बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण और सियासी बयानबाजी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने एक ऐसा क़दम उठाया है, जिसने सबको चौंका दिया है। नीतीश सरकार ने फ़ैसला किया है कि राज्य के सभी सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों को उर्दू भाषा सिखाई जाएगी। इस योजना के तहत हर सोमवार से गुरुवार तक दो घंटे की विशेष कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब बिहार में हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर सियासत गरमाई हुई है। नीतीश का यह क़दम क्या सियासी चाल है या सामाजिक समरसता की कोशिश, इस पर बहस छिड़ गई है। यह सब अगले कुछ महीनों में राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले हो रहा है।
बिहार में पिछले कुछ समय से धार्मिक और जातिगत आधार पर सियासत तेज हो रही है। नीतीश के जदयू के सहयोगी बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दों को जोर-शोर से उठाती रही है। कुछ दिन पहले ही अमित शाह ने मिथिला में सीता माता का भव्य मंदिर बनाने की बात कही है। इसी बीच नीतीश कुमार ने उर्दू सिखाने की योजना की घोषणा कर एक नया दांव खेला है। यह योजना न केवल सरकारी कर्मचारियों बल्कि गैर-सरकारी क्षेत्र के कर्मियों को भी शामिल करती है, जिससे इसका दायरा व्यापक हो जाता है।
सरकार का तर्क है कि उर्दू बिहार की दूसरी आधिकारिक भाषा है और इसे बढ़ावा देना राज्य की सांस्कृतिक विरासत को मज़बूत करने का प्रयास है। नीतीश सरकार ने इसे प्रशासनिक सुधार से भी जोड़ा है, ताकि उर्दू भाषी आबादी के साथ बेहतर संवाद स्थापित हो सके। बिहार में क़रीब 17% मुस्लिम आबादी है और उर्दू यहाँ व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है। लेकिन इस फ़ैसले का समय और तरीक़ा इसे सियासी रंग दे रहा है।
एनडीए गठबंधन में नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी के बीच पहले से ही कई मुद्दों पर तनाव रहा है। बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस फ़ैसले पर असहजता जताई है। यह इशारा करते हुए कि उर्दू को बढ़ावा देना बीजेपी की हिंदुत्व वाली छवि से मेल नहीं खाता, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कई यूजरों ने लिखा कि ‘बीजेपी के लोग सदमे में न चले जाएं।’
बिहार के सभी सरकारी एवं गैर सरकारी कर्मी अब उर्दू सीखेंगे।
प्रत्येक सोमवार से गुरुवार तक 2 घंटे की क्लास होगी।
भाजपा के लोग सदमे में न चले जाए।
— Pratik Patel (@PratikVoiceObc) March 12, 2025
इस योजना के तहत हर जिले में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएंगे, जहां विशेषज्ञ शिक्षक कर्मचारियों को उर्दू पढ़ाना और लिखना सिखाएंगे। सरकार का दावा है कि इससे न केवल प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी, बल्कि उर्दू भाषी समुदाय के साथ बेहतर तालमेल बनेगा।
बिहार में पहले से ही उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति और स्कूलों में उर्दू पढ़ाई की व्यवस्था है, लेकिन इसे कर्मचारियों तक विस्तार देना एक नया कदम है। लेकिन सवाल है कि विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ही ऐसा क्यों
नीतीश का यह फ़ैसला उनकी पुरानी छवि को फिर से मजबूत करने की कोशिश माना जा रहा है, जिसमें वह सभी समुदायों को साथ लेकर चलने वाले नेता के रूप में जाने जाते थे। हाल के वर्षों में बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद उनकी यह छवि धुंधली पड़ती दिखी थी। उर्दू सिखाने की योजना को कुछ लोग मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की रणनीति के तौर पर देख रहे हैं, खासकर 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए।
दूसरी ओर, बीजेपी के लिए यह असहज स्थिति पैदा कर सकता है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के ‘बाँटने’ वाले हालिया बयानों के बाद नीतीश का यह कदम बीजेपी की एकसमान हिंदुत्व नीति से अलग रास्ता दिखाता है। एक्स पर एक यूजर ने व्यंग्य करते हुए लिखा, ‘ए योगी जी, आदाब अर्ज है।’
“बिहार में सरकारी और गैर सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों को सिखाई जाएगी उर्दू” : नीतीश कुमार (जेडीयू + बीजेपी) सरकार
“ए योगी जी आदाब अर्ज़ है” 😂
— Sakina Malik (@sakinamalik181) March 13, 2025
नीतीश सरकार का यह फ़ैसला साहसिक भी है और जोखिम भरा भी। अगर यह योजना सफल होती है तो यह बिहार में भाषाई समरसता और प्रशासनिक सुधार का प्रतीक बन सकती है। लेकिन अगर इसे सिर्फ सियासी चाल के तौर पर देखा गया, तो गठबंधन में तनाव बढ़ सकता है और विपक्ष को हमले का मौक़ा मिलेगा। बिहार की जनता इसे कितना स्वीकार करती है और इसका कितना लाभ उठाती है, यह आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल, यह कदम नीतीश की सियासी चतुराई और सामाजिक संतुलन की उनकी पुरानी कला का नमूना ज़रूर है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)