
Vaitarani River (Image Credit-Social Media)
Vaitarani River
Vaitarani River: प्राचीन तीर्थों और घाटों से होकर बहने वाली इस देश में नदियों का महत्व केवल जल प्रवाह तक सीमित नहीं है। बल्कि कई नदियां अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक महत्व और पौराणिक कथाओं के कारण भी बेहद प्रसिद्ध हैं। जिनका उल्लेख हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी मौजूद है। ऐसी ही एक अनोखी नदी है वैतरणी। गरुड़ पुराण के प्रेतखंड में इसका उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार, मृत्यु के बाद हर आत्मा को वैतरणी नदी को पार करना पड़ता है। पापियों के लिए यह नदी खतरनाक दिखाई देती है, जैसे इसमें रक्त, मल, मूत्र और जंगली जीव-जंतु भरे हों, जबकि पुण्यात्माओं को यह शांत और निर्मल जल की तरह नजर आती है।
लेकिन आज हम बात करेंगे भौतिक दुनिया में बहने वाली वैतरणी नदी की, जो ओडिशा में अपने रहस्यों, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
वैतरणी नदी के बहने के विभिन्न स्थान
पौराणिक कथाओं से हटकर वास्तविक जीवन में भी वैतरणी नाम की तीन प्रमुख नदियां इस देश में बहती हैं। उत्तराखंड में इसे पुराणों की वैतरणी का संभावित अवतरण माना जाता है, लेकिन इसका सटीक स्थान आज तक रहस्य बना हुआ है। महाराष्ट्र में, नासिक के पास पश्चिमी घाट की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदी को स्थानीय लोग वैतरणी कहते हैं। यह अरब सागर में जाकर मिलती है और इसके पास ही गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है, जिसे ‘दक्षिण की गंगा’ कहा जाता है। ओडिशा की वैतरणी नदी इन सभी में सबसे प्रमुख मानी जाती है। यह नदी ब्राह्मणी नदी के साथ मिलकर बालेश्वर जिले के धामरा क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी में अपना मार्ग समाप्त करती है। यह न केवल पानी का स्रोत है, बल्कि स्थानीय जीवन, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है।
वैतरणी नदी का उद्गम और गुप्त गंगा
ओडिशा की वैतरणी का आरंभ गोनासिका पहाड़ी से होता है, जो क्योंझर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। इस पहाड़ी से निकलते ही नदी का एक हिस्सा भूमिगत बहाव में चला जाता है, जो लगभग आधा किलोमीटर तक दिखाई नहीं देता। इस कारण इसे ‘गुप्त गंगा’ कहा जाता है। इस रहस्यमय प्रवाह की वजह से नदी की शुरुआत बेहद विशेष और आकर्षक लगती है।
शंख टापू और पवित्र स्थल
नदी के समापन स्थल पर एक अनोखा शंख आकार का टापू है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह स्थान बैकुंठ के समान पवित्र है। यहां एक प्राचीन मंदिर स्थित है और खास बात यह है कि मंदिर के प्रसाद ग्रहण करने के लिए हजारों जिंदा शंख खुद चलकर यहां आते हैं। यह दृश्य श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है।
नदी का विस्तार और लंबाई
गुप्त गंगा से निकलने के बाद नदी का जल धीरे-धीरे भूमि पर दिखाई देता है और जैसे-जैसे नदी आगे बढ़ती है, उसका पाट चौड़ा होने लगता है। कुल मिलाकर यह नदी लगभग 355 किलोमीटर लंबी है। यह अपने मार्ग में छोटे-छोटे नालों और झरनों को मिलाती हुई बहती है, जिससे इसका पानी और भी समृद्ध हो जाता है। नदी का यह विस्तार स्थानीय किसानों और मत्स्य पालकों के जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विलय और ब्राह्मणी-वैतरणी बेसिन
ओडिशा की वैतरणी नदी अंततः ब्राह्मणी नदी के साथ मिलकर बालेश्वर जिले में धामरा के पास बंगाल की खाड़ी में विलय कर देती है। इस बेसिन क्षेत्र को ब्राह्मणी-वैतरणी बेसिन कहा जाता है। यह क्षेत्र कृषि, मत्स्य पालन और जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नदी का यह संगम स्थानीय जीवन और अर्थव्यवस्था के लिए जीवनदायिनी साबित होता है।
प्राकृतिक विविधता और जीव-जंतु का खजाना है वैतरणी नदी
वैतरणी नदी केवल जल का स्रोत ही नहीं है, बल्कि जीव-जंतुओं और पक्षियों की विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण है। नदी में मगरमच्छों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जो इसे रोमांचक और खतरनाक दोनों बनाती हैं। इसके किनारे पक्षियों, मछलियों और अन्य जलीय जीवों की भी भरपूर विविधता है। नदी के पास बसे गांवों के लोग कृषि और मत्स्य पालन पर निर्भर हैं, जिससे नदी उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गई है।
वैतरणी नदी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
वैतरणी नदी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। शंख टापू और गोनासिका पहाड़ी श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक केंद्र हैं। स्थानीय कथाओं और लोककथाओं में इस नदी का जिक्र अक्सर मिलता है। इस नदी के किनारे बड़ी संख्या में अनुष्ठान और पूजा-पाठ पाप निवारण और पुण्य लाभ के लिए किए जाते हैं। यह नदी स्थानीय संस्कृति और पारंपरिक त्योहारों का भी अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।
ओडिशा की वैतरणी नदी केवल जल प्रवाह का साधन नहीं है। यह प्राकृतिक सुंदरता, पौराणिक कथाओं, धार्मिक विश्वास और जीवन के विविध पहलुओं का संगम है।


