home » सीजेआई गवई का काबिलेतारीफ फैसला- ‘रिटायर होने पर कोई सरकारी पद नहीं लूंगा’
    भारत

    सीजेआई गवई का काबिलेतारीफ फैसला- ‘रिटायर होने पर कोई सरकारी पद नहीं लूंगा’

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 4, 2025No Comments5 Mins Read
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    भारत में तमाम जज रिटायरमेंट के बाद महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर नियुक्त होते रहे हैं। कुछ जजों ने विवादित फैसले दिए और रिटायर होने के बाद उन्हें महत्वपूर्ण सरकारी पद दिए गए। लेकिन भारत के मौजूदा चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा है कि रिटायर होने के बाद वो कोई भी सरकारी पद नहीं लेंगे। हालांकि और भी जजों ने ऐसी घोषणाएं की और पद नहीं लिए। लेकिन सीजेआई गवई की घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण है कि वो मौजूदा समय में सबसे बड़े पद पर हैं और ऐसी घोषणा कर रहे हैं।

    CJI गवई ने कहा है कि रिटायरमेंट के तुरंत बाद जजों द्वारा सरकारी पद स्वीकार करना या चुनाव लड़ना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाता है। यह बयान उन्होंने यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में एक गोलमेज चर्चा के दौरान दिया। इस कार्यक्रम में उन्होंने “न्यायिक वैधता और जनता का विश्वास बनाए रखने” पर अपने विचार साझा किए।
    CJI गवई ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका की वैधता जनता के विश्वास पर निर्भर करती है। जिसे स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता के जरिए हासिल किया जाता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई जज रिटायरमेंट के बाद तुरंत सरकारी पद स्वीकार करता है या चुनाव लड़ता है, तो यह धारणा बन सकती है कि उनके निर्णय भविष्य के राजनीतिक या सरकारी लाभ की उम्मीद से प्रभावित थे। इससे जनता का न्यायपालिका पर भरोसा कमज़ोर हो सकता है।
    सीजेआई ने कहा, “जजों का सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना नैतिक चिंताएं पैदा करता है। यह संदेह पैदा कर सकता है कि क्या उनके निर्णय निष्पक्ष थे।” उन्होंने यह भी बताया कि वो खुद और उनके कई सहयोगी जजों ने रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार न करने की शपथ ली है, ताकि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता बनी रहे। बता दें कि दरअसल, जस्टिस मदन वी लोकुर ने भी रिटायरमेंट के बाद कोई पद न लेने की घोषणा की थी।
    सीजेआई गवई ने जोर दिया कि न्यायिक फैसलों के साथ स्पष्ट और ठोस तर्क होना आवश्यक है। यदि निर्णयों में तर्क की कमी होगी, तो जनता के बीच भ्रम और अविश्वास पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका को न केवल न्याय देना है, बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सच्चाई और शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखती है।”
    भारत के चीफ जस्टिस गवई ने चेतावनी दी कि यदि जनता का न्यायपालिका पर भरोसा कम हुआ, तो लोग गैर-कानूनी तरीकों, जैसे सतर्कतावादी कार्रवाई (vigilantism) या भीड़ द्वारा किए जाने वाले न्याय की ओर बढ़ सकते हैं। इससे कानून व्यवस्था कमज़ोर होगी। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में, जहां सूचनाएं तेजी से फैलती हैं, न्यायपालिका को पारदर्शी, समझने योग्य और जवाबदेह होने की चुनौती का सामना करना होगा।

    रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेने वाले कुछ जज

    यह सूची तो बहुत बड़ी है। लेकिन यहां पर सिर्फ उनकी चर्चा की जा रही है जिनके साथ विवाद जुड़े रहे हैं। इस मामले में पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल के नाम प्रमुख हैं। लेकिन गवई की तरह घोषणा करने वाले जस्टिस मदन वी लोकुर का नाम भी बहुत आदर के साथ लिया जाता है। जिन्होंने आज तक कोई सरकारी पद नहीं लिया और रिटायरमेंट का जीवन बिता रहे हैं। इसीलिए वे तमाम मुद्दों पर मुखर राय भी देते हैं। 

    पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई

    गोगोई भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश थे और नवंबर 2019 में रिटायर हुए थे। अयोध्या पर अंतिम फैसला देने वाली उस पांच सदस्यीय बेंच के अध्यक्ष थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में राम मंदिर के पक्ष में निर्णय आया और विवादित भूमि राम जन्मभूमि न्यास को दे दी गई। 
    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि मस्जिद को गिराना गलत था लेकिन उसने जमीन मंदिर के लिए सरकार को सौंप दी। केंद्र में बीजेपी की सरकार थी और अभी भी है। रिटायरमेंट के कुछ महीनों बाद मार्च 2020 में राष्ट्रपति ने गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित कर दिया। बीजेपी ने उनके लिए रास्ता बनाया था। हालांकि गोगोई को निर्विरोध चुना गया था।

    जस्टिस अरुण मिश्रा

    वो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के चेयरपर्सन हैं। जब रिटायर हुए तो वो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज थे। अडानी ग्रुप को लेकर दिए गए कई फैसलों की वजह से वो चर्चा में रहे हैं। बाद में NHRC प्रमुख बनाए गए। 

    जस्टिस आदर्श कुमार गोयल

    जस्टिस गोयल सुप्रीम कोर्ट के जज थे और रिटायर होने के बाद उन्हें नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) का चेयरमैन बनाया गया। जस्टिस गोयल के कई फैसले विवादित रहे हैं। लेकिन एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कमजोर करने वाला फैसला भी उन्हीं का है। इस फैसले के कारण देश में व्यापक विरोध हुआ और दलित संगठनों ने आरोप लगाया कि यह दलितों के अधिकारों को कमजोर करेगा। इसके अलावा, उन्होंने बहुविवाह, तीन तलाक और आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग जैसे मुद्दों पर भी चर्चित फैसले दिए। 

    इनके अलावा जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, जस्टिस पी. सतशिवम, जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस आरएफ नरीमन ने भी सरकारी पद स्वीकार किए। लेकिन इन पर कोई बड़ा या उल्लेखनीय विवाद नहीं रहा। 

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